खबरी चूहों की कतरने .......जारी है ! .........

किसने परकटी उड़ाई, बताने की जरूरत नहीं है ! तो ३३ करोड़ ८९ लाख ६३ हजार ११७ लोगों को क्या लगा है ? क्या वे मुंबई रेप्लिका बता रहे हैं जहां वैक्सीन की जगह सेलाइन वाटर का जैब लगा दिया गया ? वैक्सीन थी ही नहीं तो पंजाब और राजस्थान में स्कैम किस चीज के हो गए ? कल वो कह सकते हैं कि वे कोविड १९ के टीके की बात ही नहीं कर रहे थे !   

तब जब सोशल मीडिया नहीं था, एक राजनीति के आई एस जौहर हुआ करते थे जो इंदिरा जी के चिर प्रतिद्वंद्वी थे , उनके खिलाफ चुनाव भी लड़ते थे ! आज ५१ वर्षीय युवा उसी अंदाज में हैं ! कोई आश्चर्य नहीं होगा कि वे अगला चुनाव नरेंद्र मोदी के खिलाफ लड़ें ! अग्रिम शुभकामनाएं ! 

कही सलाइन वाटर तो नहीं हैं ?

बात मुंबई के कांदिवली स्थित हाउसिंग सोसाइटी तक की ही नहीं रही। पुलिस ने कहा है कि २५ मई- ६ जून के बीच मुंबई में आयोजित हुए ९ फर्ज़ी टीकाकरण शिविरों में २०६० से अधिक लोगों को कोविड-19 वैक्सीन की जगह सेलाइन वॉटर की डोज़ दी गई। पुलिस ने कहा, "हमारे पास आरोपियों के खिलाफ पुख्ता सबूत हैं...कई आरोपियों ने कुबूल भी किया है कि उन्होंने सेलाइन वॉटर का इस्तेमाल किया।" 

डिज्नी हॉटस्टार का एम्बार्गो रास नहीं आया !

डिज्नी हॉटस्टार का ग्रहण की समीक्षा इनवाइट के लिए एम्बार्गो नागवार गुजरा लेकिन न्यूयॉर्क टाइम्स की जॉर्नलिस्ट के लिए जॉब पोस्ट मंजूर है ! 

पिछले दिनों डिज़्नी+हॉटस्टार पर ‘ग्रहण’ नाम की एक सीरीज रिलीज़ हुई और परंपरानुसार प्लैटफॉर्म ने २० जून को समीक्षकों को स्क्रीनर भेजा ताकि वो समय से उनकी सीरीज़ देखकर रिव्यू दे दें ! यही प्रेस शो कहलाता है।  लेकिन  ‘ग्रहण’ के स्क्रीनर के साथ डिज़्नी+हॉटस्टार ने फिल्म समीक्षकों को  ‘इंस्ट्रक्शंस टु जर्नलिस्ट्स एंड रिव्यूअर्स’ भी भेजा जिसका मजमून इस प्रकार है - 

* इस सीरीज़ के किसी सीन-प्लॉट या किरदार की तुलना असल घटना या व्यक्ति से न करें।
* अपने रिव्यू में किसी धर्म या समुदाय विषय की गलत व्याख्या करने से बचें। 
* इस शो में दिखाए गए सिचुएशंस को आज के समय में या पहले हुई किसी भी राजनीतिक घटना से न जोड़ें। 
* रिव्यू लिखते वक्त ये ध्यान रखें कि हम किसी सामाजिक या राजनीतिक एजेंडा या समुदाय विशेष के बारे में कोई पॉइंट प्रूव करने की कोशिश नहीं कर रहे हैं।  

