राजनीति में परिवारवाद या परिवार बल - एक हस्तक्षेप !

बिहार में तो बहार है चूँकि बिहारियों ने कोरोना को बाय बाय कर दिया है ! अक्टूबर नवंबर महीने यूँ ही त्यौहारी कहलाते हैं और फिर जब पाँचसाला त्यौहार भी इन्हीं महीनों में डाल दिया गया है तो भई बिहार में इहे बा ! 

राजनीति में कभी सिर्फ बाहुबल और धनबल की बात होती थी और अब जब सभी पार्टियों ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है तो इस बार परिवारबल हावी है ! परिवारवाद और परिवारबल के मध्य महीन सी लाइन भर है ! वाद में तत्व होता है, व्यवस्थित मत या सिद्धांत होता है जबकि बल दवाब होता है, दूसरों से मनवाना होता है !  

डॉक्टर का बेटा डॉक्टर, म्यूजिशियन की संतान या अन्य कोई रिश्तेदार भी म्यूजिशियन , रेसलर का बेटा - बेटी और फिर दो बहनें  या दोनों भाई भी रेसलर आदि जब होते हैं तो परिवारवाद कहलाता है या खानदानी कहलाता है ! बात एक परिवेश की होती है जिसमें रहकर इंसान प्रेरित होते हैं , सीखते हैं, अनुसरण करते हैं ।वहां क्वॉलिटी से कोम्प्रोमाईज़ नहीं होता हालाँकि उन्नीस बीस हो सकता है ! भारत की राजनीति में परिवारवाद ने कमोबेश सकारात्मक भूमिका निभायी है।  अनगिनत उदाहरण है जैसे गाँधी परिवार , सिंधिया परिवार , पायलट परिवार , देवड़ा परिवार, सिन्हा परिवार और भी कई हैं ! अगली पीढ़ी तभी निभा पाती है या निभा रही है चूँकि गुण हैं और ठेठ शब्दों में कहें तो दम है उनमें !    

लेकिन जब इस वाद पर बल हावी हो जाता है, समझ लीजिये पतन की शुरुआत है। मतलब वंशज या रिश्ते नाते में धेलेभर की अक्ल है नहीं लेकिन उसे नेता बनाने का पारिवारिक दवाब हैं, ऐंठन है, हठ है तो चलो थोप दो जनता पर ! वो कहते हैं ना अपना काम बनता भांड में जाए जनता ! इन परिवारों का फलसफा ही यही हैं जनता के लिए के नाम पर जनता के द्वारा जनता के सहयोग से जनता के पैसे से अपने ऐशगाह को बनाये रखना ! और यही बिहार में परिलक्षित है, चरम सीमा पर हैं ! 

समर्पित, वो अंग्रेजी में कहते हैं डेडिकेटेड , नेताओं और कार्यकर्ताओं पर रिश्तेदारी और नातेदारी भारी है ! एक सुखद आश्चर्य जरूर हुआ कि कम से कम बिहार में  भाजपा इस रेस में अन्य सभी पार्टियों से कहीं पीछे हैं ! 

हर पार्टी का कैडर हतप्रभ है टिकटों के वितरण से ! कहीं बाहुबल-धनबल ने बाजी मार ली है तो कहीं परिवारबल ने ! आलम ये है कि टिकटों के वितरण को लेकर आरोप प्रत्यारोप की वजह से अपनी ही पार्टी के पूर्व नेता की ह्त्या के मामले में तेजस्वी और तेजप्रताप पर पूर्णिया में एफ़आईआर दर्ज हो गयी है।

थोड़ा टिकटों के डिस्ट्रीब्यूशन पैटर्न का विश्लेषण करें तो तीन बातें निकल कर आती हैं - प्रथम वेटरेन अपनी अगली पीढ़ी को स्थापित कर रहे हैं , द्वितीय बाहुबल की छवि को छिपाने का प्रयास कर रहे हैं और तृतीय कास्ट एक्वेसन हावी हैं ! इस बार पुत्र-पुत्री, पत्नी, भाई तो छोड़ दीजिये, नेताओं ने दामाद व समधी को भी टिकट दिलाने की कोशिशें की है और सफल भी हुए हैं। और तो और बिहार का दुर्भाग्य ही है कि जो किसी न किसी कारणवश चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित कर दिए गए थे, उन्होंने अपने रिश्तेदारों को मैदान में उतार दिया !

