फ़ास्ट तत्काल टिकट बुकिंग एप्प तो इनोवेशन के नाम पर डिनायल ऑफ़ सर्विस ही हैं ! 

बात कर रहे हैं अन्ना यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट और आईआईटी एलुमनाई भी एक इंजीनियर युवराजा की जिसने साल २०१६ में 'सुपर तत्काल' और 'सुपर तत्काल प्रो' रेलवे टिकट बुकिंग एंड्राइड एप बनाये थे जो IRCTC से कंफ़र्म टिकट बुक करने में मदद करता है। हालांकि, पिछले दिनों ही रेलवे सिस्टम, वेबसाइट को बाईपास करने और गैर कानूनी तरीके से पैसा कमाने के चलते उसे रेलवेज एक्ट की धारा १४३ के अंतर्गत बुक कर दिया गया।  धारा १४३ में ‘रेलवे टिकटों की अनधिकृत खरीद-बिक्री’ के लिए जुर्माने की व्यवस्था है। 

आजकल माहौल ऐसा है कि हर घटना को राष्ट्रीय शर्मिंदगी बता दिया जाता है। बड़े बुजुर्ग हमेशा कहते थे तोलमोल कर बोलो लेकिन आजकल नामचीन बुद्धिजीवी भी  मौका ताड़ते हैं फिर भले ही फ़ाउल गोल ही क्यों ना कर बैठें ! कोई भी मामला होगा तो केस फॉर भी आर्ग्यूमेंट्स होते हैं और केस अगेंस्ट भी ! बात दोनों सुनकर ही किसी निष्कर्ष पर पहुँचने की जहमत क्यों उठायें ? जिस बात से हमारा स्वार्थ सिद्ध हुआ, वही प्रोपेगेट कर दो और बात गलत हुई तो भी तत्काल सुविधा है ही मिलिभगत बता दो ! 

यही इस मामले में हुआ है। अब जरा फैक्ट्स पर आएं !प्रथम तो जान लें ऍप २०१६ में ही आ गया था और पॉपुलरटी एक तरह से लिमिटेड ही थी तभी तो चार साल में तक़रीबन एक लाख यूजर्स ही बन पाए । हालांकि, अब इस एप को गूगल प्ले स्टोर से हटा दिया गया है । इस तरह एक बात तो तय हुई कि सिर्फ एक लाख तक ही यूज़र्स सीमित थे। इस एप पर लोग कॉइन खरीदते थे, यहां १० कॉइन ख़रीदने के लिए २० रुपये देने होते थे। यूज़र के खाते से हर बुकिंग के बाद ५ कॉइन कट जाते थे जिसका सीधा पेमेंट युवराजा के खाते में होता था। पुलिस ने रेलवे सिस्टम को बाईपास और गैर कानूनी ढंग से पैसा कमाने के जुर्म में उसे अब बुक किया और बताया गया कि चेन्नई में आरपीएफ  के साइबर सेल ने सर्वर सोर्स कोड, एप्लीकेशन सोर्स कोड, एंड-यूजर्स लिस्ट और उसके बैंक स्टेटमेंट का यूज़ कर उसे ट्रैक किया था। पुलिस की मानें तो युवराजा ने माना है कि २०१६ से २०२० तक चार सालों में उसने तकरीबन २० लाख रूपये  बनाये हैं। 

हालाँकि ये कोई इकलौता शरारती ऍप नहीं था ! इसी ऑटोफिल थ्योरी आधारित ऍप की कारगुजारी २०१८ में भी मीडिया में आयी थीं। इशारा शायद इसी इंजीनियर की ओर ही था। तब पता चला था अधिकांश मिडलमैन ही इन ऍप का दुरूपयोग कर रहे हैं नतीजन लाभ आम यात्रियों को मिलता ही नहीं ! अब ऑटोफिल समझें तो सारी डिटेल्स पहले से ही तैयार रहती हैं और ज्योहीं तत्काल का समय खुलता है वैसे ही यात्रियों की डिटेल आटोफिल कर टिकट बुक कर दिया जाता है। दलाल यात्रियों से मोटी रकम लेकर कन्फर्म बर्थ दे रहे हैं। दलालों के इस कालाबाजारी से जरूरतमंद यात्री बर्थ से वंचित हो जा रहे हैं। शशि थरूर के राष्ट्रीय शर्मिंदगी वाले ट्वीट के कमेंट सेक्शन में यही तो किसी ने कहा है -  There's something called Denial of Service (DoS) attack. An automatic script repeatedly filling up tatkal ticket forms will make the service unavailable for common users and hence might be interpreted as a cyber crime.

