शेक्सपियर के फेमस नाटक "Comedy of Errors" का मंचन दशकों पहले देखा था ! थीम थी कॉमेडी ग़लतियों से प्रेरित होती है। ग़लतफ़हमियाँ भी कमोबेश ग़लतियों का ही नतीजा होती हैं ! तो ग़लतफ़हमी में हुआ मर्डर सिंपल ही होता है लेकिन प्लाटलाइन्स भी सिंपल हो, जरूरी नहीं हैं। कई मर्डरों के पीछे लालच ही मूल वजह है, तो वहीं ऑनर किंलिंग के अलावा ‘लव जिहाद’ भी है।
राइटर डुओ अखिलेश और प्रतीक के दिमाग में निश्चित ही कॉमेडी ऑफ़ एररस थी और साथ ही पिछले साल की बरेली (उत्तर प्रदेश) की ऑनर किलिंग सरीखी घटना भी उनके दिमाग में थी जिसमें विधायक राजेश मिश्र की बेटी साक्षी ने अपने प्रेमी अजितेश से शादी के बाद मीडिया में वीडियो जारी करके आरोप लगाया था कि हम दोनों को पिता से जान का खतरा है। और वही दिमाग नॉटी भी हो रखा था मध्यप्रदेश सरकार के प्रस्तावित लव जिहाद के कानून के बारे में सुनकर ! बस, आइडिया क्लिक हुआ और तैयार कर दिया डार्क ह्यूमर मर्डर मिस्ट्री का एक खूबसूरत प्लाट जिसके इर्दगिर्द अनेकों सबप्लॉट्स या प्लाटलाइन्स भी हैं !
मौका मिला रंगबाज सचिन पाठक को निर्देशन का तो उन्होंने बखूबी निभाया भी ! ओटीटी प्लेटफार्म के उसूलों से बगावत तो हो नहीं सकती थी लेकिन दाद देनी पड़ेगी जिस प्रकार मसालों को दिखाने में मर्यादा रखी गयी है ! संवादों में गाली गलौज नदारद हैं, एरटिज़म के मामले में भी भरसक प्रतीकों से काम चला लिया गया है। थोड़ा बहुत जो भी है , अखरता नहीं हैं चूँकि ध्यान देने के लिए पर्याप्त थ्रिल है, जानदार कहानी है, तानाबाना बनावटी नहीं लगता !
लेकिन हाल ही नेटफ्लिक्स की A suitable boy को लेकर जो बवाल मचा है, सो तय है लव जिहाद रोकने के लिए कानून बनाने की कोशिशों के दौर में ही आयी इस वेबसीरीज को भी विवादों में घसीटा जायेगा ! फिर बात का बतंगड़ बनाने वालों के लिए आग में घी डालने वाले और भी ट्रैक हैं इस वेब सीरीज में मसलन कुंडली कम पढता कांड ज्यादा करवाता सुपारी लेने वाला पंडित, हिंदू लड़की का मुस्लिम लड़के के साथ गायब होना और ऊपर से एक प्रसंग में उस्मान का लड़की से कन्वर्ट हो जाने की राय भी देना ! सबसे बड़ी बात जो इन राइटविंगर्स को अखरेगी वह है पहला सीजन कहीं ना कहीं मैसेज यही देता प्रतीत होता है कि इंटरफेथ प्रेमी प्रेमिका सबसे ज्यादा अहानिकर हैं क्योंकि वे प्यार के धागे में बंधे हैं !
