क्या पेगासस प्रकरण भारत सरकार के लिए वाटरगेट कांड साबित होगा ?

वो सत्तर के दशक का दौर था जब कुछ कमरों के फोन ही तो सुने थे निक्सन ने और लोगों ने उन्हें सूली पर चढ़ा दिया था। अब तो बात है हर घर क्या हर शख्स को टेप कर लो या टेक अंदाज में कहें तो हरेक में बग(माइक्रोफ़ोन) डाल दो ! और ऐसा ही भी रहा है क्योंकि जब भी हम अपने अपने गैजेट(स्मार्टफोन, लैपटॉप, टैबलेट आदि) पर ऑनलाइन हैं, प्लेटफॉर्म कोई भी हो, हमारी प्राइवेसी खूब बिक रही है ; हमारी चॉइस , हमारी आदतें , हमारा स्वभाव सभी प्रोडक्ट जो हैं !  

और जब इसी निजता हनन में हैकिंग के द्वारा स्पाई वाला इनपुट संदेह के घेरे में आता है तब चिंता वाजिब है ! इसी चिंता को एड्रेस किया जाना जरूरी हो जाता है भले ही सारे संदेह या आरोप सनसनी के लिए ही हों, आधारहीन ही हों ! इसी संदर्भ में अमेरिकन सिंगर पिंक का गाना याद आता है - "how it all turned lies, sometimes I think that it's better to never ask why......"  यही तो कहावत भी है,"बिना आग के तो धुंआ नहीं उठता !"    

राजीव गाँधी और चंद्रशेखर

वैसे देखा जाए तो नेहरू काल से जासूसी होती चली आ रही है ; तब नेताजी सुभाष बोस का परिवार और मित्र मंडली बग्गड  थे। अब ले चलें साल १९९१ के मार्च महीने में जब चंद्रशेखर देश के प्रधानमंत्री थे !  ढलती सर्दियों के दिन थे। वही दिल्ली का १० जनपथ था राजीव गांधी का पता। उस दिन दो लोग राजीव के घर के बाहर चाय की चुस्कियां लेते दिखे !  कांग्रेस ने इल्जाम लगाया, वो दोनों हरियाणा सीआईडी के लोग हैं जिन्हें  हरियाणा की ओमप्रकाश चौटाला सरकार ने पीएम चंद्रशेखर के कहने पर राजीव गांधी की जासूसी के लिए लगाया है । इसी आरोप के आधार पर कांग्रेस ने चंद्रशेखर सरकार से समर्थन वापस ले लिया और नतीजन सरकार गिर गयी ; बेचारे चंद्रशेखर सिर्फ सात महीने ही पीएम बने रह पाए। 

तब भी कांग्रेस आरोप लगा रही थी और राजीव गांधी हमलावर थे ठीक वैसे ही जैसे आज कांग्रेस है और राहुल गांधी तो जबरदस्त अंदाज में हमलावर हैं ! लेकिन तब सरकार राजीव गांधी के रहमोकरम पर थी , आज राहुल गांधी सरकार के रहमो करम पर है ! उनका हमलावर होना मोदी सरकार को इसलिए भाता है कि उनकी आड़ में सरकार मजबूत और सारगर्भित विरोध को भी नजरअंदाज करा देती है ! 

 याद करते है तो कई प्रकरण घुमड़ते है हालांकि सभी आरोप लगाने तक ही सीमित रहे थे या कहें तो सीमित रखे गए थे चूँकि मकसद , जो कभी नेक नहीं रहे , सिद्ध हो गए थे ! कहने का मतलब हंगामा खूब बरपाया लेकिन नतीजा टांय टांय फिस्स ! जनवरी २००६ में, समाजवादी पार्टी के तत्कालीन महासचिव, तेजतर्रार राजनेता अमर सिंह ने आरोप लगाया कि २००४  में सत्ता में आई मनमोहन सिंह सरकार ने उनका फोन टैप किया था। सिंह द्वारा लगाए गए आरोपों के बाद, अन्य राजनेताओं जैसे सीताराम येचुरी, जयललिता, सीबी नायडू आदि ने भी यूपीए सरकार के खिलाफ इसी तरह के आरोप लगाए।अक्टूबर २००९ में, तत्कालीन रेल मंत्री ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल की सीपीएम सरकार पर जासूसी करने का आरोप लगाया। बनर्जी के आरोपों ने एक बार फिर केंद्र द्वारा अपने विरोधियों और पार्टी के अन्य नेताओं के खिलाफ निगरानी के उपयोग के आसपास की बहस को फिर से जगा दिया। तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने तब कहा था कि सरकार जासूसी के आरोपों पर सफाई देगी। हालांकि, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मामले में जेपीसी की माँग को खारिज कर दिया था।  दिसंबर २०१०  में तो पीएम सिंह ने कॉर्पोरेट दिग्गजों के फोन टैप करने के लिए अपनी सरकार के कदम का बचाव किया। उन्होंने फोन टैपिंग को सही ठहराने के कारणों के रूप में राष्ट्रीय सुरक्षा, कर चोरी और मनी लॉन्ड्रिंग को रोकने के आधार का हवाला दिया। अगले दिन, उन्होंने कथित तौर पर अपने कैबिनेट सचिव से फोन टैपिंग मामले को देखने और इस तरह के लीक को रोकने के लिए कानूनी ढांचे को मजबूत करने के लिए कहा।
पी चिदंबरम और प्रणव मुखर्जी - क्या वाकई सब कुछ ठीक था दोनों के बीच ?

