विज्ञापन का काम प्रोडक्ट बेचना है ; सोशल रिफॉर्म नहीं ! 


दरअसल विज्ञापन में धर्म का घालमेल होना ही नहीं चाहिए ! कट्टरता हर धर्म में हैं लेकिन मुस्लिम समुदाय में कहीं ज्यादा है जो समय समय पर परिलक्षित होती रही हैं। कनिष्क का ये विज्ञापन अलग-अलग समुदाय के शादीशुदा जोड़े से जुड़ा था और इसमें एक मुस्लिम परिवार में हिंदू बहू की गोद भराई की रस्म को दिखाया गया था। आदर्श स्थिति तो यही होती कि एकत्वम की यह कैंपेन इंडिपेंडेंट होती , किसी प्रोडक्ट से जुडी ना होती और तब शायद कोई बात ही ना होती ! हालाँकि कट्टरवादी बाज ना आते और अपनी प्रतिक्रियाएं देते लेकिन कनिष्क का उपभोक्ता या प्रोस्पेक्टिव कस्टमर निर्लिप्त ही रहता ! 

कहने को तो इस ऐड में गलत कुछ भी नहीं है और प्रेजेंटेशन की खूबसूरती भी लाजवाब है लेकिन चूँकि कनिष्क ने आनेवाले त्यौहारों में अपने जेवरों को बेचने के लिए ऐड बनाया था , टाइमिंग गलत हो गयी ! पिछले दिनों ही लवजेहाद टाइप कई घटनाएं हुई हैं जिनमें मुस्लिम समाज की कट्टरता देखने को मिली है। इसी महीने की ७ तारीख को दिल्ली में एक १८ साल के हिंदू लड़के जिसका नाम राहुल राजपूत था, उसकी बेरहमी से सिर्फ इसलिए हत्या कर दी गई क्योंकि वह पड़ोस में ही रहने वाली एक मुसलमान लड़की से प्यार करता था। हत्या का आरोप लड़की के परिवार वालों पर लगा है। राहुल अपने माता पिता का इकलौता पुत्र था। राहुल की हत्या के आरोप में पुलिस लड़की के भाई मोहम्मद राज और उसके दोस्त मनवार हुसैन को गिरफ्तार कर चुकी है। यहां तक कि जिस लड़की के परिवार पर इस हत्या का आरोप है वह लड़की खुद इस हत्याकांड की जांच की मांग कर रही है।  इस लड़की को अपने ही परिवार से जान का खतरा है इसलिए इसे इसके परिवार से दूर नारी निकेतन में रखा गया है।

तब इस घटना पर जिन लोगों ने चुप्पी (नाम तक नहीं लेते ) साधे रखी थी वही लोग तनिष्क के विज्ञापन को  साम्प्रदायिक सौहाद्र का प्रतीक बताते हुए इसके हटा लिए जाने पर नाराजगी जाहिर कर रहे हैं ! और जब तथाकथित वे लोग , जिन्हें आप लेफ्टिस्ट कहें लिबरल कह दें मसलन आरफा खानम , राणा अयूब आदि, हिंदू कट्टरवाद का आरोप लगाते हैं, तब वे बुरका, शरिया , मदरसा , मौलाना की निंदा कदापि नहीं करते ! कहने का मतलब सेकुलरिज्म वन वे ट्रैफिक तो हो नहीं सकता ना ! उन्हें इन दकियानूसी और पिछड़ी कुरीतियों को खत्म करने की बात करनी चाहिए लेकिन वे करेंगे नहीं !

टाइमिंग पर ही एक और बात है ! भारत में हिंदू बहुसंख्यक हैं लेकिन जब भी संवेदनशीलता की बात आती हैं अल्पसंख्यकों के मुद्दे हावी रहे हैं ! अब शायद देश की बहुसंख्यक आबादी को लगता है कि उनकी भावनायें भी मायने रखती है ! इसी वजह से लोगों को लगा इस पूरे विज्ञापन में संस्कृति और धर्म के नाम पर सिर्फ़ एक ही धर्म को बढ़ा चढ़ा कर दिखाया जा रहा है कि मुस्लिम ही बहुत ज़्यादा प्यार और सम्मान से रखते हैं ! कहीं ना कहीं यही चीज लोगों को खटक गयी। फिर आज सोशल मीडिया का ज़माना है , क्या शहरी क्या गँवाई सभी रियल टाइम में विज्ञापन देख लेते हैं और ना देखा तो निहित स्वार्थ वाले दिखला भी देते हैं ! 