राजद की बात करें ! लालू-राबड़ी के दोनों पुत्र फिर से ताल ठोक रहे हैं ! तेजप्रताप ने सीट भर बदल ली है ! बिहार तो पढाई लिखाई के लिए मशहूर हैं, हर फील्ड में बिहारियों का जलवा है ! यदि राजद जीतती है तो आठवीं पास तेजस्वी मुख्यमंत्री होंगे और बाहरवीं पास परित्यक्ता तेजप्रताप यादव होम मिनिस्टर या वित्त मंत्री या फिर एजुकेशन मिनिस्टर बन जाएंगे ! सात सीटों पर वेटरेन के बेटे बेटी चुनाव लड़ रहे हैं और पार्टी ने दुष्कर्मी(आरोपी) और फरार अरुण यादव की पत्नी किरण देवी (भोजपुर ) और रेपिस्ट(राजबल्लभ यादव ) की पत्नी विभा यादव (नवादा) को टिकट देकर फेमिनिज्म की मिसाल कायम कर दी है ! ठीक भी है रेप या दुष्कर्म पर तो दो मिनट का मौन रखवा ही दिया था ! आखिर हैं तो यदुवंशी ही ना ! 

जेडीयू और कांग्रेस भी कमोबेश इसी परंपरा को निभाती नजर आ रही हैं। जेडीयू ने तो बेटे बेटियों के अलावा पोतों, पत्नी , बहू , दामाद को भी खुश कर दिया है। और कांग्रेस को एक भतीजा भी मिल गया है ! लोजप तो परिवार की पार्टी ही कहलाती है। सब कुछ ठीक रहा तो पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व. रामविलास पासवान के दामाद मृणाल भी विधायक बन जाएंगे। सबसे जबरदस्त जिगरा हम के मांझी ने दिखाया है। स्वयं तो हैं ही मैदान में ,दामाद (देवेंद्र मांझी) भी हैं , समधन (ज्योति देवी) भी हैं। रिश्तेदारी इंटरकास्ट की तर्ज पर इंटरपार्टी भी है, जदयू के टिकट पर ओबरा से सुनील कुमार तो राजद के टिकट पर गोह (औरंगाबाद) से भीम कुमार सिंह मैदान में हैं। रिश्ता समझिये तो जहाँ भीम एक्स विधायक स्व. रामनारायण सिंह के पुत्र हैं वहीँ सुनील उनके भतीजे हैं यानी दो चचेरे भाई दो अलग अलग पार्टियों के उम्मीदवार हैं। नई नवेली प्लुरल पार्टी की फाउंडर लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स फेम पुष्पम प्रिया चौधरी जदयू नेता व विधान पार्षद विनोद चौधरी की पुत्री हैं।हमेशा ब्लैक ऑउटफिट में रहने वाली पुष्पम प्रिया स्वयं को बिहार का भावी मुख्यमंत्री बताती हैं और उसने सभी सीटों पर उम्मीदवार खड़े किये हैं। स्वयं उसने पटना की बांकीपुर विधानसभा सीट से नामांकन किया है।  

ऐसा लग रहा है भाजपा ने परिवारवाद पर अंकुश लगाया है ! केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे को निराशा ही हाथ लगी जब उनके बेटे को टिकट ना देकर बीजेपी ने भागलपुर के जिला अध्यक्ष सुनील पांडेय को अपना प्रत्याशी बना दिया । लेकिन जीरो टोलेरेंस वाली बात नहीं है। जैसे पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व. दिग्विजय सिंह की पुत्री श्रेयसी सिंह को  भाजपा ने जमुई से टिकट दिया है। और फिर कई भाजपाई उम्मीदवार ऐसे भी हैं हैं जो किसी न किसी राजनेता के रिश्तेदार हैं ! और इस बार वाल्मीकिनगर संसदीय सीट के लिए हो रहे उपचुनाव में भी महागठबंधन ने पूर्व मुख्यमंत्री केदार पांडेय के पुत्र शाश्वत केदार को अपना उम्मीदवार बनाया है। एक बात और पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा के बेटे नितीश मिश्रा पर भी बीजेपी ने एक बार फिर भरोसा जताया है ! लेकिन एक बात तो तय है बीजेपी पर परिवार बल का जोर नहीं चला है ! 