हास्यास्पद ही लगेगा सुनकर कि जून २०११  में, तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखकर उनसे अपने कार्यालय की बगिंग किये जाने का आरोप अपने ही सहयोगी पर लगाया था।  तब चर्चा आम थी कि तत्कालीन होम मिनिस्टर पी चिदंबरम ने ही दादा के दफ्तर को बग करवाया था। 

छोड़िये इतिहास को ! पिछले दिनों ही राजस्थान के कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री गहलोत अपने ही विधायकों के फोन टेप करवा रहे थे, आरोप सचिन पायलट ही लगा रहे थे।   

खैर ! विषयांतर तो नहीं , थोड़ा टाइम ट्रेवल ज्यादा हो गया !  वापस लौट आते हैं  पेगासस प्रोजेक्ट पर तो तमाम बातें हो ही रही हैं, वार प्रतिवार हो रहे हैं लेकिन विरोधाभास है क्योंकि अनुमान  ज्यादा लग रहे हैं और लॉजिक नदारद है। ऐसा लगता है मानों सभी यकायक जज्बात से परिपूर्ण हो गए हैं, सबके सिक्स सेंस जागृत हो गए हैं। परंतु सिक्स सेंस हमेशा काम नहीं करता और फिर अनुमान और लॉजिक एक दूसरे के पूरक होते हैं। दोनों साथ रहें तभी पावरफुल होते हैं। चूँकि ऐसा यदा कदा ही हो पता है और यदि हो भी गया, जैसा रिचर्ड निक्सन के साथ हुआ या फिर चंद्रशेखर के साथ हुआ, राजनीतिक स्वार्थ की पूर्ति होती है, जन सरोकार नहीं। 

एक फ्रेंच मीडिया ग्रुप है फॉरबिडेन लव की तर्ज पर फॉरबिडेन स्टोरीज और एक है एमनेस्टी इंटरनेशनल और एक और है देसी वायर ! तीनों की ही अदावत भारत सरकार से रही है और है भी; ओपन फैक्ट है। दूसरी तरफ इजरायली कंपनी है जिसने पेगासस स्पाईवेयर बनाया है और इसे तथाकथित रूप से सिर्फ दुनिया की सरकारों को ही बेचा है जिसका नोबल कॉज है अपराधियों और चरमपंथियों पर निगाह रखना ! स्टोरी जो है वो है कि साइप्रस के सर्वर से  एक डेटाबेस लीक हुआ है जिनसे दुनिया भर के तक़रीबन ५०,००० नंबर मिले हैं जो कथित रूप से टारगेट हुए होंगे ! इन्हीं नंबरों में से तक़रीबन ३०० नंबर भारतीय पत्रकारों , एक्टिविस्टों , व्हिशीलब्लोवरों , सांसदों , विधायकों आदि के बताये जा रहे हैं।  कुछेक नाम भी बताये जा रहे हैं। कहने को फोर्बिडन स्टोरीज ने कुछ के नंबरों की फोरेंसिक जांच भी करवाई है और उनमें से कुछ इन्फेक्टेड पाए गए हैं ! कुल मिलाकर सारे कयास ही हैं जिसे दम इसलिए भी मिल जाता है कि एमनेस्टी इंटरनेशनल हो या वायर, दोनों ही डिप्लोमेसी रखते हुए सुविधानुसार गोल पोस्ट बदलते नजर आते हैं। एक स्थापित मीडिया हाउस की हेडलाइन की बानगी देखिये ,"Amnesty says never claimed leaked phone numbers were of NSO Pegasus Spyware list"  लेकिन  वायर का वायर भी तुरंत फ़्लैश हो गया ,"Amnesty International hits out at false media reports; fully stand by Pagasus Project Data !" लॉजिक है इंडिया टुडे या अन्य मीडिया वालों ने हिब्रू (इजरायल की भाषा ) में स्टेटमेंट को गलत इन्टरप्रेट कर लिया ! दरअसल सारा प्रोजेक्ट  मिसइंटरप्रिटेशन ही है, चूँकि एवीडेंस तो किसी ने नहीं दिया है। अनुमानों और तर्कों का सिंक्रोनाइज़ेसन टूट टूट कर है मानों तीर में तुक्के लगाए जा रहे हों। 

