सोनी लिव पर स्ट्रीम हो रही हैं नेशनल अवार्ड विनर हंसल मेहता की एक और रियल लाइफ स्टोरी और एक से बढ़कर एक तक़रीबन ५० -५० मिनट के कुल १०एपिसोड्स हैं !
डीमार्ट दमानी ने कहा था अगर हर्षद और सात दिन पोजीशन होल्ड करता तो मुझे कटोरा लेकर उतरना पड़ता ! तब का मंदौड़िया टाइप पंटर आज का जेन्युइन इंवेस्टर हैं और देश के अमीर व्यक्तियों में से एक है ! कुल मिलाकर एक्सपोज़ हुआ तो हर्षद कहलाया बाकी तो सब ठीक हैं !
नब्बे के दशक का तक़रीबन ५०० करोड़ का हर्षद घोटाला हाल के तमाम लाखों करोड़ों के स्कैमों के सामने तुच्छ नजर आता हैं परंतु विलेन होते हुए भी अपनी कहानी का हीरो था वह। कपल देबाशीष बसु और सुचेता दलाल की किताब The Scam: Who Won, who Lost, who Got Away पर बेस्ड इस वेबसीरीज को बखूबी नक्काशा है हंसल मेहता ने और दलाल स्ट्रीट की कार्यप्रणाली को इतनी सरलता से और खूबसूरती से प्रस्तुत किया है कि शेयर बाजार में आपकी रूचि ना भी हों तो भी आप मंत्र मुग्ध से देखे चले जाते हैं।
एक दौर था अमिताभ की फ़िल्में जंजीर , दीवार , त्रिशूल का जब यूथ अच्छे बुरे विजय से कनेक्ट करता था और आश्चर्यजनक रूप से आज का यूथ डिजिटल दुनिया से पहले के फाइनेंसियल किंगपिन हर्षद मेहता की कहानी से खुद को कनेक्ट कर रहा हैं और यही हंसल के बेहतरीन प्रेजेंटेशन की खूबी है ! लाइटर नोट पर कहें तो अमिताभ के किरदार विजय और हर्षद में एक चीज कॉमन है और वह है युवा आक्रोश ! और हर्षद के रोल में गुज्जू एक्टर प्रतीक गाँधी ने तो विजय बने अमिताभ को भी मात दे दी हैं ! संयोग ही कहना उचित रहेगा तब कहा जाता था कि हर्षद मेहता जिस चीज को छू देता था, वो सोना बन जाता था और उसे ‘स्टॉक मार्केट का अमिताभ बच्चन’ और ‘बिग बुल’ भी कहा जाता था। वैसे हर्षद पर ही अभिषेक बच्चन की फिल्म बिगबुल आने वाली है लेकिन यकीन मानिये इस वेब में प्रतीक ने जो उँचाइयाँ छू ली है शायद जूनियर बच्चन उसके पासंग भी ना ठहरे !
