भारत बनाम इंडिया : ये तो होना ही था ! 

कांग्रेस ने पोस्ट किया, "INDIA से इतना डर ?" भई , डरना जरूरी है ! आपने INDIA को एक्सप्लॉइट कर अलायन्स का नामकरण I.N.D.I.A. रखा, समझने के लिए किसी रॉकेट साइंस की ज़रूरत है क्या ? बड़ी सारगर्भित कहावत है, 'न रहेगा बांस, ना बजेगी बांसुरी.'  आपने डराया, उन्होंने डर की 'वजह' को ही खत्म करने की ठान ली. और मानना होगा नहले पे दहला पड़ा है चूंकि प्रतिस्थापित "भारत" पर इधर उधर की बातें कितनी भी कर लें, आपत्ति तो हो ही नहीं सकती.

ऐसा नहीं है "भारत" पहली बार सुना जा रहा है. देखा जाए तो 'भारत' और 'इंडिया' दोनों ही नाम राष्ट्र के लिए पर्याय रहे हैं. जब जैसा सूट किया, उपयुक्त लगा, 'भारत' कहा गया, 'इंडिया' भी कहा गया. 'भारतरत्न' है, 'मेरा भारत महान' भी है, तो 'खेलो इंडिया' है, 'स्टार्टअप इंडिया' है. क्विट इंडिया मूवमेंट उतना ही बुलंद हुआ था जितना 'भारत छोड़ो'. कभी भी राजनीति नहीं हुई, हो भी नहीं सकती थी. क्योंकि 'वजह' जो नहीं थी. 

और विपक्षी गठबंधन के नेताओं ने स्वीकारा भी इस 'वजह' को. पिछले दिनों ही किसी नेता ने कहा था वर्ल्ड कप होने वाला है, सभी कहेंगे जीतेगा इंडिया और इंडिया.........इंडिया........गूंजेगा. ठीक उसी तर्ज पर चुनाव में भी 'इंडिया' जीतेगा चूँकि अलायन्स 'इंडिया' है. तो क्या एनडीए गठबंधन की पार्टियां फिरंगी हो गई ? 

इसी तारतम्य में देश की शीर्ष अदालत ने जो कहा था, काबिल-ए-गौर है. चीफ जस्टिस ने स्पष्ट किया था कि इंडिया का मतलब ही भारत है. संविधान में साफ लिखा है कि 'इंडिया जो कि भारत है !' ऑन ए लाइटर नोट, रिपब्लिक ऑफ़ इंडिया जितना सही है उतना ही सही रिपब्लिक ऑफ़ भारत भी है. दरअसल इंडिया भी आज उतना ही हिंदी है जितना भारत. अंग्रेजी निर्विवाद रूप से संपर्क की भाषा के रूप में पूरी दुनिया में शिखर पर हैं क्योंकि अंग्रेजी ने दूसरी भाषाओं के शब्दों को खूब अपनाया है. आज जो दर्जा अंतरराष्ट्रीय व्यापार में डॉलर का है, वहीं संपर्क की भाषा के रूप में अंग्रेजी का. खुद हिंदी और हिंदुस्तानी भाषा के शब्दों को अंग्रेजी में बड़े पैमाने पर जगह मिली. अंग्रेजी का जो वरांडा शब्द है, वह हिंदी के बरामदा से आया. बंगला से बंगलो या बंग्लो, खिचड़ी से केजेरी (Kedgeree), चंपी से बना शैंपू (Shampoo), पंडित (Pandit) और साहेब (Saheb) जैसे शब्द भी अंग्रेजों ने भारत से लिए. फिर आज तो बोलचाल की हिंदी अनेकों अंग्रेजी शब्दों को अपना चुकी हैं, लिखने में भी अनेकों अंग्रेजी शब्दों का व्यवहार होने लगा है. अंग्रेजी शब्दों के अलावा भी अन्य भाषाओं के शब्दों का भी प्रचलन शुरू से रहा है.  जैसे, फारसी के आराम, अफसोस, किनारा, नमक, दुकान, खूबसूरत, बीमार और शादी ; अरबी के किस्मत, खयाल, औरत, कीमत, अमीर, इज्जत, इलाज, किताब तो तुर्की के तोप, काबू, तलाश, बेगम, बारूद, चाकू. पुर्तगाली से कमीज, साबुन, अलमारी, बाल्टी, फालतू, फीता, तौलिया जैसे शब्द हिंदी में आए. अंग्रेजी के भी स्कूल, कॉलेज, बस, कार, हॉस्पिटल जैसे शब्द हमारी जिंदगी में रचे-बसे हैं. सो इंडिया भी उतना ही रचा बसा है जितना भारत. कुल मिलाकर आज अकादमिक(academic) होने की पोलिटिकल जिद बेमानी है, घातक है.    
       

