किसी को तो एक डोज भी मयस्सर नहीं, इजरायल,अमेरिका और यूरोपीय देश तीसरी डोज दे रहे हैं ! 

ये अमीर देश कुछ वैसा ही कर रहे हैं जैसा WHO के हेल्थ इमरजेंसी हेड माइकल रायन ने उनका मजाक उड़ाते हुए कहा, "हम उन लोगों को अतिरिक्त लाइफ जैकेट देने की योजना बना रहे हैं जिनके पास पहले से लाइफ जैकेट हैं, जबकि हम अन्य लोगों को डूबने के लिए छोड़ रहे हैं।" साथ ही WHO की चीफ साइंटिस्ट सौम्या स्वामीनाथन कहती हैं कि डेटा हरगिज यह इंगित नहीं करते कि बूस्टर की आवश्यकता है। 

इस्राएल में तो वैक्सीन की तीसरी खुराक पहले से ही दी जा रही है, अमेरिका ने इस मुत्तालिक निर्णय ले लिया है और यूरोपीय देशों में भी कुछ ऐसा ही करने का विचार किया जा रहा है।  

समझ नहीं आता वैज्ञानिकों के अलग अलग सुर क्यों हैं ? वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन के विशेषज्ञ, साइंटिस्ट कमतर हैं क्या ? अमेरिकी और इस्राएली वैज्ञानिकों का कहना है कि समय के साथ इंसानी शरीर में वैक्सीन की प्रभावशीलता कम होने लगती है और इसकी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए तीसरी खुराक या बूस्टर डोज की जरूरत होती है।  

डेल्टा वेरिएंट के बढ़ते मामले के बाद इस्राएली सरकार ने ५०  वर्ष से अधिक आयु के नागरिकों को टीके की तीसरी खुराक देना शुरू कर दिया है। उधर यूएस के सीडीएस ने कह भी दिया है कि अमेरिकी नागरिकों को तीसरी खुराक भी दी जायेगी।  

खैर ! हम नहीं जाते मेडिकल फ्रेटर्निटी को बिलोंग करने वाले लोगों की आपसी तकरारों से उपजे विरोधाभासों में ! वैसे अधिकतर उनके निजी स्वार्थ और व्यक्तिगत ईगो की वजह से हैं, वर्चस्व के लिए है। वरना तो पहली खुराक देने के बजाय पहले से सुरक्षित लोगों को तीसरा टीका देने के लिए लालायित दुनिया के ऐसे देशों को क्या कहा जाए ! उनके इस कृत्य से अमीर और गरीब के बीच की खाई और चौड़ी ही होगी।  

इसी संदर्भ में अमेरिकन कंपनी जॉनसन्स एंड जॉनसन्स की कारगुजारी देखिये; दक्षिण अफ्रीका में बने लाखों टीके को समृद्ध यूरोपीय संघ के देशों में बूस्टर के रूप में इस्तेमाल करने के लिए भेज दिया है ! अब बताईये अफ्रीकंस को तकलीफ क्यों ना हो ? यही बावेला तो खूब मचा था शुरुआत में सीरम इंस्टिट्यूट के कोविशील्ड को लेकर इंडिया में ! साउथ अफ्रीकन साइंटिस्ट डॉक्टर ग्लेंडा ग्रे (जिन्होंने वहां जॉनसन एंड जॉनसन के क्लिनिकल परीक्षण का नेतृत्व भी किया था) ने कहा भी कि वैक्सीन भेजने के मामले में  कंपनियों को अपने उत्पादन में शामिल गरीब देशों को अनिवार्य रूप से  प्राथमिकता देनी चाहिए। उनका कमेंट दिल को छू जाता है , "  “It’s like a country is making food for the world and sees its food being shipped off to high-resource settings while its citizens starve.”

WHO के डायरेक्टर जनरल ने भी  जॉनसन एंड जॉनसन को प्राथमिकता के आधार पर अफ्रीकी देशों को अपने टीके उपलब्ध कराने के लिए कहा है। उनका कहना है कि अमीर देशों के पास पहले से ही अन्य टीकों की आसान पहुंच है !

सीधी सी बात है वैश्विक महामारी है और दुनिया का कोई भी देश अपने नागरिकों को सुपर वैक्सीनेटेड(२+१) कर सौ फीसदी सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकता चूँकि एफिकेसी सौ फीसदी तो किसी भी वैक्सीन की नहीं है और ग्लोबलाइज़ेशन के इस दौर में कोई भी देश दुनिया के अन्य देशों से आइसोलेटेड होकर तो रह नहीं सकता ! कहने का तात्पर्य यही है कि वायरस कब कैसे कहाँ ट्रेवल कर पहुँच जाएगा ; कहना मुश्किल ही नहीं , असंभव है ! निदान सिर्फ और सिर्फ "वसुधैव कुटुंबकम" की भावना में ही निहित है जिसके तहत दुनिया के आखिरी व्यक्ति को टीका लग सके ! 

         

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Prakash Jain

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