तैयारियों का जायजा लेने के पहले इन तैयारियों पर हो रही राजनीति का जायजा लें तो स्पष्ट है सबों ने इवेंट बना दिया है ! कई सेलिब्रेट कर रहे हैं तो कई फूफा टाइप लोग कमियां निकाल रहे हैं ! लेकिन हम राजनीति से इतर ही अपने डिस्कोर्स को रखेंगे कहीं पढ़ी इन चंद लाइनों को याद करते हुए :-
........पड़ी है सब पर भारी, अपने घर से दूर है ;
घरवाले भी दूर रहने को मजबूर हैं, सड़कें वीरान है , पंक्षी हैरान है ;
जानवर बेख़ौफ़ हैं , इंसान परेशान है, वसुधैव कुटुंबकम नहीं रहा ;
अतिथि देवो भवः नहीं रहा !
तकनीक के इस युग में , इतने लाचार है हम
सूक्ष्म जीव से डरकर, घर पर रहने को तैयार है हम
कितने बेबस हैं हम कितने लाचार हैं हम .....
सबसे बड़ा सवाल है तीसरी लहर कब और कितनी बड़ी आएगी ? अब जब दूसरी लहर मृतप्रायः समझी जा रही है, हालांकि ऐसा है नहीं चूँकि पिछले दिन पुनः मामले बढ़ते नजर आये हैं, थर्ड का आने का समय और उसकी गति का रिमोट कंट्रोल हमारे खुद के हाथों में हैं ! कहने का मतलब है दूसरी लहर की तबाही की बाद तीसरी लहर में , भगवान ना करे , वह मंजर फिर देखना पड़े तो दोष वायरस को कदापि नहीं दिया जा सकेगा !
सबसे पहले आज वायरस की वस्तुस्थिति जान लें। २०१९ का वुहान वायरस गत १८ महीनों में अनेकों रूप धर चुका है - अल्फा, बीटा, एप्सिलोन, गामा, कप्पा होते हुए आज डेल्टा और डेल्टा प्लस का रूप धर चुका है जो इसके ओरिजिनल चाइनीज़ रूप से अधिक संक्रामक भी है और शायद शरीर की एंटीबाडी को हैरान परेशान करने वाला भी है। लेकिन एक फर्क जरूर है कि संक्रामक ज्यादा है परंतु मारक कम है ! अन्य वायरस, जो किसी न किसी महामारी के कारक बनें , मसलन चेचक , हैजा , हेपेटाइटिस , रूबेला आदि में भी यही ट्रेंड था। शुरुआत में अत्यधिक मारक होते हुए भी महामारी के बढ़ते चरणों में वायरस की संक्रमण क्षमता बढ़ती गई पर उसकी मारक क्षमता घटती चली गई। दरअसल वायरस के अपने अस्तित्व के लिए ऐसा जरुरी भी है ! एक बात और , महामारी होते हुए भी कोरोना वायरस के असिम्प्टोमटिक फीचर ने भी इसकी मारक क्षमता को हतोत्साहित किया ; हालांकि असिम्प्टोमटिक शख्स इस मायने में थ्रेट बना कि चुपचाप उसने किसको संक्रमण दे दिया पता ही नहीं चला ! आंकड़ों की मानें तो अस्सी फीसदी लोगों में यह संक्रमण बिना लक्षणों के गुजर भी गया !
