ये क्या कह रहे हो मोदी जी,  राहुल ने ऐसा तो नहीं कहा था !

निहितार्थ कह भी दिया तो आप क्यों हिंदू मुसलमान कर बैठे ? होता होगा कभी कि थोक में बच्चे पैदा किए, ऐसा तो हिंदुओं ने भी किया था ! आज तो मुसलमान हिंदुओं से कम बच्चे पैदा कर रहा है ! अब यदि चुनाव आयोग मोदी द्वारा मुसलमानों को घुसपैठिया और ज्यादा बच्चे पैदा करने वाले बताये जाने वाले निकृष्ट भाषण पर भी कोई कठोर कार्यवाही ना करे, महज़ चेतावनी भर देकर इति श्री इसलिए कर ले कि वे प्रधानमंत्री हैं तो बिल्कुल देश का संविधान खतरे में हैं ! किसी पूर्व पीएम के , हालांकि उन्होंने भी ऐसा नहीं कहा था जैसा मोदी बता रहे थे कि उन्होंने देश के संसाधनों पर पहले हक़ मुस्लिमों की बात कही थी, कहे का हवाला देकर वे आज इस चुनावी माहौल में ख़ुद को भले  ही सही ठहरा लें, सही तो नहीं किया उन्होंने ! 

नरेंद्र मोदी राजनीति के सबसे बड़े बाज़ीगर कहे जाते हैं फिर भी इस  चुनाव के लिए कोई ऐसा मुद्दा वे नहीं तय कर सके हैं, जो सात चरणों के इस चुनाव को पहले से आखिरी चरण तक एक सूत्र में बांध सके. दो चरण संपन्न हो चुके हैं, अब तक मोदी द्वारा या बीजेपी द्वारा उठाये गये कोई भी विषय सप्ताह भर भी नहीं टिक पाये हैं. देखा जाए तो कांग्रेस द्वारा उभारे गए मुद्दों का विरोध  करना ही बीजेपी का शग़ल रहा है और यही समझ के परे है कि मज़बूती से जमी सरकार और चुनाव अभियान में सबसे आगे रही पार्टी अपनी प्रतिद्वंद्वी को जवाब देने में ही उलझी रहे, ऐसा प्रायः होता नहीं है. देखा जाये तो  कांग्रेस के घोषणा पत्र को प्रचार प्रसार जितना मोदी टीम की वजह से मिल रहा है उतना तो कांग्रेसी ही नहीं कर रहे हैं. 

राहुल गांधी ने 6 अप्रैल को हैदराबाद में अपना पार्टी घोषणापत्र जारी करते हुए “संस्थाओं, समाज और संपत्ति” के सर्वे और उसके बाद “90 फीसदी” वंचितों के बीच उसके समुचित वितरण का क्रांतिकारी कार्यक्रम चलाने का वादा किया था जिसकी तोड़ में मोदी उतर आये अपने पसंदीदा हिंदू मुस्लिम ट्रैक पर और साथ ही बेवजह  ही महिलाओं में खौफ पैदा करने लगे कि कांग्रेस आई तो महिलाओं को मंगलसूत्र और स्त्री धन से हाथ धोना पड़ सकता है.यहीं तक नहीं रुके मोदी जी बल्कि कांग्रेस “ज़िंदगी के बाद भी रुलाएगी” का खाका भी खींच दिया. परंतु हमेशा की तरह एक बार फिर सैम पित्रोदा ने विरासत टैक्स की बात कर एक और आत्मघाती वार कर दिया अपनी ही पार्टी पर ! 

