अभी अभी सुना आईसीएमआर और एम्स ने इलाज के दौरान संक्रमित मरीजों को दी जाने वाली प्लाज्मा थेरेपी पर रोक लगा दी गई है। कल तक सोशल मीडिया पटा पड़ा था, कोई प्लाज़्मा मांग रहा था तो कोई डोनेट कर रहा था और कोई डोनेट करने की इच्छा जाहिर कर रहा था ! ब्लड डोनेशन कैंपेन सरीखा प्लाज़्मा डोनेशन कैंपेन ट्रेंड कर रहा था !
पिछले साल ही जुलाई में हैल्थ मिनिस्टर डॉ हर्षवर्धन ने ही अभियान की शुरुआत की थी, दिल्ली के सीएम ने तो प्लाज़्मा बैंक की स्थापना भी की थी और वाहवाही भी लूट ली थी कि हमने जो किया उसे अमेरिका फॉलो कर रहा हैं ! महाराष्ट्र में भी खूब ट्रायल हुए थे ; कुल मिलाकर आज स्थिति ये थी कि प्लाज़्मा डोनर भगवान से कम नहीं था !
प्लाज्मा थेरेपी के असरदार नहीं होने की बातें हेल्थ एक्सपर्ट्स कब से कर रहे थे और आईसीएमआर और एम्स आज एक्टिव होते हैं, क्यों ? पहले लक्षणों की शुरुआत होने के सात दिन के भीतर बीमारी के मध्यम स्तर के शुरुआती चरण में और जरूरतें पूरा करने वाला प्लाज्मा दाता मौजूद होने की स्थिति में प्लाज्मा पद्धति के इस्तेमाल की अनुमति थी। आज तमाम लॉजिक दे दिए गए हैं मसलन कई मामलों में इसका अनुचित इस्तेमाल, इसका महंगा होना , डोनर के प्लाज़्मा की क्वालिटी और एंटीबाडीज की पर्याप्त संख्या की अनिश्चिंतता आदि आदि ! क्या सारी टेक्नीकलिटीज़ तब नहीं थी जब इसे रामबाण बता दिया गया था ? हटाने का लॉजिक ही डॉक्टरों की सुविधा का बखान करता है ! किस दबाव में रहती हैं हमारी मेडिकल बॉडीज कि वे अक्सर अंत में निर्णय लेने वालों में प्रथम रहते हैं ? ऐसी ही देरी उन्होंने दोनों डोज़ों के अंतराल को बढ़ाने के मामले में की थी जबकि यूके आदि ने कब का कर दिया था !
पता नहीं क्या होगा पूरे देश में मल्टीपल प्लाज्मा पोर्टल्स का ? तुक्के का तीर एक और देखिये पिछले दिनों ही गोवा सरकार ने कहा- आइवरमेक्टिन सभी निवासियों को दी जाएगी चाहे उनमें कोविड के लक्षण हों या नहीं हो ! लॉजिक है यूके, इटली, स्पेन और जापान के विशेषज्ञ पैनल ने आइवरमेक्टिन के इस्तेमाल से मृत्यु दर में एक बड़ी सांख्यिकीय कमी पाई है और रिकवरी के समय और वायरल क्लीयरेंस में भी कम समय लगता है ! जबकि मार्च २०२१ में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा कि कोविड-19 मरीजों के इलाज में आइवरमेक्टिन दवा के इस्तेमाल से फायदे के फिलहाल ठोस सबूत नहीं मिले हैं और अधिक डेटा हासिल होने तक सिफारिश की है कि दवा का केवल क्लीनिकल ट्रायल के मामलों में इस्तेमाल किया जाए ! जहां तक बात करें आइवरमेक्टिन की तो ये एक डीवर्मिंग ड्रग (कीड़े मारने की दवा) है जिसका इस्तेमाल जानवरों, खासतौर से घोड़ों में पैरासाइट्स की रोकथाम और ट्रीटमेंट के लिए किया जाता है ! तो लॉजिक कहां रहा ? कुल मिलाकर इस बात की कोई व्याख्या नहीं है कि एक एंटी-पैरासाइटिक दवा कोविड का इलाज कैसे कर सकती है ?
दरअसल इलाज पता ही नहीं है तो सारे के सारे ट्रायल एंड एरर मेथड अपनाये हुए हैं ! वन टू आल सारी दवाइयां दे दो फिर भले ही कोई सीरियस साइड इफेक्ट्स मसलन ब्लैक फंगस हो जाए ! क्या फनी सिचुएशन है , कल स्टेरॉयड की उपयोगिता थी, आज दुरुपयोग का आरोप मढ़ दिया ! भई , डॉक्टर ने नुस्खा लिखा तभी तो लिया था ना !
इसी संदर्भ में एक रिसर्चर एमडी डॉक्टर मधुकर पई हैं जिन्होंने बात की है प्रोवेन ट्रीटमेंट की और तमाम दवाइयों की एक लिस्ट शेयर की हैं यह कहते हुए कि they are not proven and not routinely advised for COVID-19 ; जबकि हो क्या रहा है ? अधिकांश डॉक्टर इन्हें प्रेस्क्राइब कर रहे हैं ! इसी लिस्ट में DRDO की 2DG का भी नाम हैं जिसे कल ही जोर शोर से लांच किया गया था ! तब तो सभी दवाओं को इस लिस्ट में होना चाहिए क्योंकि कोविड क्योर के लिए तो कोई है ही नहीं और ना ही किसी ने ऐसा क्लेम भी किया है या कॉपीराइट रजिस्टर करवाया है ! रेमडेसिवीर हाइप देख ही रहे हैं हम ! WHO ने कभी इसे अप्प्रूव नहीं किया क्योंकि पर्याप्त डाटा और समुचिन फाइंडिंग्स उपलब्ध नहीं है ! पता नहीं क्यों हमारे देश में ऐसा माहौल खड़ा हो गया कि रेमडेसिवीर संजीवनी है और डॉक्टरों ने भी ओवर प्रेस्क्राइब किया इसे ! क्या कोई फार्मा लॉबी काम कर रही थी ? शर्म की ही बात है कि जो देश रेमेडेसवीर १२५ देशों को एक्सपोर्ट करता था , वहां ४०००-४५०० का इंजेक्शन ४०००० रूपये तक बिक गया और अभी भी पागलपन बरकरार है !
डाटा , जो भी उपलब्ध हैं , बताते हैं कि रेमेडेसवीर, जोकि एक एंटी वायरल है , से मरीज की ऑक्सीजन की जरुरत कूल भर हो जाती है ; यही काम तो 2DG का बताया जा रहा है हालांकि थ्योरी अलग है ! पहली इंजेक्ट की जाती है और दूसरी पानी में घोल कर पीनी है !
फिलहाल, कोविड को रोकने के लिए सबसे अच्छा उपाय अभी भी वही है जो हमेशा से रहा है— मास्क पहनें, अपने हाथों को बार-बार धोएं, भीड़-भाड़ वाली जगहों और गैरजरूरी सफर से बचें, शारीरिक दूरी का ध्यान रखें, और वैक्सीन लगवाने वालों के दायरे में आते हैं तो वैक्सीन लगवाएं ! हालांकि वैक्सीनेशन के बाद हम कितने समय तक सुरक्षित रहेंगे , अभी पता नहीं है !
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