एक लॉजिक ये भी है कि मायावी वायरस की माया की एक सीमा है और अब और नए रूप शायद न धारण कर पाए ! इंडियन माइथोलॉजी भी तो यही है ; रावण मायावी था लेकिन मारक वह अपने असल रूप में ही हो पाता था , अन्य रूप तो सिर्फ छलने के ही काम आते थे ! इसी लॉजिक को विस्तार दें तो भविष्य में इस बात की संभावना अधिक है कि कोरोना सामान्य सर्दी-जुकाम-बुखार का कारण भर बनकर हमारे बीच बना रहे और किसी ज्ञानी की कही वह बात सच हो जाए कि हमने कोरोना के साथ जीना सीख लिया है।
अब जरा वैक्सीन और वैक्सीनेशन को समझें ! वैक्सीन कोई क्योर है ही नहीं ! कोरोना वायरस की बात जाने दें, इतिहास में कभी भी किसी वायरस के क्योर के लिए कोई वैक्सीन बनी ही नहीं। वैक्सीन स्वभाव से ही प्रिवेंटिव हैं ! और एक आदर्श वैक्सीनेटेड इंसान की बात करें तो डेवेलप हुई एंटीबॉडी के कारण वायरस उसपर असर नहीं कर पाता ! और स्पष्ट करें तो वायरस जीवाणु न होकर विषाणु होता है जो शरीर की कोशिकाओं में घुसकर उनका ही घातक रूपांतरण करता है। इसीलिए वायरस से लड़ाई हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता ही सर्वोत्तम ढंग से कर पाती है। वैक्सीन में भी वायरस के ही निष्क्रिय रूप को हमारे शरीर में डाल दिया जाता है जिससे कि हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता डाले गए निष्क्रिय वायरस को सक्रिय ख़तरा मानकर उससे लड़ने के लिए नए रोग निरोधक तत्वों का निर्माण कर सके। अपवादस्वरूप किसी पर वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स होने की भी यही वजह है चूँकि वैक्सीन का पर्पस यूनिवर्सल होता है लेकिन इन्हेरेंट और मौजूद प्रतिरोधात्मक क्षमता यूनिवर्सल नहीं होती। सो कोई कमजोर है या किसी भी तरह से बीमार है तो साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं।
एडवांटेज ह्यूमैनिटी ही था कि साल भर के अंदर ही कोरोना वायरस का टीका लगना प्रारंभ हो गया। और अब तो तमाम स्टडी का निचोड़ निकालें तो लब्बोलुआब यही है कि टीकाकरण से संक्रमण भी ५० प्रतिशत घटता है तथा संक्रमण, यदि हुआ भी तो सीरियस नहीं हो पाता, इस बात की भी ९५ प्रतिशत सुनिश्चितता है। दुनिया के फलक पर देखें तो इजराइल, इंग्लैंड, अमेरिका आदि जैसे देशों ने अपनी दो तिहाई से अधिक जनसंख्या का टीकाकरण भी कर दिया है जिसके चलते वहाँ पर कोरोना का तांडव काफी हद तक घट भी गया है और वहाँ सामान्य सामाजिक जीवन भी तेजी से पुनः बहाल होने लगा है।
और भारत यहीं मार खा गया है ! टीकाकरण शुरू हुआ और आत्ममुग्ध होते रहे कि हम सबसे ज्यादा लोगों का टीकाकरण कर रहे हैं ! बात सेफ हाउस बनाने की हो तो दो तिहाई जनसंख्या को टीका लगा देने पर ही ऐसा संभव है ! स्पष्ट है जनसंख्या के अनुपात में हमारा टीकाकरण अत्यंत ही धीमा शुरू हुआ और धीमा ही जा रहा है ! कई ब्लंडर्स हुए इस फ्रंट पर और सारे पॉलिटिकल ब्लेम गेम की वजह से ही थे। मोदी सरकार आत्मनिर्भरता का गुणगान कर रही थी तो विपक्ष को रास नहीं आ रहा था और मूर्खता वश वे वैक्सीन हैजिटेंसी को बढ़ावा दे बैठे ! आज यदि सर्वे इस बात का पता लगाने के लिए किया जाए कि कितने लोग टीका नहीं लेना चाहते तो वह नंबर शायद अमेरिका की पूरी जनसंख्या को भी पार कर जाए !