कोशिशें तो पुरज़ोर करते रहे मोदी जी ऐन चुनाव की घोषणा के पहले भी और घोषणा के बाद भी जैसे पहले दिनों में निर्वाचित निकायों में महिलाओं को आरक्षण देने का कानून हड़बड़ी में बना दिया चूंकि महिला मतदाताओं को रिझाना जो था. कानून जब लागू होगा तब होगा लेकिन बीजेपी या किसी भी और राजनीतिक पार्टी को किस ने रोका था महिला उम्मीदवारों को खड़ा करने से ? जहाँ बीजेपी ने सिर्फ 16 फीसदी महिलाओं को टिकट दिया, वही कांग्रेस ने तो उससे भी कम महिला उम्मीदवारों की घोषणा की. बस, यहीं विपक्ष मात खा जाता है. यदि कांग्रेस ने कम से कम 20 फीसदी महिलाओं को खड़ा कर दिया होता, यकीन मानिये महिला वोट पक्के थे. और फिर कांग्रेस में तो महिला प्रतिभाओं की कमी भी नहीं है मसलन सुप्रिया श्रीनेत, रागिनी नायक, मुहम्मद शमा सरीखी तेजतर्रार नेत्रियां ! पर टिकट किसी को नहीं ! शमा ने तो सवाल भी खड़े किये महिलाओं को कम प्रतिनिधित्व दिए जाने पर ! एक और सोची समझी कोशिश थी बीजेपी की अयोध्या में बन रहे राम मंदिर में भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा की और तब लगा था पूरा देश राम मय हो गया है जब तमाम किंतु परंतु को दरकिनार करते हुए प्राण प्रतिष्ठा हो ही गई. परंतु विडंबना देखिये ना तो महिला आरक्षण पर भाजपा वाले माइलेज ले पाए और ना ही राम मंदिर सर चढ़ा लोगों के ! 

बेरोजगारी, महंगाई, शिक्षा, बदहाल स्वास्थ्य सेवाएं, सामाजिक वैमनस्य, गरीब अमीर की बढ़ती खाई यानी आर्थिक असमानता, क्रोनी कैपिटलिज्म,  “वो करप्ट भुगते जो बीजेपी के शरण में ना आयें” या बोले तो राजनीतिक साम दाम दंड भेद का नंगा नाच - ज्वलंत सवाल है लेकिन इन सबों या इनमें से एक दो को जन जन का मुद्दा बनाने में विपक्ष के कमतर प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं. जिसका मुख्य कारण है तमाम पार्टियों की आपसी खींच तान जो इस बात की है कि दूजा (कांग्रेस) इतना आगे ना निकल जाए कि निज का अस्तित्व ही डांवा डोल हो जाये या दूजे की पिछलग्गू बनकर रहना मजबूरी बन जाये ! बस, इसी बात का फायदा मिल रहा है मोदी टीम को जो वोटरों को भ्रमित करने के लिए नित नये हथकंडे अपना रही है ! वोटर बेचारा सब कुछ समझ रहा है, परंतु वह इस बार फिर मोदी भरोसे ही रहता नज़र आ रहा है. 

लगता है विपक्षी गठबंधन एक दूसरे को मार्क करने में ही लीन है, तभी तो मोदी राज को एक्सपोज़ कर रही नित की घटनाएं भी वह एक्सप्लॉइट नहीं कर पा रही. मीडिया उन घटनाओं को तवज्जो देता नहीं और विपक्षी नेता हाइप क्रिएट करते नहीं ! हाँ, कुछ इंटेलेक्चुअल हैं, समझदार युवा भी हैं जो इन बातों को कम्युनिकेट करने की पुरजोर कोशिश कर रहे है, लेकिन नाकाफी है. सिर्फ इतना भर होगा कि बीजेपी या उनका गठबंधन एनडीए 275-280 पर रुक जाए जिससे मोदी तो फिर आ ही जाएगा ! कहने का मतलब सरफ़रोशी की तमन्ना भी है, बाजुओं में जोर भी है; परंतु जनता को समझ नहीं आ रही और ना ही ये "सर फिरे" समझा पाने में समर्थ हो पा रहे है कि किसके लिए ?  

