फेस्टिव सीजन अभी जारी ही हैं और लोगों ने सावधानियों को ताक पर रख दिया है ! राजनैतिक मजबूरियां ही हैं कि अनलॉक 5.0 तक आते आते तक़रीबन सारे प्रतिबंध हट चुके हैं ! गाइडलाइन्स हैं लेकिन पल्ला झाड़ने के लिए है या खरी खरी कहें तो सरकारों का एग्जिट रूट है जिम्मेदारियों से भागने का ! कही चुनाव हैं तो भीड़ उमड़ रही हैं, फंक्शनों की इजाजत है तो शर्तें उतनी ही बेमानी हैं जितनी अमूमन टर्म्स एंड कंडीशंस स्माल फोंट्स में अहमियत रखती हैं ! और ये सब धड़ल्ले से हो रहा है जब महामारी बदस्तूर जारी है।
और अब तो लोग इतने बेपरवाह हो गए हैं कि खुद के सिम्प्टंस छिपा ले रहे हैं, ठीक भी हो जा रहे हैं लेकिन इसी दौरान किसी ऐसे को संक्रमित कर दिया जो जोरशोर से प्रसारित किये जाने वाले १.८२ फीसदी के ब्रैकेट में चला गया ! कहने का मतलब सामान्य फीवर की तरह ही इसे समझ लिया जा रहा है, ना टेस्ट कराना है और ना ही प्रीकॉशन्स रखने हैं !
फैक्ट्रियों में चले जाइये तो बिना मास्क के वर्कर्स दिखेंगे और उनके सुपीरियर से इस बावत बात करें तो कहेगा कि उन्हें अपने वर्करों को हर समय अपने मास्क पहने रखने के लिए कहना बुरा लगता है। कर्मचारियों में वायरस का कोई खौफ नहीं बचा है ; बिंदास हैं वे सारे और कहते हैं कि ख़राब समय निकल चुका है और अब तो टीका आ रहा है , बीमार होंगे भी तो ईलाज हो जाएगा ! ग्रामीण क्षेत्रों में इक्का दुक्का ही कोई मास्क पहने नजर आता है, यहां अधिकांश लोग ऐसे व्यवहार कर रहे हैं जैसे कि महामारी खत्म हो गई हो। कई लोग सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों की अनदेखी कर रहे हैं, और कोरोना नियमों को लेकर अधिकारियों के ढीले रवैये ने इस समस्या को बढ़ा दिया है।
सामान्यतः जहाँ देखों या सुनों मास्क,सोशल डिस्टेंसिंग और सैनिटाइज़र सिंबल भर रह गए हैं ; मास्क है कि लटक रहा है, सोशल डिस्टेंसिंग अब इसलिए नहीं है कि आपस के ही जाने समझे लोग हैं, सैनिटाइज़र हाथ की शोभा बढ़ा रहे हैं ! अपने अपने लॉजिक हैं , नियम कायदे हैं !
डाटा की बात करें तो अब तक कोरोना से ८८ लाख लोग संक्रमित हो चुके हैं , १ लाख तीस हजार लोगों की मौतें भी हो चुकी हैं , कभी रोजाना संक्रमित होने वालों का आंकड़ा तक़रीबन १ लाख को छू गया था जो फिलहाल ४३-४४ हजार पर है ! हालाँकि कहीं कहीं मसलन दिल्ली में ही एक बार फिर से महामारी उफान पर हैं !
माहौल अब यही है कि तक़रीबन आठ महीनों बाद कोरोना वायरस का डर ख़त्म हो चला है और इसका कारण स्पष्ट है ! जब सख्त लॉकडाउन था और जनता की आवाजाही पर रोक थी, तब लोग डरे हुए थे। उस समय भय व्यवहार को नियंत्रित करता था।अब ऐसा नहीं है। कोलकाता की बात करें तो तब ५० फ्लैटों वाले बहुमंजिला अपार्टमेंट में एक भी मामला नहीं था और अब तो तक़रीबन ७ फ्लैटों में कोरोना पेशेंट हैं और स्वतः ही होम क्वारंटाइन हैं !
सवाल बड़ा है निजी आमदनी का ! लोगों का भोजन, दवा और अन्य मूलभूत सुविधाओं के लिए रोज़गार के प्रयासों को बीमार पड़ने की तुलना में तरजीह देना लाजिमी भी हैं ! लेकिन ध्यान इस बात का रखना भी जरुरी हैं कहीं मौका पाकर महामारी हमपर हावी ना हो जाय ! वक्त समझदारी दिखाने का है , सहयोग , संयम से काम लेते हुए ज़िम्मेदारी निभाने की ज़िम्मेदारी लेनी होगी ! सब अपना अपना तीनसूत्री (मास्क , दो गज की दूरी और हाथ धोते रहना) शासन बनायें रखें तभी ओवर ऑल अनुशासन रहेगा !
अब ये तो तय है कि भारत में कोविड-१९ अपने चरम पर पहुंच चुका है और अगले साल फरवरी तक चलेगा ! आंकड़ें भी यही तो कह रहे हैं ! एक स्टडी बता भी रही हैं कि भारत की लगभग ३० प्रतिशत आबादी ने वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी विकसित कर ली है। लेकिन फिर वही बात लापरवाही भारी पड़ सकती है। सभी स्वास्थ्य प्रोटोकॉल का पालन किया जाना जरुरी है और सरकारों को भी आगे सोशल डिस्टेंसिग के नियमों के मामले में ढील नहीं देनी चाहिए !
फिर उम्मीद कोरोना वायरस के वैक्सीन की उम्मीद भले ही पूरी हो जाय आने वाले एक दो महीने में लेकिन साइड इफेक्ट्स और एक्सेप्शंस के राइडर्स भी तो होंगे ही ना !
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