मकर संक्रांति के शुभ मुहूर्त में प्रारंभ हुए टीकाकरण अभियान को १३५ करोड़ जनता तक कम से कम समय में पहुंचाने की कोई ठोस योजना थी ही नहीं ! मानों मुहूर्त शुभ था तो अपने आप ही हो जाएगा ना ! खैर ! मुहूर्त पर शुरू करना था, कर दिया लेकिन शुरू करने के बाद भी ठोस योजना बनाते बनाते जून आ गया और शायद वो भी मोदी सरकार नहीं पेश करती यदि सुप्रीम कोर्ट कड़ा रुख नहीं अपनाती ! तो जो काम जनवरी में होने थे मसलन युद्धस्तर पर सभी ब्रांडों की वैक्सीन को मान्यता देने का, देसी को वैक्सीन के उत्पादन का अन्य फार्मा यूनिट्स द्वारा किये जाने के लिए अनुमति देना आदि, वे १३० दिन टल गए और इसी दरम्यान दूसरी लहर ने तांडव मचा दिया ! यदि सब कुछ समय पर हो जाता तो दूसरी लहर निश्चित रूप से इतनी मारक नहीं होती।
जो हुआ सो हुआ ! हौले हौले ही सही, जून के अंत तक पहली खुराक टीकाकरण भारत में औसत २० प्रतिशत तक पहुँच चुका है। यह शहरों में ५० प्रतिशत तथा ग्रामीण इलाकों में १५ प्रतिशत तक पहुँचा है। जहां तक वैक्सीन उपलब्धता की बात है तो भारत में निर्मित होने वाली तीन वैक्सीन -कोविशील्ड, कोवैक्सीन तथा स्पुतनिक वी मिलाकर वर्तमान में रोजाना क़रीब ३०-४० लाख खुराकों का उत्पादन हो रहा है। पिछले दिनों ही वही शुभ मुहूर्त वाली बात फिर हुई जब वर्ल्ड योगा डे के दिन केंद्र सरकार के फ्री टीकाकरण अभियान की शुरुआत की गई ! उस एक ही दिन में तक़रीबन ९० लाख लोगों के टीकाकरण का आंकड़ा खूब फ़्लैश किया गया जबकि सबको मालूम है जन्नत की हकीकत वाली बात ही थी ! फिलहाल जब उपलब्धता ही अधिकतम ४० लाख प्रतिदिन की है तो २१ तारीख कर रिकॉर्ड बनाकर दिखाने का क्या औचित्य ? तभी तो दूसरे तीसरे दिन से ही रोजाना टीकाकरण का आंकड़ा घटने लगा तथा अब पिछले दो दिनों से पुनः ३० लाख से नीचे चला गया है ! साथ ही राज्य दर राज्य टीकों की कमी के कारण टीकाकरण केंद्रों को ही बंद कर दे रहे हैं ! फिलहाल एक जानकारी और है कि सीरम इंस्टीट्यूट के पास नोवावैक्स की ५ करोड़ खुराकें भी तैयार हैं जो भारत सरकार से उपयोग अनुमति के इंतज़ार में हैं। तीसरी लहर से बचने के लिए भारत को अपने समस्त ९० करोड़ वयस्क जनसंख्या को पहली खुराक टीका लगाने के लिए क़रीब सौ दिनों का समय शेष है। यह अभियान तभी सफल हो पाएगा जब भारत रोजाना क़रीब एक करोड़ लोगों का टीकाकरण करने लगेगा।
अब आएं मुख्य मुद्दे पर ! वायरस एवं वैक्सीन की समझ -सरकार को, प्रशासन को तथा आम आदमी को जितनी अधिक होगी, वायरस से लड़ाई उतनी ही प्रभावशाली रहेगी। हमारा देश स्पीडी और सफल टीकाकरण कर सकता है, कोई दो राय हो ही नहीं सकती ! लेकिन टीके बनाने और बेचने का काम विश्व भर में कुछ ही इकाइयाँ करती हैं और टीके सबको चाहिए। साथ ही डोमेस्टिक प्रोडक्शन की अपनी लिमिटेशन है। तो टीकों की अतिशीघ्र उपलब्धता ही टारगेट प्लान होना चाहिए।
एक और महत्वपूर्ण पक्ष है हर्ड इम्युनिटी का जिसके तहत किसी भी महामारी में संक्रमण की अधिकतम संख्या क्या हो सकती है ! जब हर्ड इम्यूनिटी की स्टेज आती है तब वायरस लाचार होकर अपनी संक्रमण क्षमता खोने लगता है क्योंकि अधिकांश लोगों में नैसर्गिक या वैक्सीन जनित प्रतिरोध क्षमता उत्पन्न हो ही जाती है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक़ कोरोना वायरस के लिए यह जनसँख्या का ८०-८५ फीसदी होगा और तब नए संक्रमण इक्का दुक्का ही होंगे !