हर्षद की कहानी सिर्फ शेयर बाजार या अर्थव्यवस्था तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि इसमें राजनीति का घालमेल भी हैं जिसे अक्सर दबा दिया जाता है या अफवाह भर बता दिया जाता है। इकोनॉमिक क्राइसिस हो या सरकार बदल जाय लेकिन मार्केट बूम बूम था ! कुछेक जमकर पैसा कमा रहे थे और परसेप्शन था हर्षद भाई का राज मा मार्केट मजा मा ! चूँकि सारे पब्लिक बैंक्स और इंस्टीटूशन्स हर्षद की जेब में थे तो जब चाहो मार्केट को कार्नर कर पैसा बनवा दो अपने लोगों को ! तो आज कौन है मार्केट का हर्षद ? आज तो बटन दबा नहीं करोड़ों रुपये इधर से उधर हो जाते हैं लेकिन नब्बे के दशक में सवाल उठा था क्या एक सूटकेस में सौ सौ के नोटों के एक करोड़ रूपये आ सकते हैं और इसी सवाल ने कइयों की आबरू बचा ली ! हर्षद एक किंवदती बन गया था जिसकी वजह से आम आदमी का इंटरेस्ट जगा शेयर बाजार में ! वह वो शख्स था जिसने गवर्नमेंट सेक्टर में पड़े अनुत्पादक धन को शेयर मार्केट में लगा कर मुनाफा कमाने का आइडिया दिया ; जिसने उस दौर में सेंसेक्स के उछाल को ऐसी रॉकेट-गति दी कि लोग इस नीरस समझे जाने वाले विषय में डूबने लगे। तीन महीने में एसीसी के २०० रूपये का शेयर ३००० रूपये की ऊंचाई छू गया ! क्या खूब रिस्क से इश्क का फलसफा कहलवा दिया हर्षद के किरदार से कि जीवन में सबसे बड़ा जोखिम तो जोखिम नहीं लेना है।
हर एपिसोड में रोमांच बना रहता है और अंत में ५०० करोड़ के फ्रॉड की आंच पीएम तक भी पहुँचती हैं, हालाँकि कुल स्कैम की बात करें तो भारत के इतिहास में पहली बार स्कैम शब्द की बात हुई और अंदाजा तब भी ५००० करोड़ का लगाया गया था ! लेकिन अल्टीमेट फ्रॉड ५०० करोड़ का ही आंका गया था ! अभी तक फिल्मों और वेबसीरीज में हम पॉलिटिकल और क्राइम जर्नलिज्म भर देखते आये हैं, यहाँ हम फाइनेंसियल जर्नलिज्म से रूबरू होते हैं और एक समय के बाद टाइम्स ऑफ़ इंडिया की पत्रकार सुचेता दलाल लगभग केंद्र में आ जाती हैं क्योंकि वही स्कैम को सामने लाती हैं। आजकल हम टीवी पर बोरियत भरी इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म खूब सुनते हैं लेकिन खोजी पत्रकार सुचेता का हर्षद की चालाकियों को समझना और उसका भंडाफोड़ करना, इसके बाद दफ्तर में ही अपनी खबर को अखबार के पन्ने में सही जगह दिलाने का उनका संघर्ष भरपूर रोमांच पैदा करता है।
अध्याय दर अध्याय हम साधारण युवा हर्षद के सफर पर निकल पड़ते हैं ; जिसके पिता का कपड़ों का व्यापार चौपट हो गया है, निम्न मध्यमवर्गीय परिवार आर्थिक मुश्किलों में फंस जाता है, चाल नुमा जिंदगी में परिवार को सहारा देने के लिए क्लर्की करने से लेकर सड़कों पर सामान बेचने तक का काम करने वाले हर्षद के सपने बड़े हैं। वह स्टॉक मार्केट का रुख करता है, छलांगे लगाता है और फिर चारों खाने चित भी होता है जब तीन साल की ३ लाख की कमाई १५ मिनट में दस लाख के नुक्सान में तब्दील हो जाती हैं। पिता की हार्टअटैक से मृत्यु हो जाती हैं और उसका दर्द देखिये जब वह कहता है अच्छा हुआ पिता नींद में चैन से चले गए वरना तो इलाज के पैसे कहाँ से लाते ! सैद्धांतिक बात है लेकिन पकड़ते हर्षद जैसे विरले ही हैं कि टाइम ही टाइम को बदल सकता है और टाइम को बदलने के लिए थोड़ा टाइम दीजिए ! तो हर्षद अपने भाई अश्विन के संग रवाना हो जाता है अपने ग्रोमोर की परिकल्पना के साथ !
