भारत का नारीवाद चुप है हिजाब की खिलाफत कर रही ईरानी महिलाओं पर ! चुप ना रहे तो क्या करे ? अजीब विडंबना है ! हर कुछ जो घटता है या नहीं घटता है, जो होता है या नहीं होता है, सुधारात्मक भी हुआ या किया गया ; विरोध या समर्थन में मोदी सरकार की ख़िलाफ़त ही होनी चाहिए ! और दुर्भाग्य से ईरान के घटनाक्रम के पहले ही हिजाब विवाद ने कर्नाटक राज्य में दस्तक दे दी ! फ़र्क़ था तो यहाँ हिजाब के ख़िलाफ़ सत्ता का साथ था और ईरान में सत्ता हिजाब के लिए है ! और इसी फ़र्क़ ने भारत के नारीवाद की पोल खोल दी !
ईरान में महिलाओं का हिजाब की अनिवार्यता का विरोध चरम पर है, अस्सी से अधिक लोग मारे जा चुके हैं ; जिनकी जान गई उनमें अनेकों टीनएजर लड़कियां हैं, करियर ओरिएंटेड सफल महिलाएं भी हैं। महसा अमीनी की मृत्यु की वजहों से आरम्भ हुआ जागरण दुनिया के तमाम देशों की महिलाओं में चेतना जगा गया है, यहाँ तक कि सीरिया सरीखे कट्टर मुस्लिम देश की महिलाएं भी सड़क पर हैं। परंतु भारत में महिलाएं आंदोलित नहीं हुई हैं। इक्का दुक्का सहानुभूति के बयान भर जरूर सामने आये हैं मसलन फेमस अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा ने इंस्टा पर पोस्ट डाला, " ईरान और दुनियाभर में महिलाएं अपनी आवाज उठा रही हैं, सार्वजनिक रूप से अपने बाल काट रही हैं और महसा अमिनी के लिए विरोध कर रही हैं. जबरदस्ती की चुप्पी के बाद जो आवाजें उठती हैं, वो ज्वालामुखी की तरह फूटती हैं! और उन्हें दबाना नहीं होगा. मैं आपके साहस की तारीफ करती हूं. पितृसत्तात्मक व्यवस्था को चुनौती देना और अपने अधिकारों के लिए लड़ना, अपनी जान जोखिम में डालना आसान नहीं है, लेकिन आप साहसी महिलाएं हैं जो हर दिन ऐसा कर रही हैं, चाहे इसकी कीमत कुछ भी हो."
कौन करेगा यहाँ आंदोलन ? दरअसल महिलाओं के लिए आवाज बुलंद करने वाली महिलाएं ही इसके प्रति निरपेक्षता बरत रही हैं क्योंकि वे अजीब से द्वंद्व में हैं। कल ही कथित नारीवादी जमात कट्टरता की पक्षधर जो थीं ! पक्षधर क्यों हुई, समझना कोई रॉकेट साइंस नहीं है ! हाँ, अब वे ऐसा क्यों कर रही हैं , समझ के परे हैं।
हिजाब के विरोध में अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, ग्रीस, स्वीडन, आस्ट्रिया, फ्रांस, इटली, स्पेन, जर्मनी, इराक, लेबनान और तुर्की में प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतर आये हैं। तमाम स्थापित सेलेब्रिटीज़ खुलकर ईरानी महिलाओं का समर्थन कर रही हैं। पिछले दिनों ही ईरानी एक्ट्रेस मंदाना करीमी ने हिजाब के खिलाफ महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में एक अकेला विरोध प्रदर्शन किया जिसपर लेखिका तसलीमा नसरीन ने अपने ट्वीटर हैंडल पर लिखा " वह अकेले विरोध क्यों कर रही है? हिजाब पहनने के लिए मजबूर महानगर की मुस्लिम महिलाएं ईरानी अभिनेता के विरोध में शामिल क्यों नहीं हो रही हैं।" सऊदी लेखिका हैदर ने हिजाब से अपनी जूती साफ कर अपना विरोध जताया तो तुर्की की गायिका मेलेक मोसो ने मंच पर अपने बाल काटकर विरोध प्रदर्शन किया। ईरानी महिलाओं से अफगानी महिलाएं भी प्रेरित हुई और उन्होंने देश के अलग अलग प्रांतों में हजारा समुदाय की स्कूली लड़कियों के कत्लेआम पर आवाज बुलंद की।
दूसरी तरफ भारत की बात करें तो केरल में 26 सितम्बर, 2022 को मुस्लिम यूथ लीग, मुस्लिम स्टूडेंट फेडरेशन और स्टूडेंट इस्लामिस्ट आग्रेनाइजेशन ने कोझिकोड में जुलूस निकालकर प्रोविडेंस गर्ल्स हायर सेकंडरी स्कूल के यूनिफार्म की बिना पर हिजाब के पहनने पर रोक लगाने के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की। इसके पहले कर्नाटक में जो हुआ सो सबने देखा है। हालांकि हिजाब विवाद से संबंधित तमाम मामले अभी उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन है, जिरह भी पूरी हो चुकी हैं एवं निर्णय, जिसकी प्रतीक्षा थी, आकर भी नहीं आया स्प्लिट वर्डिक्ट जो है ! माननीय जस्टिस धूलिया ने राइट टू एजुकेशन के लिए चॉइस का विक्टिम कार्ड जो खेल दिया । जबकि जस्टिस गुप्ता ने हाई कोर्ट के शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर बैन हटाने से इनकार के फ़ैसले पर मोहर लगाते हुए कर्नाटक सरकार के समानता, अखंडता और सार्वजनिक व्यवस्था में बाधा पहुंचाने वाले कपड़ों के लॉजिक पर मोहर लगा दी !
