जीडीपी के डर का खेल निडर होकर खेलना है सो कुछ अलग कर, हुनर दिखा , सामना कर आखिर डर के आगे ही जीत है ! 

इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड के अनुमान को हम यूँ भी तो ले सकते हैं - २०२१ में इंडियन इकोनॉमी चीन को पछाड़ते हुए ८.८ फीसदी की जोरदार बढ़ौत्तरी दर्ज करते हुए तेजी से बढ़ने वाली उभरती अर्थव्यवस्था फिर से कहलायेगी, हालाँकि  कोरोना वायरस से बुरी तरह प्रभावित इकोनॉमी मौजूदा साल में १०.३ फीसदी की गिरावट दर्ज कर सकती हैं !  

इसके अलावा IMF का अनुमान है कि २०२० में ग्लोबल इकनॉमी में ४.४ फीसदी की गिरावट आएगी और २०२१ में यह ५.२ फीसदी की दमदार ग्रोथ लेगी ! साथ ही चीन की जीडीपी ग्रोथ २०२० में १.९ फीसदी रहते हुए २०२१ में  ८.२ फीसदी से ग्रो करेगी ! 

एक और काम आईएमएफ ने किया है और वह है २०२० की अनुमानित जीडीपी को ट्रांसलेट किया है पर कैपिटा (per capita ) के टर्म में और तुलनात्मक रूप से कहा है कि २०२० में बांग्लादेश की प्रति व्यक्ति जीडीपी के ४ फीसदी बढ़कर १८८८ डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है, वहीं, भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी के १०.५ फीसदी गिरावट के साथ १८७७ डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है, जो पिछले साल चार में सबसे कम आंकड़ा होगा ! 

अब विश्लेषण करें तो यदि विश्लेषक आशावादी है तो देश की पीठ थपथपाएगा कि बावजूद १० फीसदी की नेगेटिव ग्रोथ के तुरंत अगले ही साल में ८.८ फीसदी की पॉजिटिव ग्रोथ ली तो निस्संदेह देश के फंडामेंटल्स मजबूत हैं, सरकार के प्रयास सकारात्मक रहे हैं और सबसे ऊपर जनता जुझारू रही हैं ! फिर हमें तो सिर्फ आईएमएफ के कैविएट का ही ख्याल रखना है !

लेकिन डेमोक्रेसी में विपक्ष है तो विरोध कैसे करें ? और ये काम आईएमएफ ने कर दिया बांग्लादेश के साथ गैर जरूरी तुलना का हवाला देकर ! तभी तो कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक ग्राफ पोस्ट करते हुए तंज भरा ट्वीट कर ही दिया, "बीजेपी सरकार के पिछले छह साल के नफ़रत भरे सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की सबसे बड़ी उपलब्धि यही रही है: बांग्लादेश भी भारत को पीछे छोड़ने वाला है !" इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के भूतपूर्व जज मार्कण्डेय काटजू साहब का आर्टिक्ल स्थितियां स्पष्ट कर देता है। उन्होंने बांग्लादेश जैसे गरीब देश में अत्याधिक औद्योगीकरण को इसकी वजह बताया है ! वहां ८० फीसदी जनता की पर कैपिटा तो शून्य ही है चूँकि मात्र १०-१५ फीसदी लोगों के पास ही सब कुछ है जो मिसलीडिंग एवरेज दे जाता है ! चूँकि भारत उस फेज से कब का बाहर निकल चुका है, तुलना बेमानी हैं !

खैर ! जिसकी जैसी सोच , उसने उसी रंग को दिखाया ! अब डिटेल में जाएंगे तो सब बातें तुलनात्मक करनी होंगी मसलन बांग्लादेश की जनसंख्या (भारत की तक़रीबन आठ गुना ज्यादा है ),  माइग्रेंट कामगारों की संख्या, कोरोनावायरस की गंभीरता, पारदर्शिता  आदि ! 

हम मुद्दे पर ही रहते हैं ! निश्चित ही आईएमएफ के इस साल के अनुमान , यदि सही साबित होते हैं,  'न्यू इंडिया', ' ५ ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी' और  'आत्मनिर्भर भारत' जैसे लोकलुभावन नारों भर के लिए ही नहीं, बल्कि वास्तविकता की कसौटी पर भी सेटबैक हैं ! वैसे भी बीते दो सालों में जीडीपी ने निराश ही किया है, वजहें सही या गलत जो भी रही हों ! 