फिर ट्विस्ट शुरू होते हैं चूँकि स्वीट कंटेंट कहाँ कब किसको हुआ है ? पैसे की ताकत की समझ हर्षद को मनी मार्केट में खींच लायी और चूँकि वजह भी दिखानी है तो केड़िया के कलकतिया किरदार ने उसकी बत्ती जला दी। इस मनी मार्केट में आम आदमी की जगह निजी और सरकारी बैंकों के धन का खेल होता है। सफलता दुश्मन पैदा करती है लेकिन हर्षद को परवाह कहाँ और उसकी बेफिक्री देखिये -जब जेब मनी हो, तब कुंडली शनि से फर्क नहीं पड़ता है। ये मेरी एस्ट्रालॉजी है। कोई उसे शेयर मार्केट का कपिल देव कहता तो कोई बीएसई (बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज) का अमिताभ बच्चन तो कुछ उसे आइंस्टाइन बताते। मगर सबसे सटीक सेंसेक्स का बिग बुल ही बैठा उसपर चूँकि उसे आता था कब बेअर्स के बॉल बेयरिंग टाइट करने हैं ! उसकी समझ उसकी बाजार पर पकड़ ही उसका गुमान बन गयी ! मेहता की कमाई बढ़ती जा रही थी। उसने मुंबई के वर्ली में १२ हजार स्कॉयर फीट का सी-फेसिंग पेंटहाउस खरीदा था। उसके पास लग्जरी गाड़ियों का पूरा काफिला था और इन लक्ज़री के पीछे उसका लॉजिक था पैसा पैसे को खिंचता है तो दिखना चाहिए पैसा है ! भरोसा कानून से बड़ा होता है और उसकी थ्योरी है ओल्ड स्कूल हो या न्यू स्कूल , सबके सुलेबस में एक सब्जेक्ट कॉमन होता है और वह है प्रॉफिट जो उसे दिखाना आता है ! हर्षद का ट्र्यू वैल्यू कांसेप्ट जुदा था और इसे एडवोकेट करने का तरीका भी उतना ही अनूठा था जो कन्विंस भी करता था। दूसरे की ट्र्यू वैल्यू को आसमान छुआ कर अपना और अपने लोगों की वेल्थ का इजाफा दलाल स्ट्रीट में करवा देना उसे आता था ! तरीके कोई लेजिटिमेट या इलेजिमेट नहीं होते , सिर्फ कन्वेंशनल और उसके जैसे अनकंवेंशनल होते हैं। इसी अति-आत्मविश्वास के साथ उसने बैंकों और सरकारी-गैर सरकारी संस्थानों को मुनाफे की रेस में शामिल किया और कब इसकी टोपी उसके सिर करते हुए सत्ता-व्यवस्था में बैठे लोगों का खिलौना बन गया, उसे ही पता नहीं चला !
कल्पना कीजिये वो दिमाग जो नब्बे के दशक में एडवर्टीजमेन्ट को एक्सप्लॉइट करना जानता था , वो आज इस सोशल मीडिया के जमाने में क्या कर गुजरता ! पावरफुल एलिमेंट इन ऐडवर्टीजमेंट इज ट्रूथ और ट्रूथ को कैसे अपने फेवर में करना होता है उसे आता था। तभी तो न्यूज़पेपर की सच्ची हैडलाइन कि हर्षद मेहता इज ए लॉयर ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया कंटेंट्स पढ़ने के लिए और कंटेंट्स ने उसका सिक्का जमा दिया चूँकि बता जो दिया कि उसे लॉयर बताने वाले स्वयं लॉयर हैं !
और हंसल मेहता की क्रिएटिविटी देखिये उन्होंने हर्षद की पत्नी से बाजार का कड़वा सच कहलवा दिया कि तुम्हारे झूठों की लिस्ट बनाऊं तो मैं ही लिस्ट हो जाउंगी बीएसई पर !