क्या जस्टिस धूलिया इस कटु सत्य को नकार सकते हैं कि महिलाओं के कपड़े हमेशा से पितृसत्तात्मक समाज के निशाने पर रहे हैं ? जिन लड़कियों के राइट टू एजुकेशन की बात उन्होंने की, उनके अधिकार का हनन तो उस पितृसत्ता की इन लड़कियों को हिजाब पहनाने की चॉइस ने किया, लड़कियों की चॉइस तो थी ही नहीं ! उन्हें तो ढाल बनाया गया कम्यूनल अजेंडा के तहत ! कुल मिलाकर स्थिति समान है ईरान हो या हिन्दुस्तान हो ! पितृसत्ता कॉमन है। हाँ , बड़ा फर्क है - वहां चॉइस हथियार है हिजाब के खिलाफ और यहाँ चॉइस हथियार है हिजाब के लिए ! कहीं किसी ने क्या सही ट्वीट किया है - 'Hijab may be a choice, but it's not a free choice.'
तो जहाँ एक तरफ दुनिया की महिलाएं हिजाब के विरुद्ध सड़कों पर हैं, प्रदर्शन कर रही हैं, मुखर हो रही हैं; वहीँ भारत में मुस्लिम और नारीवादी तबका हिजाब के लिए आंदोलनरत है। ज्यादा दिन नहीं हुए इसी साल फरवरी में तमाम नामी गिरामी लेफ्टिस्ट महिलाएं मसलन राणा अयूब, अरफ़ा खानम , स्वरा भास्कर एक सुर से मुस्लिम लड़कियों को हिजाब पहनने की छूट विद्यालयों के नियमों को तोड़कर दिए जाने के पक्ष में मुहिम चलाए हुए थीं. उन्हें समर्थन तमाम विरोधी राजनीतिक दलों की महिला नेत्रियों मय प्रियंका वाड्रा से भी मिल रहा था। और तो और नोबेल प्राइज विजेता मलाला भी कूद पड़ी थी - हिजाब के विरोध में नहीं हिजाब के पक्ष में !
सवाल है कौन सी बात है जो देश के नारीवाद को ईरान की महिलाओं के पक्ष में जाने से रोक रहा है ? स्पष्ट है नारीवाद को लगा कि यदि ईरान की महिलाओं का समर्थन किया तो वे ना केवल इस्लाम विरोधी करार दे दी जाएंगी बल्कि 'संघी' भी कहलाएंगी ! अजीब सा विरोधाभास ही है ! ईरान की महिलाएं हिजाब के थोपे जाने को स्वतंत्रता का हनन मानती है, निजी चॉइस से वंचित किया जाना मानती है , प्रगति में बाधा समझती हैं ; वही दूसरी ओर अब भारत में नारीवाद ने इस कठिन परिस्थिति से निकलने के लिए 'चॉइस' की ही आड़ में तोड़ निकाल लिया है तभी तो भिवानी में सीपीएम ने ईरानी महिलाओं के समर्थन में जुलूस निकाला और बयान जारी किया कि स्त्रियों को कपड़े पहनने व रहन-सहन की आजादी हो इसके लिए वे संघर्षरत हैं। लाइन यूँ ली गई हैं कि -
ईरान की ये महिलाएं नहीं चाहतीं कि उन्हें जबरन हिजाब पहनाया जाए. ये हिजाब जला रही हैं, विरोध में अपने बाल काट रही हैं। ये कहना चाहती हैं कि हिजाब या नो हिजाब, इनकी मर्जी है और इसकी कद्र होनी चाहिए।
कर्नाटक की लड़कियां हिजाब पहनकर कॉलेज जाना चाहती हैं. ये उनकी मर्जी है और इसकी भी कद्र होनी चाहिए। अमेरिका की ये महिलाएं गर्भपात का अधिकार चाहती हैं. ये उनकी मर्जी है और इसकी इज्जत होनी चाहिए।
लेकिन पब्लिक बेवकूफ नहीं हैं, खूब समझती हैं कि कक्षा 11 में पढ़ने वाली अमूमन अठारह वर्ष से काम आयु की नाबालिग लड़कियों की मर्जी के नाम पर कौन धर्मान्धता और कट्टरवादी सोच के अधीन मर्जी चला रहे हैं और क्यों चला रहे हैं ? क्या कक्षा 11 में पढ़ने वाली बच्चियां अपने-आप ही हिजाब आदि को पहनने के लिए अदालत चली जाएंगी या फिर आन्दोलन करने लगेंगी?
हिजाब को लेकर बात चॉइस की है ही नहीं, ना ही ईरान में और ना ही भारत में ! बात कट्टरता की खिलाफत की है।हिजाब ईरान का हो या भारत का या फिर किसी अन्य देश का, कॉमन फैक्टर धार्मिक कट्टरता है, BIGOTRY है ! हाँ, भारत में हिजाब का समर्थन पोलिटिकल भी है !
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