ख़बरों की कुछ दिलचस्प कतरनें एक बार फिर हाजिर है ! 

हैदराबाद के वृद्धाश्रमों में बुजुर्गों की संख्या बढ़ने से संबंधित खबर को लेकर आईपीएस अधिकारी और छत्तीसगढ़ के स्पेशल डीजीपी आर.के. विज ने कहा है, "यह हमारी संस्कृति तो नहीं है, दुखद।" 

बात उन वृद्धों की हैं जिनके बच्चों ने उन्हें त्याग दिया है ! इसे सिर्फ पश्चिमी सभ्यताओं की अंधानुकरण जनित प्रवृति नहीं कहा जा सकता !  बुजुर्गों के प्रति दुर्व्यवहार के मुख्य कारणों में समय का अभाव और एकल परिवार है। भावनात्मक कमी को पूरा करने युवा समय नहीं निकालते। पुरानी परंपराओं का घोर पतन भी कंट्रीब्यूट कर रहा है इस प्रवृत्ति को !बेटी एवं बहु में फर्क करने की पारिवारिक एवं सामाजिक व्यवस्था भी इसके लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार है। 

काश ! चुनाव और कुंभ मेले पर भी रोक लगायी होती !

चूंकि देश अभी भी कोरोना की दूसरी लहर से उबर रहा है और तीसरी लहर के अगस्त में ही आने की संभावनाएं हैं ,  सुप्रीम कोर्ट ने जगन्नाथ पुरी मंदिर के अलावा भी रथ यात्रा की अनुमति देने से इनकार कर दिया है। मामले की सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस रमन्ना ने खूब टिप्पणी की , " मुझे भी बुरा लगता है लेकिन हम इसके बारे में कुछ नहीं कर सकते। उम्मीद है कि भगवान अगली रथयात्रा की अनुमति देंगे। मैं भी पिछले डेढ़ साल से पुरी जाना चाहता हूं, लेकिन मैं नहीं जाता। मैं घर पर पूजा करता हूं।"

क्यों न पूछें पिछले दिनों संपन्न हुए चुनावों और कुम्भ मेले के पहले ऐसा क्यों नहीं हुआ ? क्यों न कहें तब ऑनरेबल रमन्ना चीफ जस्टिस नहीं थे ? 

ब्लू बर्ड कभी इतनी शांत होगी !

दिल्ली हाई कोर्ट ने ट्विटर पर वार्निंग टैग लगा दिया ! कुल जमा दो दिनों का समय देते हुए चेता दिया कि आईटी नियमों के अनुपालन में स्पष्ट जवाब के साथ आओ वरना मुश्किल में पड़ जाओगे ! महिला न्यायमूर्ति पल्ली ने सख्त लहजे में कहा, "अगर ट्विटर को लगता है कि वे हमारे देश में जितना चाहें उतना समय ले सकते हैं, तो मैं इसकी अनुमति नहीं दूंगी।"

विचाराधीन दो विवादास्पद ट्वीट थे - (१) महुआ मोइत्रा (@MahuaMoitra): हमारे सुसु पॉटी रिपब्लिक में आपका स्वागत है! गौमूत्र पिएं, गोबर छिड़कें और कानून के शासन को शौचालय से हटा दें @DelhiPolice ने ट्विटर को नोटिस जारी किया और सीधे उसके कार्यालय में जा पहुंची @BJP के फर्जी दस्तावेज को मीडिया में हेरफेर करने के लिए। जाओ पता लगाओ।(२) स्वाति चतुर्वेदी (@bainjal): अगर बोबडे सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश होते तो मोदी अपने पसंदीदा गुजरात आईपीएस, अधिकारी राकेश अस्थाना को नियुक्त कर पाते। कानून का पालन करने वाले सीजेआई से कितना बड़ा फर्क पड़ता है।

ट्विटर के उच्च न्यायालय को दिये गये पहले जवाब  "ट्वीट उस श्रेणी के नहीं हैं जिसके लिए ट्विटर अपनी नीतियों, नियमों और सेवा की शर्तों के तहत कार्रवाई करता है।" को उच्च न्यायालय ने ट्विटर की स्वीकरोक्ति माना कि ट्वीट झूठे, अवैध और मानहानिकारक हैं। 

जो भी हो एक बात तय लग रही है - GOI is determined to tame the bird और इसके लिए सरकार ने पूरा जाल बिछा दिया है।  

अमेरिकन थिंक थैंक Pew Research Centre की एक रिसर्च रिपोर्ट आयी है जिसका टाइटल है "Religion in India: Tolerance and Segregation" जिसने लिबरलों की नींद उड़ा दी है चूँकि सिरे से खारिज जो नहीं कर सकते।जो भी फाइंडिंगस हैं उनका वन लाइनर डिस्क्रिप्शन यही है कि मोदी सरकार के दौर में भी सांप्रदायिक सौहार्द्र कम नहीं हुआ है, बल्कि  बेहतर हुआ है ! 

