परिणाम आ गए ; तमाम नुक्ताचीनी हो रही हैं ! कांस्पीरेसी थेयोरीज़ प्रतिपादित की जा रही हैं ! सार यही है कि विपक्ष ने सुनहरा मौका गँवा दिया ! अगर कोरोना के प्रकोप, बेरोजगारी और खराब अर्थव्यवस्था के बावजूद मोदी को नही हरा पाए तो क्या ही कहा जा सकता है। दरअसल वे मानने को तैयार ही नहीं हैं कि लोगों में असंतोष तो है पर भरोसा सिर्फ मोदी पर है !
लोकतंत्र क्या है ? तंत्र वो जो लोक (जनता ) तय करता है ! और आज का जन समझता है कि समस्याएं हैं - कल भी थी , आज भी है और आगे भी रहेगी ! सवाल सिर्फ एक ही है जिसे आप नियुक्त करते हो इन समस्याओं से लड़ने के लिए उसका भरोसा करें या नहीं !
राजनैतिक पार्टियाँ समस्याओं को मुद्दा बनाती हैं, लोकलुभावन वादे करती हैं लेकिन लोगों का विश्वास जीतने की कवायद नहीं करती ! कही से नहीं लगता कि वे मोदी में विश्वास फैक्टर की कोई तोड़ निकाल पा रहे हों ! मोदी हुंकार भरते हैं - मैं हूँ ना ! और जनता गदगद हो जाती हैं !
कुल मिलाकर लोकतांत्रिक राजनीति के नियम कायदे लोगों ने बदल दिए हैं ! यही अमेरिका के चुनाव में भी हुआ ! यदि आप समझते हैं कि ट्रंप की हार की वजह समस्याएं हैं , भारी भूल कर रहे हैं ! ट्रंप ने लोगों का विश्वास खो दिया और वे हार गए ! जो बाइडन आये हैं तो क्या समस्याएं नहीं रहेंगी ? समस्या ख़त्म होगी या नहीं महत्वपूर्ण नहीं हैं ! महत्वपूर्ण है उससे लड़ने के आपके प्रयासों में लोगों का विश्वास !
मोदी ने नोटबंदी की ; मान भी लें फेल हुई और समस्याएं और बढ़ गयी लेकिन लोगों को उनका प्रयास विश्वसनीय लगा ! तो नोटबंदी के बाद बीजेपी ने यूपी जीत लिया और फिर लोकसभा भी जीत ली ! और विपक्ष विरोध के नाम पर चार साल बाद भी नोटबंदी की बरसी पर मातम मनाकर अपना मजाक ही उड़वाता है जनता से ! ग्रेट मनमोहन सिंह जी का ही अनुसरण कर लेते - हजारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी ...........
कोरोना काल मे इतने अप्रवासी मजदूर सड़कों पर चलते दिखाई दिए जिनमे से अधिकतर बिहार के ही थे। इन सबका दोष मोदी और नीतीश कुमार पर ही जाना था क्योंकि सरकार में यही थे। फिर भी बिहार की जनता ने मोदी और नीतीश को समर्थन दिया। अब इंदिरा जी की लिगेसी वाली कांग्रेस भी नहीं समझ पायी तो रोना ही आएगा ना ! इंदिरा जी को उनके गरीबी हटाने के प्रयासों में जनता के विश्वास की वजह से वोट मिलते थे ! गरीबी कम हो सकती है हट कैसे जायेगी उस देश में जहाँ हर साल ८ लाख बेरोजगार तैयार हो जाते हैं जनसंख्या विस्फोट की वजह से !
कई लोग इसे नीतीश कुमार की हार बता रहे हैं पर जिसने भी बीजेपी को वोट दिया होगा उसको पता होगा कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा तो फिर नीतीश की हार कैसे हुई? उनकी पार्टी की सीटें कम हुई पर सीएम तो वही बनेंगे ना ? अब देखिये विपक्ष की कांस्पीरेसी थ्योरी ! पहले थ्योरी प्रतिपादित की गयी चिराग के रोल की और अब उसे प्रूव किया जा रहा है मानों सारे के सारे राजनेता नहीं नामीगिरामी वकील हैं ! क्या बेतुका तर्क दिया जा रहा है कि चिराग ने एनडीए के बीजेपी के दिये (पुराना चिन्ह ) को जगमगा दिया और नीतीश कुमार को झुलसा दिया ! घर को आग लग गयी घर के ही चिराग से नहीं बोल सकते तो ब्रिटिश शासन की घर में ही फूट डालने की कुत्सित नीति ही अडॉप्ट कर ली ! किसी ने तो भविष्यवाणी भी कर दी हैं कि नैतिकता का तकाजा ही नीतीश को डुबोयेगा ! उन्हें अपनी अनैतिकता नजर नहीं आती !