यह सब कुछ शायद ऐसे ही चलता अगर पत्रकारिता के पेशे में धार नहीं होती। सुचेता दलाल नहीं होती। हंसल मेहता ने सुचेता के माध्यम से उस दौर की पत्रकारिता को पारदर्शी ढंग से सामने रखा है और श्रेया धनवंतरि ने बड़ी शिद्दत से यह भूमिका निभाई है।
अंत तक आते-आते कहानी आर्थिक से राजनीतिक होने लगती है और हर्षद का यह बयान मायने रखता है कि अगर मेरी पूंछ में आग लगाएंगे तो लंका उनकी भी जलेगी। मैं गिरा तो सबको गिराऊंगा। ये सब कौन हैं, स्कैम १९९२ इसकी तह तक तो नहीं जाती मगर अंत में देश के चर्चित और सबसे बड़े वकील स्व.राम जेठमलानी का वीडियो यह जरूर कहता है कि यह हर्षद मेहता स्कैम नहीं है, It's a P V Narsimharao scam !
एक और क्लियर मैसेज पिंजड़े का तोता देता है कि ७ रेस कोर्स रोड पर रेड तब भी मुमकिन नहीं हुई थी और आज भी संभव नहीं है ! पोपट को इंस्ट्रक्शन कौन देता है , बताने की जरुरत नहीं हैं ! स्वामी जी का नाम नहीं लिया जाता सो नहीं लिया गया लेकिन वे तब के पीएम नरसिम्हाराव के स्वामी चंद्रास्वामी ही तो हैं जिनकी असीमित दखलंदाजी सर्वत्र थी ! थैंक्स टू सुप्रीम कोर्ट जिसका तोता वाला ऑब्जरवेशन तीन दशक पीछे भी बखूबी फिट बैठा !
पूरी वेबसीरीज का थ्रिल बने रहने में डायलॉग्स ने गजब की भूमिका निभायी हैं ! बानगी देखिये - ब्रांड वैल्यू क्या है सिर्फ परसेप्शन ही तो है ; मार्किट स्टडी तो काफी नहीं हैं मार्किट के लिए, कौन कब कितना जरुरी है उनकी स्टडी भी जरुरी है !
जर्नलिस्ट भले ही महिला हो निर्भीक है तो कह पाती है सुचेता दलाल हर्षद मेहता से कि शेयर और स्टॉक से संसद तक पहुँचने का प्लान है आपका लेकिन देश तो दूर आपके दिमाग में एक किराने की दूकान चलाने का विज़न नहीं हैं। मार्किट में आपकी मनमानी तबतक है जब तक आपके फंड्स के सोर्सेज छिपे हैं !
ह्यूमर भी अच्छा ख़ासा जगह जगह क्रिएट हुआ है जैसे इनकम टैक्स की रेड पड़ी है घर पर और हर्षद कहता है जो सर्च करना है कर लीजिये सब सामने हैं और जो नहीं है वो एडवांस टैक्स में भर दिया है। रेड की टिप देने वाले को वह बोलता है बारातियों का स्वागत मैं खुद पान पराग से करूँगा।
एक बात हंसल मेहता से पूछना तो बनता ही है ५६ इंच के की छाती और आँखों में आँख डालने वाली बात मोदी ने हर्षद की कॉपी की है या आप ने हर्षद के किरदार के मुख से कहलवा कर अपने लेफ्ट की तरफ झुकाव वाले माइंडसेट को जाहिर किया है !
और फिर ओटीटी की मज़बूरी ने ही शायद कुछेक अश्लील डायलाग और गालियां भी शुमार करवा दी है मसलन बुल रन ऐसा ही चला तो कमाठीपुरा में खोलकर बैठना पडेगा और इस पर कलकतिया केड़िया पंच मारता है कि वहां जगह नहीं मिली तो यहाँ चले आना सोनागाछी में जगह दिलवा देंगे !
एक जगह अन्य हर्षद का कॉन्फिडेंस देखिये - ये बॉम्बे है बॉम्बे , यहाँ सबकुछ बदल जाएगा , दरिया रहेगा ! मैं दलाल स्ट्रीट का दरिया हूँ , जो चाहे आकर उसमें से नमक चख ले !
