ऑल्ट बालाजी वेबसीरीज  DARK 7 WHITE रिव्यू : क्यों ना कहें PORN IS ON THE TOP ?

पॉर्न का शाब्दिक अर्थ है अश्लील और अश्लील इस मायने में सापेक्ष है कि एक के लिए जो अश्लील है वो शायद दूसरे के लिए ना हो ! लेकिन वो दूसरा भी नहीं चाहता कि जो उसने सीक्रेटली अकेले या प्राइवेट ग्रुप में देखा है वह उसके बच्चे भी ओपनली या प्राइवेट में देख लें ! 

कुतर्क के लिए तर्क दिया जा रहा है कि ओटीटी और इस सरीखे अन्य प्लैटफॉर्म्स को रेगूलेट क्यों किया जाय जबकि वे सेल्फ रेगुलेशन के तहत बाक़ायदा नियम और शर्तें लागू करते ही हैं मसलन ऐज सजेसन (१८ प्लस टाइप ) , कंटेंट्स डिस्क्रिप्शन (न्यूडिटी , सेक्स , वायलेंस ) और लैंग्वेज (स्ट्रांग ) आदि।  और फिर खास इस सीरिज़ की बात करें तो स्ट्रिक्ट पैरेंटल कंट्रोल भी सजेस्ट किया है ! 

 एक और स्ट्रांग आर्गुमेंट है कि पॉर्न बैन है तो क्या लोग देखते नहीं है क्या ? और फिर रेगुलेट कैसे करेंगे ? रेगुलेशन के नाम पर क्रिएटिविटी का गला घोंट दिया जाएगा ! फ्रीडम ऑफ़ स्पीच और पर्सनल लिबर्टी वाले कार्ड तो हैं हीं ! और भी कई कई ..... !

लेकिन हम भटक क्यों रहे हैं ? हमें सिर्फ रिव्यू देना है तो हम क्यों लक्ष्मण रेखा लाँघ रहे हैं ? तो सिर्फ इतना बताते हुए ट्रैक पर लौट आते हैं कि लक्ष्मण रेखा खींची ही जाती है लांघने के लिए निमित्त तब रावण था और आज अनेकों रावण है और व्यूअर्स असंख्य सीतायें हैं जिन्हें डर्टी मनी के लिए रेखा लंघवायी जा रही हैं।  

नहीं रहा जा रहा सो दो एक और बातें कहूंगा ही ; समझ लीजिये रिव्यू का कोलैटरल डैमेज है ! सवाल है व्यूअर्स कैसे मिल रहे हैं इन प्लेटफॉर्म्स को ? सब्सक्रिप्शन , वो अंग्रेजी में कहते हैं ना , डैम चीप है और एक सब्सक्रिप्शन में ४-५ और भी जोड़ लेने के ऑप्शन भी हैं ! टीवी स्मार्ट टीवी है और अब तो स्मार्टफोन हाथ में हैं ! इंटरनेट डाटा भी मोटा भाई (जियो ) की मेहरबानी से डैम चीप से भी ज्यादा चीप है आखिर न्यू आयल है तो ड्रिंकिंग वाटर से भी सस्ता उपलब्ध करा दिया जा रहा है ! बाकि कमाई के लिए तो हम व्यूअर्स की इंफॉर्मेशंस को एक्सप्लॉइट करने के लिए नए नए डिजिटल टूल्स मसलन आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस , मशीन लर्निंग आदि है हीं !   

फिर मनुष्य स्वभावतः जिज्ञासु होता है तो वर्जनाएं या कहें फॉरबिडेन चीजें उसे अट्रैक्ट करती है और फिर एडिक्शन अपना रोल प्ले कर जाता है। 

सेंसर होता है या रेगुलेट होता है तो मर्यादाएं निर्धारित कर दी जाती हैं और क्रिएटर उच्छंखल नहीं होता, एक डर बन जाता है नियम कायदे कानून का ! सेल्फ रेगुलेशन ही यदि सार्थक होता तो इंडियन पीनल कोड की क्या जरुरत थी ? धारा ३०२ हैं तो मर्डरर को पकड़े जाने का डर है , सजा का डर है ; हालाँकि मर्डर फिर भी होते हैं और कभी निरपराध भी फंस या फंसा दिया जाता है जिसे कानून का मिसयूज कहा जाता है। लेकिन मिसयूज की बिना पर कानून नहीं बनना चाहिए ऐसा तो नहीं कह सकते ! यही बात कंटेंट्स पर लागू होती हैं, वायोलेसन होते हैं, मिसयूज भी होते हैं ; लेकिन जरुरी है वरना मनुष्य और जानवर में क्या फर्क रह जाएगा ? 