एक नौजवान बूढ़े ने बीजेपी को अमरबेल बताते हुए नितीश कुमार को सलाह दे डाली ! उन्हें अपनी पनौती नजर नहीं आती ! कल अखिलेश की साइकिल पंक्चर की थी , आज तेजस्वी जैसे ओजस्वी युवा नेता को मुरझा दिया एवरग्रीन युवा के लिए थ्रेट बनता जो दिखने लगा था ! सुनने में आया है अब ना तो डीएमके तमिलनाडु में साथ रखने को तैयार है और ना ही सीपीएम बंगाल में !
विश्वास बनाने में मेहनत लगती है , समय लगता है और विश्वास खोने के बाद अर्जित करना तो और भी मुश्किल होता है ! यही मेहनत करने का ज़ज़्बा है ही नहीं विपक्षियों में ! एक टैग लाइन पकड़ लेते हैं और जब देखो उसे ही चिपकाते रहते हैं मसलन बीजेपी तो जुमलों की पार्टी है ! कल उनकी खुद की पार्टी ही जुमला भर रह जायेगी !
और जिस तरह के नैरेटिव विपक्ष के नेतागण चला रहें हैं, नरेंद्र मोदी निश्चिंत है मानों वे भी यही चाहते हों ! नेतागण अपनी कमियाँ देख ही नहीं रहे हैं और दूसरों को ज्ञान बाँट रहे हैं ! दिग्गीराजा अपने राज्य को तो बचा नहीं पाए , नितीश कुमार को कभी तेजस्वी का चाचा बनने की सलाह दे रहे हैं तो कभी बिहार को छोटा बता दे रहें हैं उनके लिए ! बयान वीर सुरजेवाला खुद तो ना असेंबली का चुनाव जीत पाए ना ही लोकसभा का लेकिन पार्टी के सबसे बड़े सलाहकार वही हैं ! अपनी रणनीति बना नहीं पाए, चले हैं पार्टी का उद्धार करने ! एक और दिग्गज पार्टी है शिवसेना जो सामना के आईने में खुद के अक्श कभी नहीं देखता लेकिन उनके संजय के पास दिव्य द्ष्टि जरूर है ! उन्हें नितीश में खोट नजर आता है ,मोदी -शाह अब वैरी हैं, तेजस्वी में विपुल तेज नजर आता है ! और उन्हें आईना दिखा दिया आघाडी के सहयोगी कांग्रेस के ही अन्य संजय ने ! हालाँकि सामना की दिव्य द्ष्टि कभी उनके पास थी ! हमें तो पता ही नहीं था कि शिवसेना ने बिहार में २२ सीटों पर चुनाव लड़ा था और २१ सीटों पर उन्हें नोटा से भी कम मत मिले !
अब कांग्रेस क्या करे ? आत्मचिंतन तो कर सकते नहीं ; पता नहीं कहाँ विपश्यना की थी ? तो ओवैसी वाला बीजेपी की बी टीम वाला सस्ता, सुन्दर और टिकाऊ राग फिर एक बार शुरू कर दिया है ! और इधर पीके ने इतनी मेहनत की तो तेजस्वी खूब उनकी लाज रख रहे हैं ! मन के हारे हार है और मन के जीते जीत ! तेजस्वी का मन ही तो है कि जनता ने उनको जीता दिया है ; वो तो चुनाव आयोग ने उनको हरा दिया है ! यही तो मोदी चाहते हैं ! बिन मांगे मनमाफिक मुराद जो मिल गयी है !
उधर ओवैसी तो प्रूव कर दे रहे हैं कि कांग्रेस बीजेपी की एजेंट है ! उनका तर्क है कांग्रेस ५१ सीटों पर हारी और उन सभी ५१ सीटों पर ही बीजेपी ने जीत दर्ज की !
