मोहब्बत की दुकान खोली है नफ़रत फैलाने के लिए ! 

स्वार्थपरक राजनीति जनक मित्र उदयनिधि स्टालिन ने सनातन धर्म के उन्मूलन का आह्वान कर दिया ! सनातन का पर्याय हिंदू तो हैं ही , सिख, जैन, बौद्ध धर्मावलम्बी भी सनातन धर्म का ही हिस्सा है ! तो इस लिहाज़ से तक़रीबन १०० करोड़ लोग सनातनी हुए ना ! और उन्हीं का नाश चाहते हैं डीएमके के स्टालिन !  दरअसल द्रविड़ बनाम सनातन का क्षेत्रीय विमर्श हावी हो गया और वे भूल गए इसका ख़ामियाज़ा राष्ट्रीय स्तर पर उनके साथियों को उठाना ही पड़ेगा. 

रोष पूरे देश में हैं, विभिन्न राजनीतिक दलों में भी है. मोहब्बत की दुकान के एक अन्य पार्टनर आरजेडी ने स्टालिन से माफ़ी की माँग की है. परंतु दुकान के फाउंडर पार्टनर ने सिर्फ़ बयान से किनारा भर कर लिया है और कह दिया है कि पार्टनर उनके वश में नहीं है ! 

डीएमके ने स्पष्टीकरण दिया है या कहें तो राजनीतिक डिस्क्लेमर जोड़ दिया है कि उदयनिधि ने सनातन धर्म मानने वालों के संहार की बात नहीं की है, वे तो सनातन धर्म को जड़ से उखाड़ने का आह्वान कर रहे थे ताकि मानवता और समानता कायम रह सके ! कैसी बचकानी बात है ? धर्म का अस्तित्व ही धारण करने वालों से हैं, हिन्दू हैं तो सनातन है, मुसलमान हैं तो मुस्लिम है, ईसाई हैं तो ईसाई धर्म हैं, सिख हैं तो सिख धर्म हैं ! सो धर्म का उन्मूलन तभी होगा जब धारकों का नाश होगा ! 

सवाल बड़ा है. धर्म हिंदुओं का निशाने पे लिया गया तो मिज़ाज ठंडा रखने के लिए कह दिया जाता है संत कबीर के हवाले से, समर्थन करते हुए ज्ञानवर्धन कर दिया जाता है कि सनातनी का अभिप्राय विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग से है. वहीं इस्लाम को लेकर कह दिया गया तो कहने वाले का सर कलम भी हो जाए तो मंज़ूर है.  दुनिया में क्या कोई जुर्रत कर सकता है कहने की - “यहूदी धर्म का विरोध भर काफ़ी नहीं है; इसका उन्मूलन ठीक वैसे ही किया जाना चाहिए जैसे मच्छरों का !” सोलह देशों में तो कहने वाले की गिरफ़्तारी तुरंत हो जाएगी. और विडंबना देखिए सनातन धर्म के लिए सनातनी देश में ही ऐसी बात किसी ने कह दी तो गिरफ़्तारी दूर की बात है, उसका महिमामंडन करने वालों में स्वार्थपरक राजनीति वश अनेकों हिंदू ही, चूंकि वे नेता हैं , अग्रणी नज़र आते हैं ! 

फिर पूर्व निर्धारित सनातन उन्मूलन सम्मेलन होने ही क्यों दिया गया ? क्या अदालत स्वतः संज्ञान लेकर रोक नहीं लगा सकती  थी ? और क्या कोई नेता तब माननीय अदालत का रुख़ नहीं कर सकता था ? रोक नहीं तो कुछेक दिशा निर्देश ही जारी किए जा सकते थे.

बाई द वे, एक अजीज और हैं कोई क़ुरैशी, क्या मोहब्बत फैलाई थी  उन्होंने ! वे चाहते हैं कि हिंदुओं को मोहब्बत सिखाने के लिए करोड़ दो करोड़ मुसलमान मर भी जायें तो क्या ग़म है ? 

और तो और, मोहब्बत की दुकान के संस्थापक हैरान परेशान है चूँकि उनके स्वयं के सिपहलसारों के अलग अलग सुर हैं ; कहने को पार्टी ने उदयनिधि के बयान से किनारा कर लिया है लेकिन दक्षिण के उनके दो दो दिग्गज नेताओं के पुत्रों ने उदयनिधि के बयान को सही बताने के लिए अच्छे ख़ासे कुतर्क रखे हैं . एक और हैं ए राजा, जिन्होंने उदयनिधि के उदगार को कमतर बताते हुए सनातन धर्म को HIV बता दिया. विडंबना ही है कि गठबंधन के साथी उदयनिधि के 'कहे' की सार्वजानिक निंदा तो कर रहे हैं, उसे सीख भी दे रहे हैं, परंतु साथियों को चुप नहीं करा सकते, बेतुकी बयानबाजी के सिलसिले को रोक नहीं सकते. वाह रे राजनीतिक मजबूरी !

यक़ीन मानिए देश में मौजूदा सत्ता के ख़िलाफ़ एक माहौल बनने लगा था लेकिन बंदों ने ही ठान लिया है तो ख़ुदा ख़ैर कैसे बनाये रखे ? कुल मिलाकर स्टालिन ने I.N.D.I.A. के तमाम घटक दलों को सांसत में डाल दिया है, वे बंगले झांक रहे हैं. और दूर बैठा वो मंद मंद मुस्कुरा रहा है सेल्फ गोलों की झड़ी से ! 

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Prakash Jain

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