मौजूदा सरकार का पक्ष भी वही है जो नेहरू काल से सभी सरकारों का रहा है ; हाँ , साइबर टर्मिनोलॉजी का समावेश जरूर हो गया है जो तब नहीं होता था क्योंकि साइबर वाली दुनिया अस्तित्व में ही नहीं थी। 

भारत एक मजबूत लोकतंत्र है जो अपने सभी नागरिकों को निजता के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है।  कोई अनधिकृत इंटर्सेप्शन नहीं हुआ है। व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक २०१९  और सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम २०२१  लोगों के पर्सनल डेटा की सुरक्षा के लिए ही बनाये गए हैं इस उद्देश्य के साथ कि सोशल मीडिया कंज़्यूमर्स सशक्त हों और प्लेटफॉर्म्स उन्हें एक्सप्लॉइट न कर सकें। विशिष्ट लोगों पर सरकार की निगरानी के आरोपों का कोई भी ठोस आधार नहीं है। कतिपय रिपोर्ट भारतीय लोकतंत्र की छवि को धूमिल करने की कोशिश प्रतीत होती है। देश में एक अच्छी तरह से स्थापित प्रक्रिया है जिसके जरिए राष्ट्रीय सुरक्षा के उद्देश्य से इलेक्ट्रॉनिक संचार का वैध इंटरसेप्‍शन किया जाता है। खास तौर पर केंद्र और राज्यों की एजेंसियों द्वारा किसी आपात स्थिति या सार्वजनिक सुरक्षा के हित में ऐसा किया जाता है।    

इजरायली कंपनी एनएसओ के फॉउंडर्स

इसी बीच इजरायली कंपनी ने भी कुछ चीजें स्पष्ट की है, लॉजिक भी है - "साइप्रस में हमारा कोई सर्वर नहीं है और दूसरी ये कि हमारे पास हमारे ग्राहकों का कोई डेटा नहीं रहता। फिर हमारे सभी ग्राहक एक दूसरे से जुड़े नहीं हैं। सभी ग्राहकों का अपना-अपना डेटा बेस है सो इस तरह की किसी लिस्ट के होने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता।"  

एनएसओ (कंपनी ) ने ये भी कहा कि जितनी संख्या में नंबर बताये गए हैं, उस तरह पेगासस काम नहीं करता और हमारे ग्राहकों के निशाने पर हर साल जासूसी के लिए कोई सौ टारगेट ही होती हैं। कंपनी शुरू होने से लेकर अब तक भी हमारे कुल पचास हज़ार टारगेट नहीं होंगे ! 

जहां तक जासूसी के लिए कोई भी देश पेगासस लेता है और उद्देश्य अपराध की रोकथाम है, टेर्रोरिस्म नियंत्रण की बात है, चरमपंथियों के निगहबान की बात है, बिल्कुल जायज है , उचित है और समय की मांग तो है कि पेगासस से बेहतर भी कुछ हो तो उसे लिया जाय। और जब भारत का विपक्ष , खासकर कांग्रेस जिनका तो इतिहास रहा है जासूसी करवाने का , सरकार से सवाल करता है कि उसने पेगासस ख़रीदा है या नहीं , तो हास्यास्पद ही लगता है। बयानवीर प्रवक्ताओं की तो भरमार हैं पार्टी कोई भी हो, कुछ भी कह पड़ते हैं दलगत राजनीतिवश ! कांग्रेस के ही एक है जिन्होंने नेशनल सिक्योरिटी कौंसिल के बढ़ाये गए बजट पर ही सवाल उठा दिया ! और तो और , रविशंकर प्रसाद, जो कल तक आईटी मंत्री भी थे , के बयान को तमाम आरोपों की स्वीकृति ही करार देते हुए बीजेपी से उनको पार्टी से निकाले जाने की बात कर दी ! अब पलट कर कोई भाजपाई बयानवीर कांग्रेस से राहुल गांधी के ही निकाले जाने की मांग कर दे तो आश्चर्य नहीं होगा ! 

