नेटफ्लिक्स मूवी लूडो रिव्यू : अब तक शतरंज के रेफेरेंस पर जिंदगी उकेरी जाती रही हैं लेकिन इस बार रेफेरेंस लूडो का हैं - लूडो इज़ लाइफ ; लाइफ इज़ लूडो !  

बीते दिनों लॉकडाउन में लूडो गेम की खूब डिमांड बढ़ी। मोबाइल फोन में लूडो गेम के ऐप पर भी लोगों ने ये गेम खूब खेला।  लूडो में हारने वालों की तरफ से कई सारे क्रिमिनल केस भी सुनाई पड़े। अब सारे लूडो गेम के ऐप डेवेलपर्स का अनुराग बसु ने भला कर दिया है ! 

आप जीतो या हारो, अल्टिमेटली सारी गोटियों को पहुंचना तो एक ही घर में है ना.... अनुराग के हिसाब से जिंदगी भी इसी तर्ज पर चलती हैं ! 

सिर्फ ५ से १० मिनट शुरुआत में फिल्म आपके सब्र का इम्तिहान लेती है, स्लो लगती है, किरदार समझ नहीं आते लेकिन उसके बाद तो हर पल एंटरटेन करती है और अमूमन भारी कहलाते ढाई घंटे आराम से निकल जाते हैं ! 

कहानी के बारे में बस इतना ही बताएँगे कि जिस तरह से लूडो में चार खाने होते हैं, यहां पर भी चार कहानियां हैं और पासे के किरदार में है सत्तू (पंकज त्रिपाठी) जो इन घरों के सभी कैरेक्टर्स को कभी दूर और कभी पास लाता है ! 

अब मूवी के तमाम पहलूओं पर गौर करें ! अनुराग बासु जैसी शख्शियत की कृति होगी तो डाइमेंशन्स विस्तार पाएंगे ही ; वे राजनीति भी छू लेंगे,  रिश्तों की डार्क परतें भी उधेड़ देंगे , कॉमेडी उनकी गुदगुदा भर देगी ! क़ाबलियत उनकी हमने पहले भी देखी है बर्फी में , काइट्स में , लाइफ इन ए मेट्रो में भी! और प्रेजेंटेशन का तरीका तो लीक से हटकर रहता ही है उनका फिर भले ही विक्रम भट्ट कैंप की साया , मर्डर , गैंगेस्टर ही क्यों ना हो ! लूडो चूँकि ओटीटी प्लेटफार्म नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो रही हैं तो इसमें फ़ाउल लैंग्वेज भी है,  एडल्ट कंटेंट्स भी हैं ! सो पहले ही बता दिया ताकि ऐसा ना हो लूडो, चूँकि बच्चों का खेल कहलाता है, नाम के बहकावे में आकर अपने स्मार्ट टीवी पर परिवार के साथ देखने बैठ जाएँ और जब जब शर्मसार हों बगले झांके ! साथ ही जानकारी भी दे दें अब ओटीटी पर दिखने वाला सिनेमा सूचना और प्रसारण मंत्रालय के अधीन हो चला है। लेकिन शायद लूडो खुशकिस्मत रही है, रेगुलेट होने से बच गयी हैं ! लेकिन बतौर समीक्षक हमें सरकार के इस फैसले पर एतराज है ! भई ! ओटीटी प्लेटफार्म हर फिल्म हर वेबसीरीज के लिए बाकायदा स्पष्ट कर देता है मसलन न्यूडिटी , सेक्स , स्ट्रांग लैंग्वेज , १८ + आदि आदि ! तो रेगुलेशन की क्या जरुरत है ? आखिर हम इतने परिपक्व तो हैं ही कि निर्णय ले सकें ! फिर ओटीटी प्लेटफॉर्म्स में पैरेंटल कंट्रोल ऑप्शन भी तो है ! एक बात और , इस फिल्म को आप अपने बड़े हो चुके बच्चों के साथ देखें या नहीं , आपका अपना फैसला होगा ! वैसे हमारी मानें तो परहेज ही करें ! 

मूवी में सूत्रधार द्वय हैं - अनुराग स्वयं और राहुल बग्गा ! आपको लगेगा ये दोनों क्यों हैं ? तो इनकी बातें ध्यान से सुनें ; फिल्म से ज्यादा एन्जॉय करेंगे ! उनकी आपस की बातचीत में सैटायर ऐसा हैं कि आलोचना भी है, चुभन भी है लेकिन अवमानना नहीं है ! कुणाल कामरा जैसे बेवकूफों को उनसे सीखने की जरुरत है ! बानगी देखिये मोदी की चाय पे चर्चा की तर्ज पर लूडो पे चर्चा ; चर्चा का टॉपिक है - पाप और पुण्य ! सवाल  पाप और पुण्य के सही मायने क्या है तो जवाब है आत्मनिर्भर बनों और खुद ढूंढो भई ! उड़ा दी ना धज्जी मोदीकारिता की ! पाप - पुण्य , स्वर्ग - नरक , सही -गलत सब नजरिया है;  इंसान के दिमाग की उपज है , इस आउट ऑफ़ कंट्रोल दुनिया को कंट्रोल करने के लिए ! कोरोना ने लाखों लोगों की जान ले ली , क्या सब पापी थे ? क्या फलसफा समझा दिया अनुराग ने बेचारे राहुल बग्गा को ! अखरने को तो ये बात भी राहुल प्रेमियों को अखर सकती हैं कि अनुराग के तीन तीन किरदारों का नाम राहुल क्यों है ?  उधर हमारे पूजनीय श्री श्री रविशंकर जी महाराज जब सुनेंगे Art of Living की जगह Art of Leaving का लॉजिक तो सिर्फ मुस्करा भर ही ना देंगे ! नाराज हुए भी तो क्या बिगाड़ लेंगे ?  