मजोरिटारियनिज़्म का आरोप एक सुर से सभी बीजेपी पर लगाते हैं लेकिन जब चुनाव आता है तो खुदबखुद एक्सपोज़ हो जाते हैं जब उनका टेंपल ट्रेवल कैंपेन जोर पकड़ता है ! बिहार में चुनाव थे तो वोटों की चिंता की वजह से विशेष समुदाय को लेकर टिपण्णी करने से बचते दिखे ! जनता कभी फूल कहलाती थी, अब नहीं हैं ! एक पितृसत्तात्मकता जाहिर करती थ्योरी भी किसी आरजेडी नेता ने बता दी ! उन्हें महिलाओं का बिहार में मोदी को सपोर्ट करना रास जो नहीं आया ! वे भूल गए कि अब जब तक़रीबन आधे वोटर महिला हैं तो उनकी नाराज़गी मोल नहीं ली जा सकती ! कम से कम अपने गॉडफादर लालू यादव के परिवार में महिलाओं के वर्चस्व की ही कद्र कर लेते !
स्पोर्ट्समैन स्पिरिट में भी डबल स्टैंडर्ड झलका ही देते हैं नेतागण ! जो लोग अमेरिका में ट्रम्प की हार के लिए मोदी को घसीट रहे थे वो लोग बिहार की जीत का श्रेय मोदी को नही देने के बहाने ढूंढ रहे हैं !
नीतीश ने रिटायरमेंट की घोषणा कर दी है, उनकी पार्टी में तो कोई नेता दिखता नही जो उनकी जगह ले।बीजेपी को ही किसी नेता को तैयार करना पड़ेगा जो ५ साल बाद तेजस्वी यादव के सामने खड़ा हो सके।लेकिन बिहार में बीजेपी का अस्तित्व कमज़ोर था ,अब वो ज्यादा मजबूत हो कर उभरे हैं तो चिंता तेजस्वी को होनी चाहिए।
फिर भारत के लोकतंत्र की खूबसूरती ही है कि अमेरिका की कुल पार्टियों से ज्यादा यहाँ कम्युनिस्ट पार्टियाँ हैं मसलन सीपीआई , सीपीआईएम और सीपीआईएमएल !
सार यही है कि बाल की खाल निकालना बंद करना चाहिए! तरस ही आता है जब पत्रकार भी यही काम करते हैं जैसा कल ही राजदीप सरदेसाई को वर्डिक्ट बनाम मैंडेट की बहस कराते देखा ! जीत आखिर जीत होती हैं फिर भले ही वो सुपर ओवर में ही क्यों ना मिलें ! आखिर जो जीता वही सिकंदर है ना ! और अब तो विदेशी मीडिया इस मशहूर हिंदी कहावत को हैडलाइन बनाता है ! राजनेताओं को अपनी अपनी व्यक्तिगत विश्वसनीयता बनाने के लिए पुरजोर मेहनत करनी होगी ताकि लोग उनकी पार्टी पर भरोसा करें ! चूँकि नरेंद्र मोदी की विश्वसनीयता की लाइन बड़ी है तो प्रतिद्वंद्वी को लाइन ही बड़ी खींचनी पड़ेगी ! और यदि जनता के भरोसे रहे तो कम से कम एक दशक तो भूल ही जाइये ; वे भारत के अघोषित व्लादिमीर पुतिन ही हैं !
अंत में थैंक्स टू ऑल बिहारीज़ ! आपलोगों ने टीवी चैनल , एग्जिट पोल और नेताओं की सांसें रोक दी थी। सही भी है "बिहारी सब पर भारी !" थोड़ा हास्य भी पैदा कर दें तो वामपंथी बिहार के चुनव परिणामों से खुश ना होवें ! रविश कुमार के भाई चुनाव हार गए और सब पत्रकारों के भाई अरनब जेल से बाहर आ गए हैं, वामपंथियों के बहुत बुरे दिन चल रहे हैं !
बिना राहुल गाँधी की चर्चा किये कैसे एंड कर दें ? कहने की जरुरत अब है भी क्या ? जितनी जल्दी वे कांग्रेस से अलग हो जाएँ , अच्छा रहेगा ! पार्टी तो उन्हें हटाएगी नहीं ! अब देखिये ना उन्होंने ईवीएम की तौहीन की , ईवीएम ने हाथोंहाथ बदला ले लिया ! एक नेता (उदितराज) ईवीएम पर ठीकरा फोड़ता है तो दूसरा नेतापुत्र (कार्ति चिदंबरम ) ने ईवीएम को विश्वसनीय और परफेक्ट बता दिया ! अब रघुराम राजन है , बेशक काबिल और स्थापित अर्थशास्त्री हैं लेकिन मोदी के प्रति अपनी खुन्नस की वजह से वे राहुल के साथ हो लेते हैं ! राजन के लिए ही शायद डेमोक्रेट बराक ओबामा ने राहुल को एक नर्वस नेता बताया हैं ; उसे अयोग्य और हताश इंसान बताया हैं !
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