फेसबुक के दीपावली २०२० का विज्ञापन देखा और दिल को मेरी कसम से सुकून मिला, सुकून मिला इस कोरोना संकट काल में !
विज्ञापनों का दौर है और कई बार पसंदीदा प्रोग्राम या फिल्म देखने के दौरान दिखाए जाने वाले विज्ञापनों से कोफ़्त हो जाती है। प्रोडक्ट्स का प्रचार प्रसार इन विज्ञापनों का उद्देश्य होता है तो लोगों तक पहुँच बनाने के लिए विज़ुअल मीडिया एक सर्वोत्तम टूल है। टीवी चैनलों को टीआरपी के अनुरूप विज्ञापन मिलते हैं, जिस प्रोग्राम या फिल्म या कंटेंट की जितनी ज्यादा लोकप्रियता होती है उनके टाइम स्लॉट्स उतने ही महंगे होते हैं। और इन महंगे स्लॉट्स को जस्टिफाई करते हैं महंगे विज्ञापन जिनमें सबकुछ ब्रांडेड हैं मसलन पात्र भी सेलिब्रिटी सरीखे ब्रांड्स हैं , प्रोडक्ट्स भी स्थापित ब्रांड हैं, थीम भी हाईफाई क्रिएट की जाती है ; सब कुछ डाला जाता है ताकि व्यूअर्स को कोफ़्त ना हों और पर्पस सिद्ध हो।
चूँकि एड रिपीट पर रिपीट होते हैं, अव्वल दर्जे की क्रिएटिविटी तमाम ब्रांडवैल्यू के बावजूद भी ऊब पैदा कर ही देती हैं। फिर अधिकतर विज्ञापन क्लोज़अप शॉट में आपके पसंदीदा हीरो हीरोइन के चेहरे या हॉट पिक्स नहीं बल्कि प्रोडक्ट का लोगो दिखाते हैं ! अंततः ये प्रमोशन ज़बरदस्ती लादे से लगने लगते हैं , टार्चर लगते हैं ! लेकिन सालों में कभी कोई ऐसा विज्ञापन आता है जिसे बार बार देख कर भी कोफ़्त नहीं होती ; उलटे हम मौका तलाशते हैं उस पीस को उस स्टफ को बार बार देखने का ! ऐसा क्यों होता है ? कंटेंट की क्वालिटी , टेक्निकल पक्ष आदि के अलावा बड़ी बात जो होती है वो है थीम से प्रोडक्ट निकलता है ना कि प्रोडक्ट से थीम ! क्लोज अप में हों या बैकड्रॉप हो, थीम बिल्कुल स्वतंत्र होती है , समकालीन होती है और दिल को छूती है। मैसेज मुख्य होता है और प्रोडक्ट उस मुख्य बात से जुड़ा फील करा दिया जाता है !
यही काम फेसबुक के दीपावली वीडियो पूजा दीदी ने कर दिया है, सोशल डिस्टैन्सिंग के दौर में हम साथ साथ है का मायने समझाया है ! आलम ये है कि आप ना केवल इस वीडियो में सात मिनट खुद खपायेंगे बल्कि इसे खूब शेयर भी करेंगे ! तो हो गया ना फेसबुक पर फ्रेंड्स बनाने ,पोस्ट करने और शेयर करने का प्रचार प्रसार !
ये बातें तो हो गयीं कमर्शियल टच वाली ! हकीकत में शार्ट फिल्म सरीखे इस वीडियो ने कोरोना वायरस महामारी और ऐसे समय में सोशल मीडिया की भूमिका के बीच नौकरी के नुकसान के मुद्दे को प्रभावी रूप से इस कदर छुआ है कि विज्ञापन का अंत देखकर हर किसी की ऑंखें भर आएँगी।
इसमें अमृतसर की एक लड़की को जब ये पता चलता है कि कोरोना के कारण लाखों लोगों के नौकरी-धंधे ठप्प हो गए हैं तो बिना कुछ सोचे-समझे फेसबुक पर एक पोस्ट डाल देती है कि पूजा डेरी में कुछ वर्कर्स की ज़रुरत है, जबकि उसके अपने काम करते तीन बंदे भी जैसे-तैसे गुज़ारा कर रहे होते हैं। उसका भाई मना भी करता है, टोकता भी रहता है ,ख़र्चों की दिक्कत भी आती है, कार बेचनी पड़ जाती हैं तो भी बारम्बार वो बस एक ही बात कहती है 'पापा कहते थे कि कुछ ऐसा काम करो जिससे दुकान छोटी लगने लग जाए !'
जब वह अपने छोटे भाई को "इनकी भी तो दीवाली है" कहते हुए किसी को भी नौकरी से निकालने से मना कर देती है, एक कर्मचारी भाई-बहन की पूरी बातों को सुन लेता है। फिर वो कर्मचारियों के साथ मिलकर मदद करने के लिए एक तरीका अपनाते हैं। वे फेसबुक पर एक वीडियो साझा करते हैं, जो लोगों को पूजा मिल्क सेंटर की यात्रा करने का आग्रह करते हैं। फिर जो हुआ, उसको देखकर आंसू ही ना आएँगे ; आखिर दुकान छोटी जो पड़ गयी ग्राहकों की भरमार से !
ये विज्ञापन हमें, एहसास कराता है कि हम इंडियंस सीमित संसाधनों में भी बड़े पैमाने पर उत्पादन कर सकते हैं, हम बेचना भी जानते हैं तो ख़रीददारी के लिए पर्चेजिंग पॉवर भी है। हम रोज़गार भी दे सकते हैं, मनमाफिक सिखा कर मातहतों से आउटपुट भी ले सकते हैं , उन्हें मोटिवेट भी कर सकते हैं। जरुरत सिर्फ इस बात की है कि हम अपनी बहुजन हिताय बहुजन सुखाय की संस्कृति को ना छोड़ें !
वास्तव में इस डिप्रेसिंग साल में, फेसबुक का ये सुकून भरा विज्ञापन हमारे भारत की गौरवशाली परंपरा तेरा मंगल , मेरा मंगल , सबका मंगल होय रे के अनुरूप ही है। इस शार्ट फिल्म को डायरेक्ट किया है बधाई हो फेम अमित शर्मा ने और पूजा मिल्क सेंटर वाली पूजा दीदी का लीड रोल निभाया है एक्ट्रेस अंशुल चौहान ने ! यदि नेटफ्लिक्स की ताजमहल १९८९ देखी होगी तो रश्मि का किरदार याद कर लीजिये इसी अंशुल ने निभाया है। या फिर शुभ मंगल सावधान की गिन्नी याद आ रही है ना ! ताजा ताजा बालाजी ऑल्ट की अल्टर वेब सीरीज बिच्छू का खेल की रश्मि चौबे भी यही अंशुल ही है !और इस एड फिल्म को बनाया है फेसबुक के लिए फेमस तपरूट देंत्सू ने जिनका पेप्सी वाला चेंज द गेम विज्ञापन था !
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