भारत का उद्योग जगत ख़ौफ में है ; कब कौन सा मोदी सरकार का मंत्री या बीजेपी समर्थक और वैचारिक सहयोगी संगठन किस उद्योगपति की सार्वजानिक रूप से ऐसी तैसी कर डाले ? हालिया दो तीन वाक़यों ने इस धारणा को जन्म दिया है। ज्यादा दिन नहीं हुए हैं, अगस्त महीने में ही वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल के द्वारा १५३ साल पुराने देसी जायंट टाटा ग्रुप पर पब्लिक्ली निशाना साधा गया था।
Confederation of Indian Industry (CII) की वार्षिक बैठक में एक परिचर्चा के दौरान पीयूष गोयल का वक्तव्य उद्योगपतियों को किंचित भी रास नहीं आया और परिणामस्वरूप उनके वक्तव्य वाले १९ मिनट के वीडियो को ही CII ने अपने यूट्यूब चैनल से हटा दिया। पीयूष ने भारतीय उद्योग की व्यावसायिक प्राथमिकताओं को राष्ट्र विरोधी बताते हुए टाटा संस को आड़े हाथों लिया। द हिन्दू की रिपोर्ट के मुताबिक टाटा संस के इंफ्रास्ट्रक्चर, डिफेंस एंड एयरोस्पेस के प्रेसिडेंट बनमाली अग्रवाल का जिक्र करते हुए गोयल ने गहरी पीड़ा व्यक्त की कि उपभोक्ताओं की मदद के लिए बनाए गए नियमों का टाटा संस ने विरोध किया। उन्होंने कहा, " Me, Myself, My company - हम सभी को इस दृष्टिकोण से परे जाने की जरूरत है !"
मंत्री महोदय ने अपने संबोधन में उदय कोटक, पवन गोयनका, अंबानी, बजाज और बिड़ला को भी नहीं बख्शा और कहा कि कुछ हाथों में बहुत अधिक लाभ एक देश के लिए बहुत सारी समस्याएं पैदा कर सकता है ! हालाँकि उनका वाजिब आग्रह था उद्योग जगत से कि कुछ के लालच के कारण, कई लोगों को जरूरतों से वंचित न होने दें। लेकिन उनका तरीका कटु था जिस वजह से उद्योग जगत के नेताओं को मौका मिल गया।
ज्यादा दिन नहीं गुजरे और अगस्त में ही वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इनकम टैक्स वेबसाइट में आ रही खामियों को दूर न कर पाने के कारण इंफोसिस के सीईओ को सार्वजनिक तौर पर शर्मिंदा किया था जब उन्होंने सीईओ को समन किया और इसका ऐलान ट्विटर पर कर दिया। भारत में आईटी का चेहरा मानी जाने वाली कंपनी के साथ इस तरह के बर्ताव ने दुनियाभर को हैरान किया था। वैसे मिनिस्टर का इंफोसिस को कॉल करना और उसे कमियों के बाबत सवाल करना बिल्कुल सही कदम था चूंकि वे जून से ही फॉलो अप ले रही थीं, ग्लिच के मद्देनजर इंफोसिस के पदाधिकारियों के साथ मीटिंग भी की थी। और वे क्यों ना पूछें आखिर सरकार ने पोर्टल डेवलपमेंट के लिए जनवरी २०१९ से लेकर जून २०२१ तक १६५ करोड़ का भुगतान किया था। शायद उनका ट्वीट करना "सार्वजानिक करना" मान लिया गया प्रोफेशनल एथिक्स की बिना पर ! लेकिन आजकल तो कॉमन है क्योंकि कंपनियां ट्वीट को ज्यादा तवज्जो देती हैं, पब्लिक इमेज की वजह से ! चूंकि फाइनेंस मिनिस्टर ने ट्वीट कर दिया तो बात का बतंगड़ बना दिया कतिपय उद्योग जगत के नेताओं ने !
यहाँ तक तो चीजें बैलेंस हो गई थीं लेकिन आरएसएस के माउथपीस कहे जाने वाले पांचजन्य के लेख ने हंगामा बरपा दिया। हालांकि आरएसएस ने पाञ्चजन्य में छपे लेख से खुद को अलग कर लिया है लेकिन ये तो फेस सेविंग ही हुई ना ! देश की कर व्यवस्था को निराश करने के कारण इंफोसिस को देशद्रोही कहे जाने की इस घटना को सही नहीं ठहराया जा सकता। इसी वजह से पांचजन्य के सर्वथा अनुचित लेख की डिटेलिंग नहीं बनती ! पांचजन्य को अपने लेख को सिर्फ इस सवाल पर ही रखना चाहिए था कि क्या इंफोसिस अपने विदेशी ग्राहकों के लिए इस तरह की घटिया सेवा प्रदान करेगी ! तमाम उल जुलूल और आधारहीन बातें हैं इस लेख में जिस वजह से वे उद्योगपति भी चिंतित हो गए हैं जो अक्सर सरकार के साथ खड़े नजर आते हैं। मोहनदास पई ने इसी चिंता को बखूबी बयान किया है।
मारुति सुजुकी के पूर्व चेयरमैन आरसी भार्गव ने इंफोसिस का बचाव करते हुए कहा कि कंपनी ने सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में देश की छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चमकाने में अहम भूमिका निभाई है; निश्चित ही कंपनी को खामियों पर स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि वे देश को नुकसान पहुंचाने की कोई साजिश रच रहे हैं। लेकिन कई नामचीन हस्तियों ने पांचजन्य के लिखत को सरकार का फरमान बताने से गुरेज नहीं किया है। वे कहते हैं हर कोई डरा हुआ है क्योंकि उद्योगपति सरकार के निशाने पर नहीं आना चाहते। किसी ने इसे सरकार का बड़े बड़े उद्योगों पर सीधा सीधा हमला तक बता दिया इस मंशा से कि कंपनियों को सरकार की नीतियों को मानना ही होगा।
जरूरत है मौजूदा सरकार अपने सार्थक रुख को स्पष्ट करते हुए सुनिश्चित करें कि किसी भी प्रकार के पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर उनका कोई भी पार्टनर इस तरह का माहौल ना क्रिएट करें जिसे मीडिया तूल दें कि उद्योग जगत के सिरमौरो़ ने सोची-समझी और शायद रणनीतिक चुप्पी साध रखी है और कतिपय मीडिया के लोग इसे यूँ कनेक्ट करें कि पीएम नरेंद्र मोदी ने चुप्पी साध रखी है तो उनकी सहमति है !
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