चूंकि ग्रहण का सब्जेक्ट "चौरासी" है और निःसंदेह संवेदनशील है, प्लेटफार्म ने अपनी रिस्पांसिबिलिटी ही निभायी ! लेकिन फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड को नहीं भाया। उन्होंने  "NOT" को आदेशात्मक लिया। गिल्ड के अनुसार क्रिटिक्स को निर्देश देना कि रिव्यू कैसे लिखें,  बड़ी असम्मानजनक बात है।  ये बिल्कुल वैसे ही है, जैसे समीक्षक मेकर्स को ये बताएं कि सीरीज़ कैसे बनानी चाहिए। गिल्ड की चेयरपर्सन अनुपमा चोपड़ा  ने कहा कि ये कदम प्लैटफॉर्म और शिक्षित, अनुभवी और इंडीपेंडेंट पत्रकारों के बीच के प्रोफेशनल रिलेशनशिप को खराब करने वाला है। साथ ही लिखा -

”जर्नलिज़्म के दूसरे क्षेत्रों की तरह फिल्म जर्नलिज़्म का भी सिद्धांत है कि समीक्षक बिना किसी डर, प्रभाव, पक्षपात और हेरफेर के फिल्म या सीरीज़ पर लिखे या उसकी समीक्षा करे। इस तरह की लापरवाही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन करने वाली है। 

गिल्ड चाहेगा कि डिज़्नी+हॉस्टार गंभीरता से विचार करे कि वो पत्रकारों और समीक्षकों से किस तरह की एंगेजमेंट चाहता है। साथ ही तत्काल प्रभाव से इन आपत्तिजनक निर्देशों को वापस ले और हमारी फ्रेटरनिटी के साथ अपने संबंधों में सेंसर करने का काम न करे।"

न्यूयार्क टाइम्स ने नरेंद्र मोदी के लिए अपनी घृणा का खुला इजहार कर दिया !

चूंकि बात जॉर्नलिस्ट की हो रही है, तो नामचीन इंटरनेशनल मीडिया हाउस न्यूयॉर्क टाइम्स की इंडिया में पत्रकार के लिए दी गयी जॉब पोस्ट का जिक्र इसलिए लाजमी हो जाता है कि अभी तक लिबरल मीडिया ने इस पर आपत्ति दर्ज नहीं कराई है।द न्यूयॉर्क टाइम्स (NYT) की १ जुलाई को लिंक्डइन पर डाली गयी  जॉब रिक्रूटमेंट पोस्ट को इन्टरप्रेट करें तो एक व्यू ये बनता है कि अभ्यार्थी ऐसा हो जो भारत सरकार के विरुद्ध लिख सके और सत्ता बदली की उनकी कोशिशों में अपना योगदान दे सके। 

रीना - आमिर (१५ साल ) बनाम किरण -आमिर (१५ साल)

कभी किरण -आमिर को बढ़ती असहिष्णुता के मद्दे नजर भारत छोड़ने तक का ख्याल आया था और आज दोनों एक दूसरे से ही इस कदर असहिष्णु  हो गए कि १५ साल के बंधन से अलग हो गए। कुछ बिल और मेलिंडा के जॉइंट स्टेटमेंट सरीखा बयान दोनों का आया है - "१५  साल साथ बिताने के दौरान हमने हंसी-खुशी से हर पल को जिया और हमारा रिश्ता विश्वास, सम्मान और प्यार के साथ आगे बढ़ता रहा। अब हम अपनी जिंदगी का नया अध्याय शुरू करेंगे-जो कि पति-पत्नी की तरह नहीं बल्कि को-पेरेंट और एक-दूसरे के लिए परिवार की तरह होगा। हम फिल्मों के लिए और अपने पानी फाउंडेशन के लिए साथ काम करते रहेंगे।"

दोनों की रिश्तेदारों से , लोगों से अपेक्षा है  कि उनकी तरह लोग भी इस तलाक को अंत की तरह नहीं, बल्कि एक नए सफर की शुरुआत के रूप में देखेंगे। 

संयोग कहें या कुछ और आमिर की पहली शादी, जो रीना के साथ हुई थी,  भी तक़रीबन १५-१६ साल ही चली थी।  उस शादी से दो संतानें हैं। और अब किरण के साथ भी साथ १५ साल ही रहा और एक संतान इस शादी से भी है।क्या मिस्टर परफेक्शनिस्ट के १५ साल भर ही परफेक्ट होते हैं ?  कल कोई नया परफेक्ट कनेक्शन न उजागर हो; हालांकि सुगबुगाहट शुरू हो गई है !