अप्रैल-मई २०२१ की सुनामी के बाद कहा जा सकता है कि अर्बन इंडिया की दो-तिहाई से अधिक और रूरल इंडिया की एक-तिहाई जनसंख्या इम्यून हो चुकी है। सिंपल कहें तो तक़रीबन ५८ करोड़ जनसंख्या कमोबेश २०२१ के अंत तक कोरोना के पुनः संक्रमण से सुरक्षित है। तो सीधा मतलब यही हुआ कि क़रीब ७५ करोड़ भारतीय अभी भी संभावित तीसरी लहर की चपेट में आने के ख़तरे में हैं। और यदि भारत अभी से प्रतिदिन ५० लाख लोगों का भी टीका करता रहे यह प्रक्रिया २०२१ के अंत तक चलेगी, जिससे बहुत पहले ही अगली लहर का आना संभावित है।
तो क्या किया जा सकता है ? इंडिया कैसे तीसरी-और फिर चौथी और और फिर पाँचवीं लहर से बच सकता है ? टास्क हरक्यूलियन है और वह है रोज १ करोड़ लोगों का टीकाकरण अगले १०० दिनों तक करने का। इसमें देश की १२ वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों का टीकाकरण भी शामिल है क्योंकि वे भी अब संक्रमण की जद में उतने ही हैं जितने एडल्ट है। उनके लिए भी सुरक्षित वैक्सीन ईजाद जो हो गई है । लेकिन फिलहाल आसार तो ऐसे होते नजर नहीं आ रहे हैं।
अब to sum up, जहाँ मास्क, दो गज की दूरी, भीड़ भाड़ के आयोजनों से परहेज , हैंड वाश और खुली हवा हमारा टेम्पररी रेस्क्यू है वहीं हर व्यक्ति को शीघ्रातिशीघ्र टीका लग जाना भारत को कोरोना से परमानेंट निजात भी दे देगा।
और अंत में थोड़ा बात करें कुछ महत्वपूर्ण सुझावों की जिनकी महती आवश्यकता है तबतक जबतक कंट्री फुल्ली वैक्सीनेटेड नहीं हो जाता। ये सुझाव लांसेट जर्नल में २१ एक्सपर्ट्स के पैनल ने १८ जून को ही दिए थे जिनमें बायोफार्मास्यूटिकल कंपनी बायोकॉन की संस्थापक किरण मजुमदार-शॉ और जानेमाने सर्जन डॉक्टर देवी शेट्टी भी शामिल है।
पहला सुझाव है कि आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं का विकेंद्रीकरण होना चाहिए। सभी के लिए एक ही तरह के उपाय ठीक नहीं हैं क्योंकि ज़िला स्तर पर कोरोना के मामले और स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति अलग-अलग होती है।
सभी आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं जैसे एंबुलेंस, ऑक्सीजन, ज़रूरी दवाओं और अस्पताल में इलाज की कीमत पर सीमा निर्धारित होनी चाहिए और एक पारदर्शी राष्ट्रीय मूल्य नीति बनानी चाहिए। अस्पताल में इलाज कराना लोगों की जेब पर भारी नहीं पड़ना चाहिए और सभी के लिए इसका खर्च मौजूदा स्वास्थ्य बीमा योजनाओं को उठाना चाहिए।
कोविड-19 के प्रबंधन से जुड़ी स्पष्ट, साक्ष्य आधारित जानकारी को लोगों तक पहुंचाने का दायरा और बढ़ाना चाहिए और इन्हें लागू करना चाहिए। इस जानकारी में घर पर देखभाल व इलाज, प्राथमिक देखभाल और ज़िला अस्पतालों में देखभाल के लिए स्थानीय भाषाओं में अंतर्राष्ट्रीय दिशानिर्देश शामिल होने चाहिए जिसमें स्थानीय परिस्थितियां और क्लीनिकल प्रैक्टिस शामिल हों।
निजी क्षेत्र सहित स्वास्थ्य प्रणाली के सभी क्षेत्रों में मौजूद सभी मानव संसाधनों को कोविड-19 से लड़ाई के लिए तैयार करना चाहिए। इस लड़ाई के लिए उनके पास पर्याप्त संसाधन भी होने चाहिए, जैसे अपनी सुरक्षा के लिए उपकरण, क्लीनिकल हस्तक्षेप के इस्तेमाल के लिए मार्गदर्शन, बीमा और मानसिक स्वास्थ्य के लिए सहयोग।
