कुछ दिनों पहले यूके ने एक ट्रेवल एडवाइजरी जारी की थी जिसे ४ अक्टूबर से लागू किया जाना है इसमें कोविशील्ड को मान्यता नहीं दी गई थी, जिसको लेकर विवाद हुआ था ! भारत सरकार ने सख्त एतराज जताया था और विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने कल ही ब्रिटेन को वार्न करते हुए कहा था कि अगर ब्रिटेन ने मांग नहीं मानी तो उसी तरह के कदम भारत भी उठा सकता है !
अब चूंकि आज यूके ने नई एडवाइजरी में कोविशील्ड के नाम को जोड़ दिया है तो क्यों ना कहें कि धमकी काम कर गई ? एडवाइजरी की अन्य बातें जस की तस वही रखी गई है जो पहले थीं। लेकिन अभी इससे ज्यादा बदलाव नहीं आने वाला है क्योंकि यूके सरकार की तरफ से कहा गया है कि अगर किसी भारतीय ने कोविशील्ड ली है और वह यूके जाता है तो उसे अभी भी क्वारंटाइन में रहना होगा। ऐसा भारत के CoWin प्रमाणन पर भरोसा नहीं करने की वजह से है। ७० करोड़ भारतीयों को मिला बोनाफाइड कंप्यूटर जनित कोविशील्ड सर्टिफिकेट ; आखिर उनकी प्रॉब्लम क्या है ? यदि वे हमारे डिजिटल प्रमाणपत्रों को नहीं पहचानते हैं, तो हमें दो कदम आगे बढ़कर उनके हस्तलिखित प्रमाणपत्रों आदि को नहीं पहचानना चाहिए। भगवान बचाए अंग्रेज मूढ़ों से और उनके लिए हिंदी में एक कहावत याद आती है "लातों के भूत बातों से नहीं मानते !"
समस्या एक और है और वह है नरेंद्र मोदी ! तभी तो यूके की लानत मलानत नहीं कर रहा है विपक्ष बल्कि उल्टे भारत सरकार पर तंज कसा जा रहा है विरोधियों द्वारा खासकर कांग्रेस द्वारा ! यूके के इस सर्वथा बेतुके और एकतरफा कदम से भी मानों उनके मोदी फोबिया को राहत मिल रही है ! और एक खास कैटेगरी वाला प्रिंट मीडिया भी नसीहत दे रहा है कि नई दिल्ली और लंदन को इसे जल्द से जल्द हल करना चाहिए क्योंकि इसके लिए केवल तकनीकों और प्रक्रियाओं में सामंजस्य बनाने की जरूरत है ! क्यों भाई ? इस मुद्दे में भी मोदी के लिए रुदाली तलाश ली ! दरअसल सरकार विरोधी लॉबी एक और मौका भांप रही है कि भारत सरकार कोविन सर्टिफिकेट में यूके के कंसर्न की वजह से कुछ बदलाव करें और वे सरकार को कोसें, मोदी टीम को लानत भेजें ! हालाँकि भारत सरकार ने जो तेवर अपनाये हैं उम्मीद तो यही है ४ अक्टूबर के पहले ही यूके की सरकार अटके हुए सर्टिफिकेशन के मसले को भी स्वतः ही सुलझाते हुए इंडिया के नाम को भी लिस्ट ऑफ़ कन्ट्रीज में इंक्लूड करेगी !
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