कल ही सुना मध्यप्रदेश के इंदौर के कांग्रेसी प्रत्याशी ने अपना नामांकन ही वापस ले लिया और बीजेपी जॉइन कर ली. कहने को कुछ भी कहें मसलन वे पार्टी से नाराज़ थे, उनकी अवहेलना हो रही थी, एक हक़ीक़त तो यह भी है कि नामांकन वापसी के तीन चार दिन पहले ही किसी  सत्रह साल पुराने मामले में हत्या के प्रयास वाली धारा लगा दी थी पुलिस ने ! इसके पहले राजस्थान के उस्मान गनी ने हाल ही में राजस्थान के बांसवाड़ा लोकसभा क्षेत्र में एक चुनावी रैली में “धन के पुनर्वितरण” पर प्रधान मंत्री मोदी  की टिप्पणी की आलोचना करके सुर्खियां बटोरीं थी जिसके लिए प्रथम तो पार्टी ने उसे निष्कासित किया और फिर कथित शांति भंग करने के आरोप में जेल भी भिजवा दिया. अभी तक तो सीबीआई और ईडी का डर हावी था, इंडियन पीनल कोड और दंड संहिता भी एक्सप्लॉइट की जाने लगी है. इन दो घटनाओं पर विपक्ष से उम्मीद थी हाइप खड़ा करने की लेकिन कुछ भी नहीं हुआ. अधिकतर मीडिया ने तो वैसे ही विपक्ष का बॉयकॉट कर रखा है, वजहें अब बताने की ज़रूरत है भी क्या ? 

कुल मिलाकर आक्रोश की अंर्तधारा तो बह रही है लेकिन अनदेखी हो रही है चूंकि प्रस्तावित विकल्प पब्लिक का भरोसा जीत ही नहीं पा रहा है. मीडिया का तो परम धर्म ही मोदी स्तुति हो गया है. हो भी क्यों ना ! डेमोक्रेसी का हर खंभा ही धंधे बाज हो गया है तो मीडिया से शुचिता की अपेक्षा करना बेमानी है. आजकल तो विवेचना हो या अनुसंधान, हर खबर को प्रो मोदी दिखाना है, जिसे नहीं दिखा सकते, उस खबर को जस्ट इग्नोर मार देना है ! मुट्ठी भर हिम्मत करते भी हैं यूट्यूब पर या किसी चैनल पर, तो वे व्यूअर्स के काउंट से,  लाइक्स पर आत्ममुग्धता के शिकार हो जाते हैं. आम आदमी से कनेक्ट हो ही नहीं पाता उनका जिनके वोटों से चुनावी हार जीत होती है. 

देश का सबसे बड़ा स्कैम इलेक्टोरल बांड हुआ है, लाभार्थी निःसंदेह बीजेपी है जिस पर सवाल भी वाजिब है, लेकिन सवाल पूछे कौन ? “चंदा दो, धंधा लो” तब चिपकता जब अन्यों ने परहेज़ रखा होता चूंकि जो पाप रहित है वही पहला पत्थर फेंक सकता है. बीजेपी इसी ब्रह्मवाक्य पर स्कोर कर पा रही है, जबकि विपक्ष भ्रष्टाचार के सबसे बड़े लाभार्थी को कठघरे में खड़ा नहीं कर पा रहा है.

चलते चलते एक सीरियस बात और, पिछले एक दशक से सुनते आये हैं मोदी ने देश का सम्मान अंतराष्ट्रीय फलक पर खूब बढ़ाया है. मुस्लिम देश भी मुरीद हो चुके हैं मोदी के ! जबकि वस्तुस्थिति विपरीत है. पिछले दिनों ही यूएई भ्रमण के दौरान वहां रह रहे प्रवासी भारतीयों से इंटरेक्शन हुआ और जानकार आश्चर्य हुआ कि यूएई में अब भारतीयों से पूछा जाता है, "तुम संघी तो नहीं हो".

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Prakash Jain

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