अब जब भारत बनाम इंडिया खड़ा कर दिया गया है, तर्क वितर्क भी होंगे ही. कइयों ने हवाला दिया दुनिया के देशों का मसलन थाईलैंड(पहले श्याम) का, ईरान (पहले पर्शिया) का, म्यांमार(पहले बर्मा) का, श्रीलंका (पहले सीलोन) का, और भी. परंतु फर्क रचने बसने का है, संस्कृति में आत्मसात हो जाने का है. इंडिया तो रचा बसा है, क्या किंचित भी विचार कभी आया कि इंडिया नहीं भारत कहें ? इंडिया भी वाह वाह और भारत भी वाह वाह ! उद्घोष हो या नाम लेना हो, जैसा उपयुक्त लगा, वैसा हुआ. कभी कही किसी ने कोई आपत्ति नहीं की.  रत्न के साथ भारत की संधि उपयुक्त बैठी तो भारतरत्न कहलाया, 'मेरा' देश 'महान' बुलंद करना हो तो उपयुक्त 'भारत' लगा, सो मेरा भारत महान बुलंद हुआ.  'जीतेगा भारत' और 'जीतेगा इंडिया' में जीतेगा के साथ इंडिया ज्यादा अपील करता समझ आया तो कहा गया 'जीतेगा इंडिया'. कहने का मतलब 'इंडिया' को हिंदी ने कब का अपना(अडॉप्ट) लिया, अब जो हो रहा है, विशुद्ध राजनीति वश हो रहा है. और इस बेमानी बहस के लिए सभी पार्टियां दोषी हैं. वरना तो 2015 में केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालत से कह दिया था कि 'the country does not have to be called ‘Bharat' instead of ‘India.'  और शीर्ष अदालत ने भी कोई विभेद करने से इंकार करते हुए स्पष्ट कर दिया था,  "Bharat or India? You want to call it Bharat, go right ahead. Someone wants to call it India, let him call it India,"

निःसंदेह किसी भी पोलिटिकल अलायन्स  द्वारा स्वयं को इंडिया कहकर 'डिस्क्राइब' करना अपभ्रंश है, छलावा है. और अंत में हरे रामा हरे कृष्णा के 'फेमस' गाने की तर्ज पर यही सलाह है - "देखो ओ नेताओं (दीवानों) , तुम ये काम ना करो ; भारत या इंडिया (राम) का नाम बदनाम ना करो........ भारत(राम) को समझो, कृष्ण(इंडिया) को जानो , नींद से जागो ओ नेताओं (मस्तानों). जीत लो जन को निज के मन से, तू भी भारत है, वो भी इंडिया है !"  देश की तमाम राजनीतिक पार्टियों और नेताओं को हिंदी के जाने माने कवि भवानी प्रसाद मिश्र की लाइनें भी याद दिलाने का मन करता है -

"जिस तरह हम बोलते हैं, उस तरह तू लिख
और इसके बाद भी हमसे बड़ा तू दिख"          

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Prakash Jain

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