चूँकि ओटीटी प्लेटफॉर्म्स टीवी पर ही स्ट्रीम होते हैं और स्मार्ट टीवी साथ ही फोन की स्मार्ट स्क्रीन भी टीवी के ही एक्सटेंशन हैं , तो फिर रेगुलेटिंग बॉडी क्यों ना हो भले ही गवर्नमेंटल ना हो, न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन सरीखा ही क्यों ना हो ! अब देखना है IB Ministry कितनी कारगर होती है इनपर लगाम कसने में ! आरोप प्रत्यारोप लगेंगे तो आजकल कहाँ नहीं लगते ? भगवान् सरीखे पंच परमेश्वर ( न्यायालय ) भी नहीं बचे ; जिसको देखो फ्रीडम ऑफ़ स्पीच और पर्सनल लिबर्टी के नाम पर मुंह उठाये कुछ भी अनर्गल बोल देता है ! 

अब चले आएं इस डार्क ७ वाइट वेबसीरीज पर ! ऑल्ट बालाजी बोल्ड हैं तो कोई आश्चर्य नहीं होगा कि निकट भविष्य में बोल्ड डिसीजन के तहत इस प्लेटफॉर्म और इस सरीखे अनेकों मसलन उल्लू ऍप ही बैन हो जाएँ !  किसी श्वेता बृजपुरिया की बुक डार्क वाइट पर बेस्ड क्राइम , बदला , नफरत , जलन , प्यार , धोखा , वफादारी , नैतिक मूल्य और राजनीति का चूं चूं का मुरब्बा  ही है। पूरा का पूरा क्रिएशन कहें या कंटेंट कहें घृणित ही है ! हर रिश्ता, हर किरदार मर्यादाहीन है ! हर प्रसंग बेतुका है, बेसिरपैर का है सो आपत्तिजनक है। 

राजस्थान है , रजवाड़ा है , वहीँ का पता नहीं कौन सा कॉलेज है जहाँ प्रोफ़ेसर नहीं है , क्लासरूम नहीं है लेकिन स्विमिंग पूल का सीन है ! हॉस्टल है जहाँ पार्टी का सीन है , ड्रग्स हैं , ऐय्याशी की पराकष्ठा है , मर्डर है लेकिन अन्यथा हॉस्टल लाइफ है ही नहीं ! और तो और  ब्रेस्ट कैंसर के लिए जागरूकता अभियान का हिस्सा पिंक ब्रा टॉस की थीम को भी एक्सप्लॉइट कर लिया; शेम ऑन एकता कपूर !  अब व्यूअर्स सोचने की जहमत ना उठायें कि कौन सा कॉलेज है ? आपकी सोच पर ऑल्ट बालाजी का कब्ज़ा जो है ! 

२० - २० मिनट के दस एपिसोड्स हैं और यहाँ भी पास्ट और प्रेजेंट का घालमेल है जिसके बीच तक़रीबन १० साल का अंतराल है ! और अजूबा देखिये हर किरदार या उसकी आदत , उसके हाव भाव में रत्तीभर का फर्क नहीं आया है ! दादा शमशेर सिंह (संजय बत्रा) का तो ड्रेस कोड भी जस का तस है और पिछले दिनों मिर्जापुर के ससुर और बहु (मां सा के किरदार में रेनू वर्मा ) के अनैतिक रिश्तों की तर्ज पर ही एक कदम आगे है कहानी चूँकि मुख्य किरदार युद्धवीर सिंह (सुमित व्यास) इसी अनैतिकता की पैदाईश है तभी तो वो साइकोपैथ है ! 

रजवाड़े और पॉलिटिक्स का घालमेल अनुराग कश्यप की गुलाल की याद दिला देता है लेकिन गुलाल मास्टरपीस थी और डार्क वाइट रजवाड़े और राजस्थान के लिए भी कलंक है। सिर्फ एक ही चीज , शायद गलती से या अनजाने ही क्रिएट हो गयी है , लुभाती है और वो हैं दो दो वॉइस ओवर ! एक तो युद्धवीर का मृतक के रूप में हैँ शायद सेक्रेड गेम्स के गायतोंडे से प्रेरित हो और दूसरा है  एसीपी अभिमन्यु सिंह (जतिन सरना ) इन्वेस्टिगेटर के रूप में ! 