निश्चित ही  मौजूदा साल में आमदनी घटी है तो खर्चे भी कम हुए हैं ! लोगों ने अपनी बचतों को छुआ है ! लेकिन असली दिक़्क़त उन लोगों को हो रही है जो रोज़ कमाते है और रोज़ ख़र्च करते हैं और जिनके पास बचत खाता के नाम पर कुछ नहीं होता। आमदनी और ख़र्च के अलावा इसका असर निवेश पर भी पड़ा है ! ख़रीददार नदारद है, तो निवेश करने का प्लान होल्ड हो गया है, नए रोज़गार नहीं आएंगे और इसका सीधा असर युवाओं के रोज़गार पर पड़ रहा है।  

 लेकिन अब परिस्थितियाँ शनैः शनैः बदल रही है। कोरोना की वजह से जो अर्थव्यवस्था में गिरावट आयी , अब करवट ले रही हैं। और इस प्रोसेस में दो चीजें अहम् साबित होगी -  पहला निवेशक कहें आ अब लौट चलें और दूसरा कोरोना महामारी देश-दुनिया से जल्द ख़त्म हो जाए या फिर उससे पहले वैक्सीन आ जाए।  

बड़ी बात है भारत ने अर्थव्यवस्था में इस अनुमानित गिरावट को ज़्यादा गंभीरता से लिया है और इसे सुधारने के सरकार नए नए कारगर उपाय कर भी रही हैं ! साथ ही लोगों का ज़ज़्बा भी बना हुआ है ! 

लॉकडाउन की वजह से जब इकोनॉमी बंद पड़ी थी, प्रोडक्शन भी बंद था और खपत भी कम थी, तो जीडीपी में गिरावट का अनुमान सबको था। लेकिन जैसे ही लॉकडाउन के बाद अनलॉक की प्रक्रिया में सब कुछ धीरे-धीरे पुराने ढर्रे पर लौट रहा है, तो ग्रोथ भी देखने को मिल रही हैं।  यही वजह है कि अगले साल के लिए ना सिर्फ आईएमएफ़ ने बल्कि अन्य तमाम एजेंसियों ने भी कमोबेश ग्रोथ का यही अनुमान  लगाया है। रेटिंग एजेंसी फिच ने कहा है कि वित्त वर्ष २०२१-२२  में भारत की विकास दर ९.५ प्रतिशत रह सकती है। फिच रेटिंग्स ने हालांकि कोरोना संकट के कारण चालू वित्त वर्ष २०२०-२१  में भारतीय अर्थव्यवस्था के पांच प्रतिशत सिकुड़ने का अनुमान जताया है। S&P ने भी भारतीय अर्थव्यवस्था पर विश्वास जताते हुए आउटलुक को स्थिर रखा है। स्टैंडर्ड ऐंड पूअर्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि फिलहाल ग्रोथ रेट पर दबाव है, लेकिन अगले साल २०२१ से इसमें पर्याप्त सुधार दिखेगा।

कोरोना के दौर में वित्त मंत्री ने 'आत्मनिर्भर भारत' के नाम पर कई तरह के स्टिमुलस पैकेज की घोषणा की है। केंद्र सरकार ने मनरेगा स्कीम के तहत पैसा ज़्यादा देना, ग़रीबों को पीडीएस में ज़्यादा अनाज देना, लोन ना चुका पाने की सूरत में मोरेटोरियम का एलान जैसे कई क़दम उठाए हैं। अभी दो दिन पहले ही वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सरकारी कर्मचारियों के लिए दो अहम सुविधाओं की घोषणा की है। उन्हें १००००  हज़ार रुपए तक का इंटरेस्ट फ्री लोन दिया जाएगा और साथ ही एलटीसी का भुगतान इस बार बिना घूमे-फिरे ही कर दिया जाएगा बशर्ते वे ३१ मार्च २०२१ तक इन पैसों को उन चीजों पर खर्च करें जिन पर जीएसटी कम से कम १२ फीसदी या उससे ज्यादा हैं। राज्यों के लिए भी १२००० करोड़ रुपयों के  कैपिटल एक्सपेंडिचर स्टिमुलस के प्रावधान किये गए हैं। और अभी अंत नहीं हैं ! आईएमएफ ने भी कई सुझाव दिए हैं ; निश्चित ही वित्त मंत्रालय उन्हें तवज्जो देगा !  

जीडीपी पर आईएमएफ़ के ताज़ा अनुमान से भारतीयों को डरने की जरुरत नहीं हैं ; हाँ , चिंता जरूर होनी चाहिए साथ ही आशावादी भी ! और डाटा के भ्रामक इंटरप्रिटेशन के जाल में भी नहीं फंसना चाहिए। जैसे किसी ने कह दिया इंडिया की जीडीपी बांग्लादेश से भी नीचे चली जायेगी जबकि रेफेरेंस पर कैपिटा जीडीपी का है जो पॉप्युलशन काउंट पर बेस्ड होता है ! साथ ही सवाल सिर्फ सरकार से ही नहीं है कि आखिर हमारी इकनॉमी पटरी पर कब लौटेगी ; हम सबों को परस्पर सहयोग की भावना के साथ तन मन धन से कंट्रीब्यूट करना होगा !   

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Prakash Jain

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