सवाल ये भी उठा कि अगर इस विज्ञापन में एक मुस्लिम महिला को एक हिंदू परिवार की बहू के रूप में दिखाया गया होता तो क्या ये लोग इसे स्वीकार कर पाते ? और इस सवाल के जवाब में हिचक हमेशा रही हैं।  कुल मिलाकर प्रश्न फिर है क्या एकत्वम की मिसाल बहुसंख्यकों को ही दी जानी चाहिए ? इतिहास गवाह है विशेष समुदाय की असहिष्णुता का ! ज्यादा दूर ना जाएँ वेस्ट बंगाल में नुसरत जहाँ ने हिंदू जैन से शादी की, सिंदूर, चूड़ियां पहनी , दुर्गा पूजा मनायी और मुस्लिम कट्टरपंथियों ने फतवा जारी कर दिया ! चार दिन पहले ही सहारनपुर से आठ बार सांसद रह चुके हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक रसीद मसूद के निधन पर उनके हिंदू समर्थकों ने तेहरवीं और पगड़ी रस्म रखी जिसमें दिवंगत नेता के परिवार वालों ने भी हिस्सा लिया था। लेकिन देवबंद के उलेमाओं को रास नहीं आया और कहा कि इस्लाम इसकी कतई इजाजत नहीं देता। पगड़ी बांधना एक अलग बात है, मगर इस्लाम में हिन्दू रीति रिवाज के साथ किसी मुस्लिम की रस्म पगड़ी तेरहवीं करना गलत है।

फिर एक शब्द है अपवाद जो हर जगह होता है।  सामान्यतः इंटरफेथ शादियां नहीं होती ; हाँ , इंटरकास्ट आजकल सामान्य बात है ! इंटरफेथ शादियां अपवाद स्वरुप होती रही हैं , कई निभती आयी हैं और कई टूटी भी हैं ! किसने कितना कोम्प्रोमाईज़ किया बिल्कुल निजी विषय भी हैं। उदाहरण के लिए अब्दुल्ला परिवार को ही लीजिये ! बेटी सारा ने सचिन पायलट से शादी की , अब्दुल्ला परिवार सालों नाराज रहा जबकि बेटे उमर ने पायल नाथ से शादी की और अब्दुल्ला परिवार ने ख़ुशी ख़ुशी स्वीकारा ; हालाँकि शादी निभी नहीं ! स्वयं फारुख ने अंग्रेज लड़की से शादी की थी ! पॉइंट जो है , बिना कहे समझ आ गया होगा ! और अपवाद पर बेस्ड कर एकत्वम के संदेश की थीम पर प्रॉडक्ट का विज्ञापन सामान्य रूप से जनसाधारण को कैसे रास आएगा ? 

अपवाद होने चाहिए और हर जगह होते भी हैं ! लेकिन उन्हें एडवरटाइजिंग टूल बनाना हो तो स्पेस प्राइवेट रखा जाना चाहिए ! सामान्य करेंगे तो धराशायी ही होगा और ऐसा कब नहीं हुआ है ? चार्ली हेब्दो प्रकरण कौन नहीं जानता ? इस प्रकरण की तो मानों सीरीज ही चल रही है तभी तो आज ही फ्राइडे के दिन पेरिस में एक शिक्षक का एक कट्टरवादी ने सर काट दिया क्योंकि उसने अपने छात्रों को पैगंबर मोहम्मद के वो कार्टून दिखाए थे जो फ़्रेंच पत्रिका शार्ली एब्दो ने छापे थे। कहने का मतलब जब अपवाद होते हैं, उन्हें खूबसूरत होना ही चाहिए ! हमें कोई अधिकार नहीं हैं इन अपवादों को विवाद में खींचने का ! हाँ , चित्रण करना है , प्राइवेट रखिये तबतक जबतक अपवाद अपवाद की श्रेणी में हैं ! इंटरफेथ की वकालत आप बंद कमरे में तो कर सकते हैं क्योंकि अभी भी सामान्य सामाजिक परिवेश अनुकूल नहीं हुआ है कि खुलकर बात की जा सके ! कमोबेश यही महात्मा गाँधी के विचार थे जबकि हिंदू मुस्लिम एकत्वम की बात उनसे ज्यादा किसी ने शायद ही की होगी आजतक ? 