यूडी अपनी हत्या के शक में अपनी जिंदगी के पुराण को खंगालता है जिनपर सात लोग हैं और उन्ही के चरित्र चित्रण करते करते कहानी आगे बढ़ती है। इन्ही सात लोगों को एक्सप्लॉइट कर ही यूडी कॉलेज की राजनीति से  राजस्थान का चीफ मिनिस्टर तक बना था और शपथ लेने के पहले ही उसका खून हो गया। चूँकि सारे के सारे किरदार उसके शोषण के शिकार हैं , खूनी कोई भी हो सकता है या फिर साजिश इन्हीं सातों में से किसी एक या एक से ज्यादा किरदारों की मिलकर भी हो सकती है। सबसे पहले एक गे जोड़ा है कुश लाम्बा (कुंज आनंद )  और योगेश (शेखर चौधरी ) जो स्टेट के सीएम भैरों सिंह (संजय स्वराज) की पार्टी के ही गुर्गे हैं और कॉलेज राजनीति में वर्चस्व था उनका ! यूडी पहले इनको फंसाता है और इन्हीं का पत्ता काटकर राजनीति में प्रवेश करता है।यूडी की कई गर्ल फ्रेंड्स हैं और सभी के साथ वह फिजिकल भी है जो ओपन सीक्रेट हैं। एक है ग्रेशमा (तान्या कालरा ) जो यूडी के लिए लोगों को फंसाती है और किसी भी हद तक चली जाती है फिर किसी के साथ भी फिजिकल ही क्यों ना होना पड़े। उसने शादी भी की है और पति यूडी से नाराज है चूँकि बीवी उसकी वह यूज़ कर रहा है।एक और है नीलू (मोनिका चौधरी ) जो यूडी की अंधभक्त हार्ड प्रेमिका है मानों शोषित होने में उसे आनंद मिलता है, बच्चा भी उसका जनती है जिसे वह नहीं स्वीकारता। एक खानदानी बॉडीगार्ड धवल (रचित बहल) है लेकिन नीलू का एकतरफा प्रेमी है। डेजी (निधि सिंह ) भी है सीएम की बेटी है और यूडी की मंगेतर है। एक और गर्ल फ्रेंड ताशी (मधुरिमा रॉय ) भी थीं और फिर सबसे रोबीला किरदार अभिमन्यु है जो इन्वेस्टिगेटर है।

पुलिस है , वकील है, अदालत हैं , सारे मजाक ही तो हैं। अपराध पर अपराध हो रहे हैं, सस्पेक्ट हों या मुजरिम टहलते हुए थाने आ जा रहे हैं ; सारी की सारी शक्तियां अभिमन्यु के पास है जिसे ना किसी आर्डर की जरुरत है ना ही किसी को उसे रिपोर्ट करना है आखिर कलियुग का अभिमन्यु जो है ! 

थोड़ी सी अच्छी बात है कि अब्यूजिव लैंग्वेज ज्यादातर अंग्रेजी के शब्दों में हैं, हालाँकि ग्रेशमा के मुख से तो जो सुनवाया है शर्मसार कर देता हैं ; लेकिन इस बार पार्श्व से यूडी के मुख से ऑल्ट ने जमकर चाणक्यगिरी करवाई है और हर पर्सपेक्टिव को बेतुकी तुलना कर साहित्यिक पॉर्न का जामा पहना दिया है !

कुछेक बानगियाँ हैं -  रियल लव और रियल फ़क दोनों में दिमाग से नहीं दिल से सोचना पड़ता है ; राजनीति और सेक्स नीति में एक बात कॉमन होती है -  it's all about timing ; सपने और सेक्स अधूरे रह जाएँ तो ऑर्गज़्म नहीं होता ; बैड लक और बैड फ़क में एक बात कॉमन है , इंसान को चैन से बैठने नहीं देता ! वाह ! क्या लिटरेचर है , क्रिएटिविटी है ! हर व्यूअर और यहाँ हर रीडर मन ही मन गाली दे रहा होगा , कोस रहा होगा सोचकर कि क्यों किसी दूसरे ने सुना या पढ़ लिया ? 

गर्ल्स के लिए तो सबसे ज्यादा आपत्तिजनक है आज जब हम फेमिनिज्म की बात करते हैं ! और फिर एकता कपूर और यहाँ तक कि राइटर बृजपुरिया भी महिला हैं ! फिर क्यों उन्हें किसी मर्द का यूँ फीमेल को डिस्क्राइब करना बर्दास्त हुआ ? नीलू इज़ लाइक प्याज की कचौड़ी, ज्यादा नहीं खा सकते एसिडिटी हो जाती है ; ताशी वाज़ टू स्वीट लाइक ए डेजर्ट ; ग्रेशमा लाइक ए माउथ फ्रेशनर ; एंड माई मेन कोर्स डिश इज़ डेजी ! 

हमारे सेवकों और सेवादारों को भी आपत्ति होगी जब एक प्रसंग में उनकी तुलना कुत्तों से कर दीं और कुत्तों से भी बदतर बता दिया ; Animal dogs are wild but they never betray whereas human dogs always betray !

सिर्फ और सिर्फ एक डायलॉग बेहतरीन और अपीलिंग लगा और वह था एंकर सवाल को सवाल की तरह पूछता ही नहीं है तो जवाब कैसे मिले ? एक्टिंग की बात करें तो एकाध को छोड़कर मसलन सुमित व्यास (यूडी ), सेक्रेड गेम्स का बंटी फेम जतिन सरना (अभिमन्यु सिंह) और डेजी (निधि सिंह ) शायद ही अन्य परिचित सा लगे। सबों ने निश्चित ही कोरोना काल की मज़बूरी में ही रोल किये हैं ! कुल मिलाकर देखें या ना देखें पर एक ही टिप्पणी बनती हैं कि देख लिया तो आपका बैड लक है जो आपको हर पल बेचैन रखेगा कि कहीं फलाने ने तो नहीं देख लिया और वो फलाने आपके छोटे भाई - बहन , बेटा -बेटी या माँ -बाप या शिष्य कोई भी हो सकते हैं !                                                   


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Prakash Jain

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