अब आएं हम इनोवेशन पर जाहिर चिंताओं पर ! अतिशयोक्ति ही है ना जब प्रिंट इसमें पॉलिसी शेपर्स पर तंज कसता है इनोवेशन के बहाने अर्टिफिशियल इंटेलिजेंस , मशीन लर्निंग और ब्लॉकचैन जैसी टेक्नोलॉजी का भी मजाक उड़ाता है। इनोवेशन के नाम पर उच्छृंखलता और अनैतिकता को प्रश्रय देने वाले टूल्स या ऍप्स की एडवोकेसी की जाएगी तो अराजक तत्व ही इसका फायदा उठाएंगे जैसा फाइनेंसियल सेक्टर में अक्सर सुनने को मिलता है बावजूद आरबीआई जैसे कंट्रोलर के होने के ! इस ऑटोफिल एप्लीकेशन को भी बिचौलियों ने ही एक्सप्लॉइट किया है , आम यात्री को कितना फैसिलिटेट किया होगा , संदेह ही हैं !

वैसे देखा जाय तो ऍप डेवलपर ने एक फैसिलिटेटिंग एप्लीकेशन भर बनाया था,यूजर्स इन-एप भुगतान के बाद गूगल प्ले स्टोर से एप को डाउनलोड कर तत्काल टिकट संबंधी औपचारिकताओं को शीघ्रता से पूरा करने के लिए उसका उपयोग कर रहे थे। यानि युवाराजा सिर्फ उपभोक्ताओं के अनुभव को आसान बनाने वाले सॉफ्टवेयर की बिक्री कर रहा था, वह रेलवे टिकटों की खरीद या बिक्री के धंधे में नहीं था।इस लिहाज से रेलवेज एक्ट के सेक्शन १४३ की जद में नहीं भी आ सकता है। लेकिन नैतिकता की कसौटी पर वह गलत कर ही गया चूँकि कहीं ना कहीं उसने तत्काल टिकट चाहने वाले यात्रियों की संभावनाओं को प्रभावित किया और मिडलमैन ने उसके एप्लीकेशन के बलबूते टिकटें ब्लैक कर दीं। कुल मिलाकर आईआरसीटीसी की वेबसाइट की शुचिता का उल्लंघन करवा दिया ! 

इसी प्रकार इनोवेशन की शुचिता का पॉइंट भी तो डेवलपर की ज़िम्मेदारी होनी चाहिए और फिर जब आप एक ऐसा एप्लीकेशन बना रहे हैं जो एक स्थापित और स्वीकृत पब्लिक प्लेटफार्म के बनाये नियमकायदों को पेनिट्रेट करता है तो रेलवे की आपत्ति गलत भी नहीं हैं।  

लेकिन रेलवे और ऐसी ही अन्य सभी सरकारी गैर सरकारी सेवाओं से संबंधित डिजिटल इनोवेशन के रेगुलेशन और अप्रूवल के लिए एक स्वतंत्र कंट्रोलर का प्रावधान इनफार्मेशन एंड टेक्नोलॉजी मिनिस्ट्री को करना ही चाहिए जो  ज़रूरी सुरक्षा पड़ताल और ऑडिट के बाद ऍप और ऍप्लिकेशन्स को सत्यापित करने का काम करे, डेवेलपर्स बाक़ायदा सर्टिफिकेशन के बाद ही अपने प्रोडक्ट लांच करें। ऐसा होगा तभी स्टार्टअप्स को संभावित एकतरफा कार्रवाइयों से सुरक्षा मिल पाएगी वरना तो युवराजा जैसे मामले होंगे ही , आईआईटीयन का टैग भी कोई काम ना आएगा ! एक अच्छा ख़ासा इनोवेटिव वर्क भी यूँ दम तोड़ देगा ; जाने अनजाने ही डिनायल ऑफ़ सर्विसेज की केटेगरी में आ जाएगा। कंट्रोवर्सी भी होंगी तो समाधान भी निकलेंगे बशर्ते स्थापित और जानेमाने शशि थरूर सरीखे विद्वान् राजनीतिवश किसी व्यक्तिगत ओपिनियन पर राष्ट्रीय शर्मिंदगी जैसी वाहियात बातें ना करें ! ऐसे ऑटो फिल टाइप और भी ऍप हैं, डाउनलोड भी हो रहे हैं ; एक किसी बुरहानपुर (मध्यप्रदेश ) के डेवलपर का भी है - Quick Tatkal - IRCTC Tatkal Train Ticket Booking ! इसके भी १ लाख प्लस डाउनलोड हो चुके हैं। चूँकि ऑटो फिल टाइप और भी एप्लीकेशन हैं , युवराजा की स्टोरी में कहीं और अनैतिक ट्विस्ट तो नहीं हैं !

          

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Prakash Jain

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