राज्य सरकारों को मौजूदा वैक्सीन की डोज़ का बेहतर इस्तेमाल करने के लिए कोरोना वायरस के टीके के लिए अलग-अलग समूहों की प्राथमिकता तय करनी चाहिए। वैक्सीन की आपूर्ति बढ़ने के साथ इसका दायरा और बढ़ाया जा सकता है। वैक्सीनेशन सार्वजनिक हित के लिए है। इसे बाज़ार तंत्र पर नहीं छोड़ना चाहिए।
कोविड-19 से लड़ाई में सामुदायिक मेलजोल के साथ काम करने और सार्वजनिक भागीदारी पर ध्यान देना चाहिए। जमीनी स्तर पर काम कर रहे नागरिक समाज की स्वास्थ्य देखभाल और अन्य विकास गतिविधियों में लोगों की भागीदारी में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका रही है, जैसे कि मुंबई में कोविड-19 से लड़ाई को मजबूत करना।
आने वाले हफ्तों में कोरोना के मामले बढ़ने की आशंका को देखते हुए जिलों को सक्रिय रूप से तैयार करने के लिए सरकारी डेटा संग्रह और मॉडलिंग में पारदर्शिता होनी चाहिए। स्वास्थ्य कर्मियों को कोविड-19 मामलों में अलग-अलग आयु और लिंग के आंकड़ों, अस्पताल में भर्ती होने की दर और मृत्यु दर, वैक्सीनेशन की सामुदायिक स्तर पर कवरेज, उपचार प्रोटोकॉल की प्रभावशीलता की समुदाय-आधारित ट्रैकिंग और दीर्घकालिक परिणामों पर डेटा की आवश्यकता होती है।
कामकाज बंद होने और नौकरी जाने से लोगों की परेशानियां बढ़ गई हैं और स्वास्थ्य को लेकर भी ख़तरा बढ़ा है जिसे कामगारों को नगदी पैसा ट्रांसफर करके कम किया जा सकता है। कुछ राज्य सरकारों ने ऐसा किया है। औपचारिक क्षेत्र में नियोक्ताओं को अनुबंध की मौजूदा स्थिति के इतर सभी कामगारों को नौकरी पर बनाए रखना चाहिए। अर्थव्यवस्था के पटरी पर लौटने पर इन कंपनियों को मुआवज़ा देने की सरकारी प्रतिबद्धता भी होनी चाहिए।
समस्या सबसे बड़ी लोगों द्वारा पैदा की जाती है ! और ऐसा दुनिया के हर देश में है। उन्हें थोड़ी छूट मिली नहीं कि वे अनुशासन भूल जाते है। अब देखिये कल पश्चिम बंगाल सरकार ने लॉक डाउन नियमों को शिथिल करते हुए प्राइवेट बसों को ५० फीसदी कैपेसिटी पर ऑपरेट करने की इजाजत दी और आज ही सारे प्रोटोकॉल धरे के धरे रह गए ! तो यदि कहें कि कोरोना को हराने का एक ही सूत्र है जो सब पर लागू होता है चाहे जनता हो चाहे सरकार हो या कोई और और वह है - "निज पर शासन फिर अनुशासन !" आज ही इजरायल से , जिसकी जनसँख्या बमुश्किल ९० लाख ही है और जहां तक़रीबन ६० फीसदी जनता वैक्सीनेटेड है , खबर है कि वहां पिछले २४ घंटे में ३०७ नए कोविड -१९ के संक्रमण के मामले आये हैं और यह आंकड़ा पिछले ३ महोनों का आल टाइम हाई डाटा है। ऐसा क्यों हुआ ? सरकार अति आत्म विश्वास का शिकार हुई अनुशासनहीन हुई और जनता ने वही फॉलो किया ! हाल के महीनों में टीकाकरण का विस्तार देखते हुए देश में कोरोना की रोकथाम के लिए लागू लगभग सभी प्रतिबंधों को हटा दिया गया था। दुकानों, स्कूलों और सभाएं आयोजित करने के स्थानों को खोल दिया गया था। मास्क गायब थे ! अब फिर से वे सचेत हो रहे हैं !
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