रिसर्च कहती है देश भर में ८४ फीसदी लोग, भले ही किसी भी धर्म के क्यों न हो, सभी धर्मों का सम्मान करते हैं। सभी छह प्रमुख धार्मिक समूह - हिंदू , मुस्लिम , सिख , ईसाई , जैन और बुद्धिस्ट -  अपने अपने फेथ का पालन करने के लिए बिल्कुल स्वतंत्र हैं। मायने यही है कि परस्पर धार्मिक स्वतंत्रता खूब बरकरार है। 

चूंकि सर्वे में टॉकिंग अराउंड टाइप  मल्टीपल प्रश्न होते हैं,कुछेक राइडर्स निकल ही आते हैं लेकिन ओवरऑल फैक्ट ऑफ़ द मैटर नहीं बदलता ! सहिष्णुता के प्रति प्रतिबद्ध इंडियंस विभिन्न धार्मिक समुदायों के यथासंभव पृथक्करण के हिमायती हैं फिर मामला मित्रता का हो या अंतर्धार्मिक विवाह का हो। सभी धर्मावलंबियों की यही सोच है। कुल मिलाकर सवालों को कई प्रकार से पूछा गया है लेकिन तब भी निष्कर्ष यही निकलता है कि भारत में आज भी धार्मिक सौहार्द बना हुआ है। उदाहरणार्थ विभिन्न धार्मिक समूह कई धार्मिक प्रथाओं और मान्यताओं को साझा करते हैं। एक निष्कर्ष पते का है कि हिंदुओं में राष्ट्रीय पहचान के विचार राजनीति के साथ-साथ चलते हैं। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए समर्थन उन हिंदुओं में अधिक है जो अपनी धार्मिक पहचान और हिंदी भाषा को वास्तव में भारतीय होने के साथ जोड़ते हैं। २०१९ के राष्ट्रीय चुनावों में, ६०% हिंदू मतदाता, जो सोचते हैं कि हिंदू होना और वास्तव में भारतीय होने के लिए हिंदी बोलना बहुत महत्वपूर्ण है, ने भाजपा को वोट दिया। हालांकि ३३ फीसदी हिंदू विपरीत विचार रखते हैं चूँकि लिबरल जो हैं।   

कुल मिलाकर मोदी को हराने में नाकाम विपक्ष की कहानी इसी सर्वे में निहित है। हालांकि विपक्ष एक तरफ सर्वे के क्वेश्चन एयर से सुविधा के सवालों को उठाकर मिले जवाबों को अपनी सुविधा से इंटरप्रेट कर रखने का भरपूर प्रयास कर रहा हैं, दूसरी तरफ  अन्य जवाबों को, जो उन्हें असहज कर रहे हैं , विरोधाभासी बता रहा हैं ; लेकिन लोग इसलिए अनसुनी कर दे रहे हैं  क्योंकि वे जिस भाषा में बोलते हैं उसे लोग न तो पसंद करते हैं और न समझते हैं। विपक्ष जब उनसे धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देता है , वे समझते हैं कि आप उन्हें कट्टरपंथी मान रहे हैं। विपक्ष उनसे समाजवाद का वादा करता है , तो यह वादा तो हर कोई कर रहा है। भारतीय राजनीति ने समाजवाद के सबसे ज्यादा रूपों का आविष्कार किया है।विपक्ष आर्थिक मोर्चे पर मोदी के कामकाज की आलोचना करता है तो जवाब मिलता है कि लोग केवल रोटी-दाल के नहीं जीते हैं !  

और यही तमाम बातें मोदी के फेवर में जा रही हैं बावजूद इसके कि कई सांप्रदायिक बातें उनके ही लोग कर देते हैं ! फिर काट भी आ ही जाती है मसलन हालिया आरएसएस प्रमुख भागवत जी के हिंदू मुस्लिम एकता वाले बयान ने बहुत सारा डैमेज कंट्रोल कर दिया ! 

फिर समझने की जरूरत है कि भारत अपनी विभिन्नता की वजह से सेक्युलर है जहां शायद इकबाल का नगमा "मजहब नहीं सिखाता आपसे में वैर रखना, हिंदी हैं हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा" रच बस गया है। और इन वामपंथी एक्टिविस्टों और दशकों से हाशिये पर पड़े वाम नेताओं के चक्कर में विपक्ष अपना मानसिक संतुलन ही खो बैठा है और भूल गया है देश के फैब्रिक को कि भारत कभी धर्मनिरपेक्ष इसलिए नहीं हो सकता कि लोग अपनी धार्मिक पहचान को परे कर देंगे। जनता बहुत पहले ही इन वामपंथियों द्वारा प्रतिपादित  नास्तिकता, तार्किकता, विरासत में मिले नेहरूवाद, समाजवाद आदि  को भुला चुकी है। और अब उलझन (पजल) ये है कि जब भी विपक्षी नेता धर्मनिरपेक्षता की बात करते हैं लोगों को लगता है वे मुस्लिमों को आगाह कर रहे हैं !   