वैसे राजनैतिक विरासत की कवायद से कोई पार्टी अछूती नहीं है। गजब के समीकरण हैं। पूर्व मुख्यमंत्री दारोगा प्रसाद राय के बेटे और तेजप्रताप के ससुर चंद्रिका राय को इस बार जदयू ने उम्मीदवार बना दिया है, कल तक लालू यादव के खासमखास थे और अब बेटी की वजह से तलवारें खिंच गयी हैं। सीधी सी बात है विरासत का बहाना है चूँकि कुछ और करने के लायक बचे ही नहीं हैं सो सिद्धांत ताक पर रखकर जहाँ जिस पार्टी ने टिकट दे दिया , खड़े हो गए हैं ! हर रिश्ता चुनाव मैदान में हैं।  बाहुबलियों की पत्नियों की तो मानों चांदी है ; लगता है कहावत सैया भये कोतवाल तो डर काहे का रिप्लेस हो गयी है सजनी भये कोतवाल तो डर काहे का से ! तक़रीबन दस बाहुबली पत्नियां ताल ठोंक रही हैं ! बीना सिंह ( पत्नी पूर्व सांसद रामा सिंह ), बीमा भारती (पत्नी जदयू विधायक अवधेश मंडल ) , जदयू प्रत्याशी  सीता देवी (पत्नी नीतीश जी के ख़ास मनोरंजन सिंह धूमल की ), राजद प्रत्याशी लवली आनंद ( पत्नी सजायाफ्ता आनंद मोहन ), भाजपा प्रत्याशी अरुणा देवी (पत्नी अखिलेश सिंह ) आदि और भी हैं ! 

 बानगी ऐसी भी है कि मां भी चुनाव लड़ रही है और बेटा भी लड़ रहा है और दोनों को टिकट राजद ने दिए है - बाहुबली नेता व पूर्व सांसद आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद(शिवहर)  व उनके पुत्र चेतन आनंद (सहरसा)! समधियाना भी खूब निभ रहा है लेकिन आमने सामने और वह भी सीवान में - भाजपा से ओमप्रकाश यादव और राजद से अवध बिहारी चौधरी ! 

सुनने में भी और सिद्धांततः भी बहुत अच्छा लगता है कि हरेक व्यक्ति को अपनी जीविका चुनने का अधिकार है। सम्मान के साथ रसूख वाली जिंदगी तो हर इंसान जीना चाहता है। राजनेता के रिश्तेदार-नातेदार अगर योग्य हैं तो इसमें बुराई क्या है ?  हां, अगर वे अयोग्य हैं तो फिर इस बदलते दौर में सार्वजनिक जीवन में वे अपनी जगह बनाने में कामयाब नहीं हो सकेंगे !  वो दिन गए जब किसी की मनमर्जी चलती थी अन्यथा केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री नहीं होते ! लेकिन यही बातें कब कितनी और कैसे यथार्थ होती हैं, कैसे एक्सप्लॉइट की जाती हैं , किसी से छिपा नहीं हैं ! अधिकतर उम्मीदवारों के मामले सिद्धांतविहीन अवसरवादी राजनीति के अलावा कुछ नहीं हैं। अब भले ही एलजेड़ी सुप्रीमो शरद यादव की पुत्री सुभाषिनी राज बिहारीगंज से अपने कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ने के बारे में इमोशनल, आदर्शवादी और पैरेंटल कार्ड खेलें, वजह क्या वही है ? कल तक तो कहा जा रहा था शरद यादव की घर वापसी हो रही है जेडीयू में ! एक और जिक्र भी होना चाहिए खामोश शॉटगन का ! उनके पुत्र लव सिन्हा कांग्रेस की टिकट पर मैदान में हैं ! अच्छा ही हैं फिल्मों में तो चले नहीं, राजनीति ही कर लेंगे ! चिराग पासवान को फॉलो करना बनता ही है और फिर बॉडी लैंग्वेज कमोबेश वही है ! मुकाबला दिलचस्प रहेगा चूँकि पुष्पम प्रिया उनके खिलाफ है !   

सीरियस नोट पर कुछ नोटा की बात कर लें, लाइटर ना लीजियेगा ! नोटा भी एक कैंडिडेट होता है आजकल हर बैलट पेपर में ! जनता कुछ सोचें इस बेचारे प्रत्याशी के लिए जिसका ना कोई प्रचार होता है और जो ना ही किसी विरासत की उपज है ! लेकिन यकीन मानिये जब आपने ठान लिया मन की बात सुनकर इस ऑप्शन को एक्सरसाइज करने की , पॉलिटिकल पार्टियों की हेंकड़ी निकल जायेगी और वास्तविक जन प्रतिनिधियों की कद्र होगी !  



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Prakash Jain

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