कुल मिलाकर विलक्षण स्टोरीटेलिंग है ये वेबसीरीज ! मार्केट में रूचि रखने वालों के लिए तो मस्ट वाच है ! क्या तो बैकग्राउंड स्कोर क्या ही सिनेमेटोग्राफी ; सब कुछ बेहतरीन हैं ! सबसे बड़ा टेक जो है हर सिस्टम में लूपहोल्स होते हैं , एक्सप्लॉइट कई करते हैं या यूँ कहें सभी करते हैं , अहंकारी या कहें हेकड़ीबाज (अर्रोगंट) एक्सपोज़ होते हैं या कभी कभी कोई अनलकी है तो वह भी एक्सपोज़ हो जाता है और जब ऐसा होता है उसे बलि का बकरा बना दिया जाता है और बाकी सारे बिग गन को - पॉलिटिकल हो या अन्य वेस्टेड इंट्रेस्ट्स वाले इन्वेस्टर्स , बिज़नेसमेन - सेफ एग्जिट मिल जाता है।
जबतक प्लेयर के टूल्स रिसर्च , रिस्क , पैशन और लक हैं , सबकुछ जायज हैं लेकिन जब कुटिलता (crookedness) पांचवां टूल बनकर हाथ में आता है , महल ताश के पत्तों के महल के मानिंद ढह जाता है ! जबतक कुटिलता दूर रहती है , ट्रस्ट सेफ रहता है फिर भले ही कायदे कानून इज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस के लिए कुर्बान क्यों ना होते रहें ! और ट्रस्ट सेफ है तो लेनदेन बरोबर स्क्वायर अप भी होता है ! लेकिन बात इतनी सीधी भी नहीं हैं ! जब नियम, कायदे , गाइडलाइन्स की धज्जियाँ उड़ती हैं, कुटिलता आ ही जाती है ! यही स्कैम का विसियस सर्कल हैं !
अंत में यदि हर्षद की मोडस ऑपरेंडी की बात करें तो इस ब्लॉग को पढ़ना जरुरी है। एक और जिक्र भी करते चलें तो हंसल ने इस वेब सीरीज में हर्षद, सुचेता , देवाशीष के अलावा अनेकों किरदारों के ओरिजिनल नाम यूज़ किये हैं मसलन अश्विन, टाइम्स ऑफ़ इंडिया के तब के आर के लक्ष्मण , राजदीप (सरदेसाई ) आदि ! लक्ष्मण का तो सुचेता के साथ इंटरेक्शन का एक ही सीन उनके सेंस ऑफ़ ह्यूमर को दर्शा देता है ! राजदीप तब भी संदिग्ध समझ आते हैं !
अन्य किरदार हैं तो अंदाजा कहें या इम्प्रैशन दे ही देते हैं राकेश झुनझुनवाला का , राधाकिशन दमानी का , मनु माणिक का !
और कितनी बात करें ! टोटल वेबसीरीज इतनी जबरदस्त बन पड़ी है कि बेस्टेस्ट भी कह दें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी ! और इसे डोक्युमेंट्रिकल फिक्शन भी कहें तो अनुचित नहीं होगा ! जितने भी किरदार हैं , छोटे बड़े सबों ने खूब निभाया है ! रोमांस भी है पिया का घर टच में हर्षद का अपनी पत्नी के साथ और देबाशीष का रेस्टोरेंट में सुचेता को गुलाब दिया जाना ! फाइनली द एंड भी वेब के ही डायलाग से बनता है जब अश्विन मेहता तंज कसता है - लाइफ में दूसरी बार समझ आया चिंता चिता समान होती हैं ! इतना at length होकर भी मात्र स्पीलर्स ही दे पाया हूँ ! Heads off to Team Hansal Mehta and above all to the sweet couple Sucheta - Debashis !
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