मेरे पास बिल्डिंग है प्रॉपर्टी है बैंक बैलेंस है गाड़ी है ...क्या है तेरे पास...... मेरे पास बिटकॉइन है ! 

तमाम देशों में क्रिप्टोकरेंसी को लेकर ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है जबकि लोग भारी दिलचस्पी दिखा रहे हैं। हिम्मत जुटाई दक्षिण अमेरिका के छोटे से देश एल साल्वाडोर ने और डिजिटल करेंसी बिटकॉइन को क़ानूनी मान्यता दे दी। वहां के प्रेजिडेंट ने ट्वीट के माध्यम से जानकारी दी है और गर्व से बताया है कि अभी देश ने ४०० बिटकॉइन ख़रीदे हैं जिसकी मार्किट प्राइस २० मिलियन डॉलर है।  

तक़रीबन ६५ लाख लोगों के इस देश में बिटकॉइन को बूस्ट करने के लिए पहली बार हर नागरिक को ३० डॉलर के समतुल्य  बिटकॉइन करेंसी दी जाएंगी और इसकी जानकारी सल्वाडोर की नेशनल आईडी में रजिस्टर की जायेगी। इसके साथ ही कानूनी मुद्रा बन जाने के बाद इस पर कोई कैपिटल गेन्स टैक्स नहीं लगाया जाएगा। अब देश में डॉलर में किए जाने वाले पेमेंट(कंट्री की अपनी कोई करेंसी भी नहीं है) अब बिटकॉइन में भी किए जा सकेंगे। उम्मीद करें साल्वाडोर का प्रयोग सफल रहे तो बाकी देश भी फॉलो करने लगेंगे ! 

फाइनेंशियल ट्रांजैक्शन में क्रिप्टोकरेंसी का उपयोग निःसंदेह एक रिवोल्यूशन ही है तभी तो इस वित्तीय व्यवस्था से दुनिया भर की सरकारें चाह कर भी अनजान नहीं रह सकती। क्रिप्टोकरंसी नेटवर्क कंप्यूटर्स की ब्लॉकचेन तकनीक पर काम करता है। रियल मनी या करंसी वाली वित्तीय व्यवस्था में दुनिया भर की सरकारें अपने-अपने देशों में उस वित्तीय व्यवस्था की साझेदार होती हैं और उन देशों का सेंट्रल बैंक उनकी गारंटी लेता है और उसे नियमित करता है ; फाइनेंशियल ट्रांज़ैक्शन्स के तमाम एकाउंट्स उन बैंकों में रहते है जहां हम आप अपना अकाउंट खोलते है। जबकि इसके विपरीत विभिन्न क्रिप्टोकरेंसी का बहीखाता पब्लिक होता है ; कोई सेंट्रल सिस्टम इसे नियंत्रित नहीं करता। क्रिप्टो की यही विशेषता जहाँ इसे रेवोल्यूशनरी प्रदर्शित करती है वहीं यही कैरेक्टरिस्टिक इसके खिलाफ सॉलिड आर्ग्युमेंट भी है।   

क्रिप्टोकरेंसी का क्रेज उफान पर है और हमारा देश भी अछूता नहीं रहा है।फिर  क्रिप्टोकरेंसी की पाबंदी के RBI के फैसले को देश की सुप्रीम कोर्ट ने खारिज भी कर दिया था। दरअसल क्रिप्टोकरेंसी के आपराधिक इस्तेमाल की आशंका की वजह से ही हर देश की सरकार इससे विमुख रही है। लोगों के मध्य भी कई मिथ और वहम रहे हैं। इसलिए इसे बैन करने की कवायद भी खूब होती रही हैं, परंतु तकनीक के वजूद को  खत्म नहीं किया जा सकता। उल्टे इस पर लगाम लगाने के क़दमों ने ही इसके एक्सपेंशन को कंट्रीब्यूट कर दिया, चूँकि जो वर्जित की जाती है उसकी चाह ज्यादा होती है ! 

क्रिप्टो करेंसी का इतिहास नवीनतम है। २००९ में बिटकॉइन पहली क्रिप्टो करेंसी थी लेकिन आज की तारीख में सैकड़ों क्रिप्टोकरंसीज हैं। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के अनुसार साल २०२५ तक वैश्विक GDP का १० फीसदी ब्लॉकचेन यानी वर्चुअल करंसी के तौर पर होगा और साल २०३० तक ब्लॉकचेन ३ ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के बराबर बिजनेस वैल्यू होगी इसकी ! 

हमारे देश में अब डिजिटल रूपये की बात हो रही है, कोई क्रिप्टोकोर्रेंसी बिल भी प्रस्तावित है ; लेकिन यदि प्रयास विकेंद्रित वित्तीय तकनीक को केंद्रित करने का है तो तय मानिये क्रिप्टोकरेंसी की दिन दूनी रात चौगुनी सरीखे आउटलुक में भारत के लिए बड़ा सेटबैक ही होगा।  फिर सच्चाई तो यही है कि जब हमारे रेग्युलेटर्स ही क्रिप्टो को समझ नहीं पाए हैं तो भारत की विशाल आबादी की समझ को क्या दोष दें ? 

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Prakash Jain

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