ग्राफ(सोर्स NDTV ) जो राहुल गाँधी ने शेयर किया है !

राहुल गांधी ने एक ग्राफ शेयर किया है जिसके मुताबिक अगर तीसरी लहर को रोकना है, तो औसतन ६९.५ लाख वैक्सीनेशन रोजाना किए जाने चाहिए, लेकिन सरकार इस मामले में पीछे है। रोजाना अभी सिर्फ औसतन ५०.८ लाख वैक्सीन ही लगाई जा रही है। इस ग्राफ के साथ राहुल ने तंज कसते हुए लिखा कि माइंड द गैप यानि टारगेट और रोजाना हो रहे वैक्सीनेशन को देखें, जिसमें बहुत ज्यादा दूरी है। इससे पहले शुक्रवार को उन्होंने ट्वीट कर लिखा था कि जुलाई आ गया है, वैक्सीन नहीं आयीं। इसके साथ राहुल ने #WhereAreVaccines हैशटैग इस्तेमाल किया।

अब थोड़ा सीन पलट दें ! राहुल जी ने यदि पूर्वाग्रह न रखा होता तो वे इसे अचीवमेंट बताते चूँकि GOI ने टारगेट का ७३ फीसदी अचीव कर लिया है और साथ ही मई के रोजाना १५ लाख टीकाकरण की तुलना में जून में ३० लाख प्लस लोगों का टीकाकरण हुआ ; कहने का मतलब डबल हुआ ! तो बिना सरकार का जिक्र किये वे दो शब्द ट्वीट कर सकते थे ," well done Team India !"  यकीन मानिए सौ फीसदी जनता पसंद करती और कहती #GreatRahulGandhi जिन्होंने #HatredModi पर देश को तरजीह दी, टीम इंडिया की बात की ! 

अदालतों में अनर्गल बातें क्यों हो रही हैं ?

राजस्थान हाईकोर्ट ने बार काउंसिल ऑफ राजस्थान को एक वकील के खिलाफ उचित कार्रवाई करने के लिए कहा, जिसने अदालत के समक्ष गंदी भाषा का इस्तेमाल किया और अदालत को गाली दी यानी अवमानना का मामला बनता है। कोर्ट ने कहा कि वकील के इस तरह के डराने-धमकाने वाले और मानहानिकारक कृत्य और न्यायिक प्रणाली को नीचा दिखाने के लिए उसके द्वारा अपमानजनक आरोप लगाने से वह स्तब्ध है। अदालत ने यह भी कहा कि वकील ने निर्णायक न्यायाधीश के साथ-साथ संस्था के प्रति भी अनादर के अपने सरासर कृत्य के साथ सभी हदें पार कर दीं।

क्या अदालतों ने सोचा है ऐसा क्यों हुआ ? ऐसा आम हो रहा है आज कल सोशल मीडिया पर , पब्लिक गैदरिंग में ! न तो अदालतें स्वतः संज्ञान लेती है और न ही पीड़ित पक्ष का , यदि अदालत पहुंचा तो, फेवर करती है।  तक़रीबन सभी मामले फ्रीडम ऑफ़ स्पीच या एक्सप्रेशन की दुहाई देकर डिसमिस हो जाते हैं ! सो आंच तो पहुंचेगी ना ! 

कतरनें रोज कुतरी जा रही हैं , जो हम बटोर पा रहे हैं, परोसते रहेंगे .... जारी रहेगा .......३ .....भी !

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Prakash Jain

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