सम्राट चक्रबर्ती ने सिचुएशन के हिसाब से क्या जबरदस्त डायलॉग बोलवाये हैं ?  लैंग्वेज फ़ाउल भी करवाई है तो शालीनता बरकरार रखी हैं ! अनुराग ने स्टैंडअप कॉमेडियन के पपेट का ऑउटफिट भी बदल दिया और क्या गहरा तंज कहलवा दिया उसके मुख से - ये सरकार और हम सरकार की गोद में बैठे मीडिया : जो बात कहने में इनकी फटती है वो बात हमसे कहलवाते हैं ! पॉर्न पर ह्यूमर तो गजब का क्रिएट करवा दिया - Porn sets wrong expectations ! आई लव पॉर्न ; कितने मेहनती लोग हैं और जहाँ से भी देखनी शुरू कर दो स्टोरी पूरी समझ में आ जाती हैं ! फिर चुटीले संवाद तो हर किरदार के हिस्से आये हैं ! आलू का दर्द देखिये - एक आदमी सीता जैसी पत्नी को छोड़कर शूर्पणखा से लगा हुआ है और शूर्पणखा का पति उससे धंधा करवा रहा है ! ना सीता ही सुरक्षित है ना ही शूर्पणखा !   

अब बात करें एक्टिंग की , परफॉरमेंस की ! सबसे पहले कह दूँ कि हंसी-मज़ाक और एक्शन के बीच फिल्म की कहानी समझने में जो थोड़ी मुश्किल है या किसी को हो सकती है, वह एक्टरों के शानदार परफॉरमेंस में दब सी जाती है; आप सिर्फ उन्हें निहारते रह जाते हैं ! ये तो हो गयी जनरल बात ! स्पेसिफिकल्ली बताएं तो सबसे बड़ा सरप्राइज दिया है बाल कलाकार इनायत वर्मा ने मिनी के किरदार में ! किसी की नजर ना लग जाए उसे ! अभिषेक बच्चन ने बिट्टू के रोल में मणिरत्नम के युवा के उनके किरदार की यादें ताजा कर दी ! क्या खूब जमें हैं वे एक सह्रदय बदमाश के रोल में और मिनी के साथ उनकी केमिस्ट्री तो लाजवाब है ! राजकुमार राव (आलू  ) बिल्कुल नए अंदाज में हैं। अपने बचपन के प्यार के लिए जो समर्पण दिखाया है वह खास है। उनका किरदार फ़िल्म को मज़ेदार बनाता है यह कहना गलत ना होगा। और आलू की पिंकी बनी फातिमा शाना शेख भी मन को भाती है ! एक और डुओ सरप्राइज पैकेज है सराफ के रोल में रोहित सुरेश और मैनी के किरदार में पर्ल ! दोनों ही अनुराग की खोज कहे जाएंगे ! फिल्म में आदित्य रॉय कपूर और सान्या मल्होत्रा  क्रमशः आयुष और आहना के रोल में बावजूद दिलचस्प ट्रैक के औसत ही नजर आते हैं। खासकर सान्या से निराशा होती हैं। और इसी वजह से लगता है कि दोनों के ट्रैक को थोड़ा शॉर्ट रखा जा सकता था , ओवरऑल मूवी भी दस एक मिनट कम हो जाती ! अंत में बात करें कालीन भैया की ! लूडो में भी वे भैया हैं लेकिन सत्तू भैया डिफरेंट हैं ! हाँ ! डर लगता है वे कहीं टाइप्ड होकर ना रह जाएँ !   

जाते जाते म्यूजिक की बात कर लें ! प्रीतम ने दिया है और गाया है अरिजीत सिंह ने ! कोई ख़ास नहीं जमें दोनों ही ! पता नहीं सुर नहीं लगे या गाने ही सही नहीं रचे गए ! जमा तो खूब जमा पचास के दशक का अलबेला फिल्म का खूबसूरत गाना ! जितना खूबसूरत गाना उतना ही खूबसूरत उसका इस्तेमाल किया है अनुराग ने और फिर क्या सुर में सुर मिलाये ही नहीं पंकज त्रिपाठी ने बल्कि अपने गुर्गों से मिलवा भी दिए !  बैकग्राउंड स्‍कोर भी फिल्‍म के माकूल है और माहौल बनाने में कसर नहीं छोड़ता।नीले और लाल रंगों से अनुराग बसु का प्रेम इस फिल्‍म में दकमता है। सिनेमैटोग्राफी वर्ल्ड क्लास है। 

अंत में अनुराग बासु की तरफ से फ़ाउल लैंग्वेज के लिए सॉरी ; वैसे सत्तू भैया ने खुद भी बोल दिया है कि मैं फ़ाउल बोला सो सॉरी तब जब फिल्म में ही नर्स लाउड बोलने के लिए सॉरी बोलती है ! कुल मिलाकर चारों कहानियां दिलचस्प है और जब फिल्म खत्म होती है तो मन ही मन स्माइल आ ही जाती है !


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Prakash Jain

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