फिर हिंदू मुस्लिम के मध्य सामाजिक संपर्क अपवाद स्वरूप ही दीखते रहे हैं और आम धारणा यही चली आ रही है कि ऐसा संभव नहीं हैं ! डॉ भीमराव आंबेडकर ने सही कहा था एक तरफ की सिर्फ महिलायें और दूसरे तरफ के सिर्फ पुरुषों के संपर्क को ही हिंदू मुस्लिम सौहाद्र का नाम दे दिया जाता है और इसीलिए वास्तविक सौहाद्र पनपता नहीं और अभी भी यही धारणा आम बनी हुई हैं। और यूँ ही नहीं कहा था ! चूँकि मुस्लिमों का फेथ कुरान (2:221) है जो कहता है Do not marry polytheist woman until she believes; a slave believing woman is better than polytheist women though she allures you; Do not marry (your girls) to polytheist man until he believes: A man slave who believes is better than an polytheist man, even though he allures you. और ब्लाइंड फेथ कट्टरता को जन्म देती हैं नतीजन बॉम्बे और ग़दर फ़िल्में आयीं तो पची नहीं और जगह जगह खासकर भोपाल में दंगे अंजाम दिए गए !  

वैसे तनिष्क नाम संस्कृत का शब्द है जिसका मतलब होता है गोल्ड या जेवर ! टाइटन के तनिष्क के ग्राहक एलिट क्लास के ही हैं चूँकि ऑर्नामेंट्स का मार्केट कल्चर अभी भी ट्रेडिशनल ही है ! और इस क्लास में बीस तीस लाख से ज्यादा लोग नहीं होंगे पूरे देश में ! टाइटन को चाहिए था अपने कस्टमर्स बेस के साथ प्राइवेटली वीडियो शेयर करता और यह कोई मुश्किल काम नहीं था ! यदि आप अपने कस्टमर बेस को बढ़ाने के लिए उस  फेस्टिवल सीजन को भुनाना चाहते हैं जो हिंदुओं का माना जाता है तो आपका क्रिएशन विशुद्ध लोगों के लिए होना चाहिए ताकि अन्य कोई मतलब निकले ही नहीं ! आप सोशल रिफॉर्मिस्ट नहीं हैं।  आपके लिए आपका व्यापार, आपके इन्वेस्टर्स का हित सर्वोपरि होना चाहिए ! मेसेजिंग हो भी तो बिना किसी फेथ को टच किये होनी चाहिए ! कहीं से भी किंचित सा भी किसी ख़ास फेथ के हर्ट होने का आभास नहीं मिलना चाहिए। वही सच्ची धर्मनिरपेक्षता होती हैं ! इसी संदर्भ में  दो साल पहले का दिवाली के पहले का ही अमेरिकन सॉफ्टवेयर और कंप्यूटर सर्विस कंपनी एचपी का विज्ञापन ये दीवाली अम्मा वाली स्मरण हो रहा है ! कुछ क्रिएटिव कनिष्क कोरोना संकट और सोने के भावों को ध्यान में रखते हुए अपने जेवरों के लिए बना सकती थी , धर्म की क्या जरुरत थी ? हर धर्म खूबसूरत है लेकिन तबतक जबतक अनावश्यक कोई घालमेल नहीं हैं !   

विज्ञापनों का जनमानस पर ख़ासा प्रभाव पड़ता है। एक फ़िल्म या सीरियल या कंटेंट हम एक बार देखते हैं जबकि विज्ञापन आंखों के सामने बार-बार आते हैं ताकि हमारा इंटरेस्ट किसी प्रोडक्ट के लिए बनें और हम उसे खरीदें। सो विज्ञापन अपनी इसी हद तक रहने चाहियें , रेवोल्यूशनरी टाइप या रिफॉर्म की बात करनी है तो दीगर प्लेटफॉर्म काफी हैं , पॉलिटिकल पार्टियां भी हैं ! 

अंत में चूँकि हम बात करते हैं सौहाद्र की तो जब कभी इस तरह की कंट्रोवर्सी होती हैं, उसे खींचना क्यों ? जो हुआ सो हुआ कहकर भूल जाएँ ! अब आप टाइटन को उपदेश देंगे कि विज्ञापन हटाना नहीं चाहिए था तो उधर से दूसरा बोलेगा ऐसा विज्ञापन बनाया ही क्यों ? आप समझिये टाइमिंग ही एक खूबसूरत चीज को बदसूरत बना देती हैं ! फिर बात निकलेगी तो दूर तलक जायेगी ! फिर अभी और भी बहुतेरे सोशल कॉज हैं जिनकी मैसेजिंग निर्विवाद रूप से हो सकती है और अपेक्षित स्कोर भी लाती हैं !   


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Prakash Jain

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