डिजनी हॉटस्टार चलचित्र लक्ष्मी रिव्यू : ये तो फुस्सी बम निकला ! 

शिवकाशी के पटाखे मशहूर रहे हैं और एक टाइम था जब पटाखों के नाम पर लक्ष्मी बम ख़रीदे तो क्वालिटी की गारंटी होती थी ! आम कहा जाता था क्रैकर्स लेना है तो लक्ष्मी बम लो ! चूँकि धार्मिक भावनाओं का ज्वार है मोदी राज में तो शिवकाशी वालों ने लक्ष्मी को चिड़िया बना दिया और इधर अक्षय कुमार ने अपनी फिल्म के ऑरिजिनल नाम से बम भर हटा लिया ! परंतु जहाँ चिड़िया की बम के हिसाब से क्वालिटी दुरुस्त है वहीं अक्षय कुमार की लक्ष्मी फुस्स हो गयी ! 

अब आएं मूवी पर ! तो प्रोपेगंडा के पुट ने फिल्म का बंटाधार कर दिया है ! चीजें अब भी नागवार गुजरने वाली है और सिर्फ नाम बदलने से खत्म नहीं हुई हैं ! एड थे तो तनिष्क ने पहले एकत्वम की थीम वाला हटाया और ताजा ताजा क्रैकर्स पर ज्ञान देने वाला क्रैकर फ्री दीवाली वाला विज्ञापन भी हटा लिया ! लेकिन अक्षय की लक्ष्मी में तो तनिष्क सरीखे प्रसंग कई हैं किस किस को इरेज कर देते ?

एतराज करेंगे कट्टर उन्मादी चूँकि आसिफ (अक्षय कुमार ) साबित जो कर दे रहा हैं कि रश्मि (कियारा आडवाणी ) ने उससे शादी करके अच्छा फैसला लिया ! फिर रश्मि के पिता (राजेश शर्मा ) का कहना कि शायद मैं भी रश्मि के लिए आसिफ से अच्छा लड़का नहीं खोज पाता डिस्प्यूटेड एकत्वम को ही प्लसप्लस कर दे रहा है ! तो बहस कहाँ ख़त्म होनी हैं ?  फिर भक्ति के प्रदर्शन के टूल जगराता के नाम पर रैपनुमा अपना टाइम आएगा , उसका टाइम आएगा करते हुए कॉमेडी करने के पीछे क्या मंशा थी ? जगराता में लोग भक्ति में तल्लीन होते हैं,यहाँ तो लाफ्टर क्रिएट कर दिया गया ! 

सैफ्रॉन काल में सैफ्रॉन को नीचा दिखाने की जुर्रत की है तो बेवजह कंट्रोवर्सी पैदा होनी ही हैं ! भगवा बाबा लोग ढोंगी होते हैं, भूत प्रेत का हौव्वा खड़ा करते हैं, बेसिक केमिकल रिएक्शंस को बतौर मैजिक दिखाकर उल्लू सीधा करते हैं , भोलीभाली जनता को बेवकूफ बनाते है ; यहाँ तक शायद गवारा हो जाता लेकिन बेनकाब आसिफ करे तो कैसे भाये ! 

दरअसल एजेंडा कुछ और भी था ! कल तक  आसिफ अवाम को जागरूक कर रहा था कि भूत प्रेत बकवास है , धोखा है ! लेकिन अब वह खुद प्रेतात्मा के चंगुल में हैं तो पीरबाबा (मौलवी) उसे ज़मज़म पानी का उपयोग करके भूत से छुटकारा पाने में मदद करता है ! फिर फ्लैशबैक में पता चलता है कि लक्ष्मण शर्मा ट्रांसजेंडर पैदा हुआ था और परिवार ने उसे स्वीकार नहीं किया, निकाल बाहर किया ! उसे सहारा दिया अब्दुल चाचा ने और नाम दिया लक्ष्मी ! तो कुल मिलाकर कौमी एकता हुई या नहीं कौम को महामंडित करना तो सबने समझ ही लिया ! 

