किस्मत का मारा है इसलिए "HALF CA" है वरना काम का ज्ञान सारा है ! 

तमाम बेक्ड स्टोरीज आई हैं ओटीटी प्लेटफार्म पर इंजीनियरिंग मेडिकल एस्पिरेंट्स की, आईएएस एस्पिरेंट्स की,  स्टूडेंट्स की लेकिन सीए एस्पिरेंट्स की, स्टूडेंट्स की भी कोई कहानी हो सकती है क्या ? बिल्कुल हो सकती है और द वायरल फीवर ले आये हैं स्टूडेंट्स लाइफ की यादें ताजा कराती एक ब्यूटीफुल और फील गुड शो जिसमें इसके किरदारों का एकदम सहज और सरल चित्रण है. 

सोसाइटी को लगता है कॉमर्स वालों की पढ़ाई साइंस वालों के कंपेरिजन में बहुत चिल(chill) होती है. तभी तो पढ़ाई में अपेक्षाकृत कमजोर बच्चे कॉमर्स लेते हैं. परंतु जिस प्रकार  साइंस के हर स्टूडेंट की कप ऑफ़ टी मेडिकल या इंजीनियरिंग नहीं है, वैसे ही हर कॉमर्स स्टूडेंट की कप ऑफ़ टी सीए भी नहीं है. फिर भी शुरू से धारणा जो बन गई ना, तभी तो सीए एस्पिरेंट्स का कोई हब नहीं बना कोटा (इंजीनियरिंग मेडिकल के लिए), राजेंद्र नगर(सिविल सर्विसेज या आईएएस के लिए) के माफ़िक. सीए अभ्यर्थी तो जहाँ किताब उठाता है और पढ़ना चालू कर देता है , समझ लीजिये वही हब बन जाता है सीए का. 

दरअसल सीए बनने की डगर में बाधाएं कम नहीं है, कोर्स निःसंदेह टफ है तभी तो मात्र 3 -5 फीसदी ही पहले प्रयास में सीए फाइनल निकाल पाते हैं. और कोर्स में एंट्री पाने के लिए फाउंडेशन कोर्स के लिए सक्सेस रेट भी मात्र 33 फीसदी ही है. कहा जा सकता है कि मेडिकल इंजीनियरिंग कोर्स के लिए भी तो सक्सेस रेट बहुत ही कम है. लेकिन फर्क है. मेडिकल और इंजीनियरिंग करने के लिए दीगर ऑप्शन अनेकों हैं, और एक बार एंट्री मिल गई तो पास परसेंटेज तो अस्सी पचासी फीसदी तक हाई है. 

खैर, बात शो की करनी है. विषयांतर ना करते हुए वेब सीरीज पर फोकस करते हैं. पहली बात तो शो का पहला सीजन पांच एपिसोडों का है जो अमेज़न मिनी टीवी पर फ्री स्ट्रीम हो रहे हैं. हालांकि एक राइडर है व्यूअर्स को खूब सारे एड बर्दाश्त करने पड़ेंगे. सो व्यवधान तो खूब होगा लेकिन एक सीरियस सब्जेक्ट पर टीवीएफ की खासियत के अनुरूप ही ह्यूमर की एक परत लिए प्रैक्टिकल संवादों के मार्फ़त लाइट ट्रीटमेंट के साथ इस शो को भी मेकर टीम इतना बढ़िया क्रिएट कर पाई है कि व्यूअर्स विज्ञापनों को भी झेल लेगा. तो ये तो हो गई यूएसपी शो की. अब बात कर लें अन्य पक्षों की.

सबसे पहले बात कर लें मॉरल ऑफ़ द स्टोरी की तो एक नहीं दो नहीं कई मॉरल निहित हैं स्टोरी में. अपमान और तिरस्कार को बर्दाश्त करते हुए आशावादी और सकारात्मक रवैया कैसे अपनाये रखा जा सकता है, सीरीज बखूबी बताती है अपने महत्वपूर्ण किरदार हाफ सीए नीरज की जर्नी दिखाकर जिसे जीवंत किया है ओटीटी के काबिल कलाकार ज्ञानेंद्र त्रिपाठी ने. इसी हाफ सीए वाले किरदार का एक और चारित्रिक गुण है कि कैसे खुद सफल ना होते हुए भी किसी को हौसला दिया जा सकता है. एक और लीड किरदार है आर्ची का जिसके जरिये करियर चॉइस को लेकर जेंडर इक्वलिटी का मैसेज बखूबी दिया गया है. और उसे निभाया है 'होनहार बिरवान के होत चिकने पात' को चरितार्थ करती कलाकार पेरेंट्स की चिरपरिचित एहसान चन्ना ने. हाँ, ऑन ए लाइटर नोट एक और 'नो-मॉरल' ऑफ़ द स्टोरी है सीए स्टूडेंट्स के लिए फाइनल में पास होने के लिए, हाफ सीए के टैग से बचने के लिए ऑफिस में ज्यादा अच्छा काम ना करो.        

टीवीएफ की खासियत है कोई बकवास नहीं, कोई फालतू का ड्रामा या शोबाजी नहीं, सीधा टॉपिक से शुरुआत करते हैं और ऑडियंस के दिल तक पहुँच ही जाते है. और इसी परिपाटी को बेहतर कायम रखा है इस शो में भी क्रिएटर अरुणाभ कुमार एंड टीम ने जिसमें इसी जेनेरिक को क्वालीफाई करती खुशबू बैद है, 'एसके सर की क्लास', 'F.A.T.H.E.R.S.' फेम प्रतीश मेहता बतौर निर्देशक भी है. 

कहानी बड़े ही खूबसूरत ढंग से बढ़ती है, एंगेजिंग और इंटरेस्टिंग है. 'यथा नामे तथा गुणे' हैं शो के पांचों एपिसोड.  'क्यूँ करना है" से शुरू कर 'ओवरहेड एक्सपेंसेज' की पहचान करते हुए "राइट ऑफ" का महत्व समझाते समझते हुए ग्रुप 1 ग्रुप 2 की जद्दोजहद से बाहर निकल कर "बैलेंस शीट" तक की लाजवाब जर्नी जो बन पड़ी है. और इस कठिन डगर को न केवल बखूबी कंट्रीब्यूट करते हैं बल्कि एस्पिरेंट्स को भी इंस्पायर करते हैं, उनकी डगर को आसान बनाते हैं आला दर्जे के ह्यूमर लिए हुए संवाद. 

कुल मिलाकर ग्रेट शो है, देखना बनता है एस्पिरेंट्स के लिए, सभी चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के लिए भी फिर भले ही आज वे हाफ ही हैं चूँकि कल सीए.................. टाइटल को रियलिटी जो बनाना है. सो एस्पिरेंट्स के लिए, स्टूडेंट्स के लिए फिर एक मॉरल है, हाफ हैं तो क्या गम है, यदि विथ फुल कॉन्फिडेंस है तो कल के सीए हैं. और मान भी लें कि नहीं बन पाएंगे तो तय समझिए जिंदगी में आने वाले किसी भी इम्तिहान का सामना करने में उन्हें कोई परेशानी नहीं होगी. एक बात और, क्रिएटिविटी के नाम पर किंचित भी अतिरंजना नहीं है, न तो भाषा में न ही विज़ुअल में. कुल मिला कर आला दर्जे का साफ़ सुथरा शो है.   

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Prakash Jain

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