और इस पजल को बखूबी क्रिएट किया है मोदी ने साथ ही एक राइडर और नैचुरली जुड़ गया है कि मोदी के आगे सभी बौने हैं, मोदी कही फेल भी हुआ है या हो रहा है तो भी पास होने का मादा उसी के पास है ! विपक्ष के नेताओं के तमाम तंज धराशायी हो रहे हैं फिर भले ही कांग्रेस के सबसे ज्यादा प्रतिभावान युवा नेता ही क्यों न करें ! यदि कहें कि मोदी में  लोगों का विश्वास अंधभक्ति का रूप ले चुका है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।  जब तक मोदी जी का चेहरा सामने हैं, बीजेपी बलवान बनी रहेगी !  

अभिनय के बेताज बादशाह ट्रेजडी किंग दिलीप कुमार नहीं रहे ! इंसान वे जिंदादिल थे तभी तो ९८ साल की उम्र ली उन्होंने ! जिंदादिली की झलकें कुछेक फिल्मों में दिखी भी थी।  राम और श्याम के  राम भी वही थे और श्याम भी वही थे लेकिन क्या जबरदस्त कॉमिक रोल निभाया था उन्होंने श्याम के किरदार में ! कालांतर में इस फिल्म से प्रेरित होकर ही अनगिनत फ़िल्में, जैसे सीता और गीता , चालबाज , किशन कन्हैया , गोपी कृष्ण आदि, बनीं । हालांकि राम और श्याम स्वयं ही एनटी रामाराव अभिनीत रामदु भीमदु की रीमेक थी। अपने ६५ साल की अभिनय यात्रा में अनगिनत अवार्ड्स उन्हें मिले। पद्मभूषण और पद्म विभूषण भी उन्हें मिले !  सही मायने में वे भारत रत्न थे। पाक ने भी उन्हें "निशाने ए इम्तियाज" के खिताब से नवाजा था ! अविभाजित भारत के पेशावर की उनकी पैदाइश थी ! बॉलीवुड के तक़रीबन हर नामचीन अभिनेता ने उनकी अदाकारी से प्रेरणा ली थी ! 

ग्रेट दिलीप कुमार एडवांस्ड प्रोस्टेट कैंसर से पीड़ित थे जो शरीर के अन्य अंगों में फैल गया था। डॉक्टर ने बताया, "अभिनेता की प्यूरल कैविटी में पानी था जो कई बार हटाया गया। उनकी किडनी भी फेल हुई थी। उन्हें ब्लड ट्रांसफ्यूज़न की कई बार ज़रूरत पड़ती थी।"

उनको भावभीनी श्रद्धांजलि उन्हीं की फिल्म के तराने की लाइनों में - आज की रात मेरे , दिल की सलामी ले ले कल तेरी बज्म से दीवाना चला जाएगा शमा रह जायेगी परवाना चला जाएगा ! पिछले साल ही उनकी १९५२ की फिल्म संगदिल देखी थी जिसमें वे ही कहते हैं , " मैं किसी से नहीं डरता, मैं जिंदगी से नहीं डरता , मौत से नहीं डरता , अंधेरों से नहीं डरता , डरता हूँ तो सर खूबसूरती से !" उन्ही की एक और प्रसिद्द फिल्म मुगले ए आजम की नज्म थी, " मोहब्बत हमने माना जिंदगी बर्बाद करती है , ये क्या काम है कि मर जाने पे दुनिया याद करती हैं ! "

स्पष्टीकरण क्यों दिया ?

मशहूर क्रिकेट कमेंटेटर और पत्रकार हर्षा भोगले ने चाइनीज़ वायरस क्या बोला कि बवाल कट गया ! बवाल काटने वालों का डबल स्टैण्डर्ड देखिये जब  दक्षिण अफ्रीकी वेरिएंट, ब्राजील वेरिएंट और इंडियन वेरिएंट कहा जा रहा था तब लॉजिक दे रहे थे कि  ये नॉर्म है कि हम किसी चीज को उसके देश की उत्पत्ति के नाम से पुकारते है ! लॉजिक से तो चाइनीज़ वायरस सबसे पहले बनता है ! देशवासियों को तो खुश होना चाहिए था कि किसी सेलिब्रिटी केटेगरी के शख्स ने चाइनीज़ वायरस तो बोला वरना हमारे यहाँ उन लोगों की कमी नहीं हैं जो चीन का नाम लिए जाने से कुपित होते हैं ! पता नहीं किस एंगल से लोगों ने इसमें पॉलिटिक्स ढूंढ ली जबकि आज बोलचाल में अधिकतर लोग चाइनीज वायरस ही बोलते हैं ! 

संदर्भ इसी मंगलवार का है जब इंग्लैंड क्रिकेट टीम के सात सदस्यों के कोविड पॉजिटिव पाए जाने की खबर आई और हर्षा ने ये ट्वीट कर दिया !  


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Prakash Jain

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