 डायलॉग्स में भी चूक हो गई जब कट्टरपंथी सुनेंगे तो अपमान जनक पाएंगे ही - पत्थर को साड़ी पहना देते हैं तो टांग उठाके आ जाते हैं ! आसिफ मियां सेक्युलर हैं तो बाबाओं की पोल खोलते हैं लेकिन जब पीर बाबा के पास जाना होता हैं तो कोई सवाल किये बिना चले जाते हैं ! 

खैर ! ये तो बातें हो गयीं विवादों की जो होने हैं ! अब लौट चलें फिल्म की तरफ ! एक शब्द में कहना हो तो अंग्रेजी का शब्द याद आता है डिसअप्पॉइंटेड ! डायरेक्टर राघव लॉरेंस की अपनी ही बनायी मुनी २ : कंचना का रीमेक है ये फिल्म ! गलती जो हो गयी निर्देशन रोहित शेट्टी से कराना चाहिए था ! यकीन मानिये सिंघम और सिम्बा जैसी हिट हो ही जाती ! कहने को फिल्म अक्षय कुमार की है लेकिन वे हर पल हर फ्रेम में ओवर नजर आये हैं और फिर कियारा के सामने तो वे दूजो विवाह करने वाले विधुर ही नजर आते हैं ! यदि कहें कि अक्षय ने अभी तक की सबसे वाहियात एक्टिंग की है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।  कियारा सिर्फ शोपीस ही रही हैं सुंदर दिखने को ; आखिर बुर्ज खलीफा जो करना था ! उनसे ज्यादा फुटेज तो फिल्म में आयशा और अश्विनी को मिली है।सो होशियार अक्षय इस बार औंधे मुंह गिरे हैं ! समझ ही नहीं आया खिलाड़ी कुमार से भारत कुमार तक का सफर तय करने के बाद अब वे कियारा के अपोजिट सफेदी दिखा कर क्या बनना चाहते हैं ? 

कहीं कुछ भी सही समझ नहीं आया ! कैमरा बेतरतीब भाग रहा है, म्यूजिकल डुप्लीकेसी है , फोटोग्राफी ओवरएक्सपोज़्ड है और बैकग्राउंड म्यूजिक तो सरदर्द दे जाता है ! हर साथी कलाकार - राजेश शर्मा हों या मनु ऋषि चड्ढा या आयशा रजा मिश्रा या फिर अश्विनी कलसेकर - ओवरएक्टिंग क्यों कर रहे हैं ? हाँ , शरद केलकर ने खूब रंग जमाया लेकिन तब तक बहुत देरी हो चुकी थी। फिल्म के दोनों गाने बोरिंग ही नहीं , डिस्टर्बिंग भी हैं ! 

फ़िल्म लक्ष्मी एक हॉरर कॉमेडी तो है ही साथ साथ फ़िल्म में ट्रांसजेंडर कम्युनिटी को भी दिखाया गया है। फ़िल्म उन चुनौतियों के बारे में भी बात करती है जिनका सामना ट्रांसजेंडर समुदाय को करना पड़ता है। क्या यह फिल्म उस वर्ग को आकर्षित करेगी जो ट्रांसजेंडर्स की आवाज सुन रहा है और उनके उत्थान की दिशा में काम कर रहा है ? संदेह ही हैं क्योंकि सोशल  मैसेज तो भव्यता में कहीं गुम हो गया है और एक आदर्श मुद्दा एजेंडा का शिकार होता नजर आ रहा है ! 

डिज्नी हॉटस्टार के फैन की हैसियत से डर लग रहा है कहीं लक्ष्मी का इम्पैक्ट आनेवाली  ‘भुज- द प्राइड ऑफ इंडिया’ और ‘द बिग बुल’ को ख़ामियाज़ा उठाने के लिए मजबूर ना कर दें ! 

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Prakash Jain

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