ज़ी ५ फिल्म खाली पीली रिव्यू : खाली पीली ही खाली पीली देख सकते हैं ! 

मुम्बईया मनोरंजक शब्द है खाली पीली और यदि ओरिजिन में जाएँ तो शायद वहां चलने वाली उस समय की टैक्सियों में हैं जिन्हें काली पीली कहा जाता था ! खाली पीली के मायने ही हैं बिना किसी बात के या बेवजह ! अब भले ही काली पीली बंद हो गयी हैं लेकिन खाली पीली बिना किसी बात के बेवजह बदस्तूर जारी है ! 

खाली पीली सोचते सोचते आखिर हमने भी खाली पीली ही ओटीटी प्लेटफार्म ज़ी ५ पर ये थिएटर फिल्म  देख ही ली ! वस्तुतः बनाने वालों ने खाली पीली ही इसे बना डाला है और इसीलिए मकबूल खान की फिल्म मकबूल नहीं है ! नाम यदि काली पीली होता तो ज्यादा सही होता ; कम से कम टैक्सी नंबर नौ दो ग्यारह की यादें तो ताजा हो जाती ! 

फिल्म अस्सी के दशक में हैं जब कुछेक २-३ फिल्मों की कहानियों को ही हेरफेर करके एक मसाला मूवी तैयार की जाती थी।  कुछ कॉमिडी , कुछ मेलोड्रामा, कुछ फाइट , कुछ चोर पुलिस टाइप का मिश्रण कर जबर्दस्त मसाला खिचड़ी परोस दी जाती थी। निर्देशक मकबूल खान ने इसी लाइन को अडॉप्ट कर उसमें ओटीटी का नयानवेला एक पल वर्तमान और दूसरे पल एकदिवसीय भूतकाल यानि घंटों और मिनटों पीछे वाला फ्लैशबैक का तड़का लगाया है ;  तभी थोड़ी एंटरटेनिंग बन भी पड़ी हैं ! 

कुल मिलाकर कहीं की ईंट , कहीं का रोड़ा, भानुमती ने कुनबा जोड़ा तो ना तो धधक और बियॉन्ड द क्लाउड्स फेम ईशान खट्टर और ना ही आकर्षक अनन्या पांडे प्रभावित करती हैं। हालांकि फिल्म में इंस्पेक्टर तावडे और भीम के किरदारों में जाकिर हुसैन और सतीश कौशिक ने कॉमिडी का तड़का भरपूर लगाया है। यूसुफ चिकना (जयदीप अहलावत) फिल्म का विलन है और उनकी परफॉर्मेंस हमेशा की तरह सॉलिड है। अपनी छोटी सी भूमिका में स्वानंद किरकिरे छाप छोड़कर जाते हैं। फिल्म में ३ गाने हैं और उनका म्जूजिक विशाल-शेखर ने अच्छा दिया है लेकिन शायद फिल्म में उनकी जरूरत ही नहीं थी।

दरअसल खाली पीली आपके सब्र का इम्तिहान लेती है जिसकी इस कोरोना काल में बहुत जरुरत है। साथ ही कभी लगता है संजय दत्त की सड़क देख रहे हैं तो कभी लगता है आमिर खान की दिल है के मानता नहीं या रंगीला और दूसरे ही पल शाहरुख की रब ने बना दी जोड़ी भी याद आ जाती हैं।  

कुल मिलाकर जब जब जो जो होना है तब तब वो वो होता है की तर्ज पर फिल्म बढ़ती जाती है। चूँकि फिल्म को थिएटर्स में भी रिलीज़ होना था , सेंसर बोर्ड की चली और बाक़ायदा कई दृश्यों को अश्लील और अभद्र बताते हुए कटवा भी दिया। कहने का मतलब सेंसर बोर्ड ने मेकरों को ओटीटी से बाहर निकलने की हद बता दी ! इसके अलावा जब एक गाने के बोलों पर विवाद हुआ तो दुनिया शरमा जायेगी बोल कर दिए गए ! 

एक और खूबी है इस फिल्म की। आप आराम से जहाँ से मन हो देखना शुरू कर दीजिये ; जहाँ से देखेंगे , कहानी वहीं से शुरू होती समझ आएगी ! फिर वही बात कहनी पड़ रही हैं कि जो कुछ दिखाया जा रहा है खाली पीली दिखाया जा रहा है और हम खाली पीली देख रहे हैं ! 

और अंत में हमारी खाली पीली कोशिश थी बार बार खाली पीली दोहराने की और जब गिनने बैठे तो पता चला सिर्फ दस बार ही खाली पीली कर पाए !

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Prakash Jain

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