थ्रिल बना रहे बिंज वाच का तो कहानी नहीं बताएँगे ! सिर्फ इतना समझ लीजिये कि किरदारों का आर्क ऐसा क्रिएट हुआ है कि आखिरी मौके तक समझ नहीं आता कि आगे क्या होने वाला है ! लेकिन जब जब जो जो होता है सो सो गलती से ही होता है ! गलत पते पर गलत आदमी से मुलाकात , गलत लड़की की गलती से हत्या , सही पुलिसमैन गलत और गलत पुलिसमैन सही और पता नहीं ढेरों गलतफहमियां यूँ घटती हैं कि कुछ भी बनावटी नहीं लगता।
कुल सात एपिसोड्स हैं और समय की बात करें तो कुल पौने चार घंटों में बिंज वाच कर सकते हैं। खूबी है कि क्लाइमेक्स तक ज्यादातर किरदार शहीद हो जाते हैं लेकिन दो को जिंदा रख दिया गया है इस मैसेज के साथ कि फिर मिलेंगे ! सुकून भरा संकेत राइटविन्गर्स को भी दे दिया गया है कि उनकी तमाम नापाक कोशिशों के बावजूद प्रिया और उस्मान की मोहब्बत परवान चढ़ गयी है !
अब बात कर लें एक्टिंग की , कलाकारों की ! सभी ए वन हैं ! सुशांत सिंह व अमित सियाल का अभिनय शानदार है। सुशांत सिंह को नजरअंदाज करना आसान नहीं है, वह मानवीय हिटमैन के रूप में शानदार हैं। संतोष के किरदार में अभिनेता अमित सियाल कम प्रतिभावान नही है। शायरियां सुनाते हुए जिस शांत मन के साथ वह हत्याएं करते हैं, उनकी इस अदा पर फिदा हो जाएंगे आप ! यह उनके अभिनय का कमाल है कि जब तक आवश्यक न हो, उनका भयानक रूप सामने नहीं आता है ! मोहम्मद जीशान अय्यूब एक अच्छे अभिनेता हैं, इसमें कोई दो राय नही है। वह अपने मनीष के किरदार के साथ पूर्ण न्याय करते हैं। जब मनीष के किरदार में वे अपने आंसू से भरे चेहरे के साथ अपने दर्द को चूहे के संग साझा करते हैं, तो यह मोनोलॉग वाला दृश्य कमाल का है। निःसंदेह वे एक बेहतरीन अभिनेता है और चूँकि वे लेफ्टविंगर हैं, भले ही डायरेक्ट कनेक्ट ना भी हो वेबसीरीज में, राइटविन्गर्स ट्रॉल आर्मी उन्हें नहीं बख्शेगी ! पंडित जी के किरदार को जिस अंदाज में अभिनेता यशपाल शर्मा ने जीवंत किया है, वह कमाल का है लेकिन उनके किरदार को विस्तार देने का स्कोप नहीं था शायद ! पर उनके पल्ले कुछ अच्छे संवाद जरुर आये हैं। पुलिस इंस्पेक्टर के किरदार में विक्रम कोचर थोड़े कमजोर पड़ गए हैं, जबकि गोपाल दत्त प्रभावित करते हैं और हंसाने में भी कामयाब रहे हैं। पृथ्वी बार के वेटर शंकर के किरदार में दुर्गेश कुमार का अभिनय लाजवाब है और उनका बार बार १७ सालों वाला डायलॉग दोहराना तो कमाल का है।
ऋचा के किरदार में प्रिया आनंद ने निराश किया है। इसके अलावा तेजस्वी सिंह, अंकुर पांडे, विनय वर्मा, वेदिका दत्त ने ठीक ठाक अभिनय किया है। विजय राज भी नैरेटर की भूमिका में ठीकठाक ही हैं !
अंत में सबसे अच्छी बात है कि कहीं भी संवाद अब्यूजिव नहीं हैं ना ही द्विअर्थी हैं ! हाँ, एक कंडोम वाला प्रसंग है जिसे अवॉयड किया जा सकता था ! एक तो स्लोगन टाइप ही है - डरते हैं क्या ? टी शर्ट पर भी है ; शायद युवाओं में पॉपुलर भी हो जाय ! एक और इसी स्टारबक्स पीढ़ी को पसंद आएगा - कैपचुनो की कसम ! और भी हैं जो ह्यूमर क्रिएट करते हैं - फिंगर ट्रिप पर जो फिंगर चिप्स है उसपर फिंगर प्रिंट है या नहीं ; मसाला डोसा खा रही थी उसके साथ , पेपर मसाला डोसा नहीं खा रही थी !
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