इस पूरे पेगासस प्रकरण को लेकर संसद की कार्यवाही बाधित करने का औचित्य समझ के परे है खासकर इस कोरोना क्राइसिस में क्योंकि जाया गया हर मिनट ३ से ४ लाख कॉस्ट करता है ! साथ ही राज्य सभा में अमर्यादित आचरण भी समझ के परे हैं। इक्कीसवीं सदी में जन सरोकार के मुद्दों की लिस्ट बनाई जाए तो शायद इस पेगासस प्रकरण को अंतिम पायदान भी नसीब न हो ! मुद्दे हैं कोरोना की दूसरी लहर की लापरवाहियों का , तीसरी लहर की दस्तक का , बढ़ती बेरोजगारी का, किसान आंदोलन का आदि आदि ! बहस होगी नहीं चूंकि करनी नहीं है और संसद सत्र के नाम पर हजारों करोड़ स्वाहा कर दिए जाएंगे ! क्यों ? 

एकबारगी मान भी लें किसी की जासूसी हुई हैं, निजता में खलल पड़ा है , वह कानून का दरवाजा खटखटाये ना ! जब देखो जेपीसी की मांग उठा दो, न्यायिक जाँच की मांग कर दो और जब इनका फैसला आये तो फैसले को ही धत्ता बता दो ये कहकर कि सरकार के प्रभाव में हैं।  

सबसे ज्यादा कांग्रेस मुखर है लेकिन मुखरता परिवार को खुश करने के लिए है।राहुल गांधी जी का और उनके तीन चार मातहतों का भी नंबर जो लिस्ट में है। अब राहुल जी संसद के बाहर मीडिया को मुख़ातिब होकर और ट्विटर पर ट्वीटियाकर खूब भारी पड़ने की कोशिश कर रहे हैं कि सरकार उनकी जासूसी कर रही है और साथ ही मोरल ग्राउंड भी ले रहे हैं कि उन्हें अपनी जासूसी की चिंता नहीं है, वे तो जनता की निजता के लिए आवाज बुलंद कर रहे हैं ! ये आवाज भी सेलेक्टिवेली बुलंद होती है , तब नहीं हुई थी जब गहलोत यही कर रहे थे , चिदंबरम ने यही किया था ! अगर उनके पास सबूत हैं , तथ्य हैं तो वे पार्लियामेंट में क्यों नहीं कहते इसी बात को ? हरगिज नहीं कहेंगे क्योंकि वहां झूठ बोला तो उनके खिलाफ मोशन वगैरह जो आ जाएगा ! नतीजन एक बार फिर किरकिरी हो जायेगी ! हेराफेरी , धोखेबाजी और भ्र्ष्टाचार यानी सत्ता का नाजायज इस्तेमाल और कानून का उल्लंघन - सभी जानते हैं ये सच है परंतु कौन , क्या , कैसे और कहां सबूत को नजरअंदाज करेगा , यही पॉलिटिक्स है या नवीनतम पर्याय "खेला " है !

वे इस्तीफा मांग रहे हैं गृह मंत्री का और मांग कर रहे हैं पीएम की न्यायिक जाँच का ! सुनता कौन है ? सहयोगी पार्टियों की बात तो छोड़िये, अपनी ही पार्टी के लोग मुंह दबाकर मजा ही ले रहे हैं। शशि थरूर ने कहा भी है कि पेगासस प्रकरण के लिए जेपीसी की कोई जरुरत नहीं है , संसदीय आईटी पैनल (स्टैंडिंग कमिटी जिसके वे ही चेयरमैन हैं ) अपने कर्तव्य का निर्वाह करने में सक्षम है। फिर तो कोई समस्या होनी ही नहीं चाहिए कांग्रेस को ! राहुल लोकसभा में मुखर होकर बोलें और अपना फोन शशि थरूर को सुपुर्द कर दें उनके द्वारा मॉनिटरिंग की जाने वाली किसी भी , फॉरेंसिक हो या कोई और टेक हो, जाँच के लिए ! दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। आरोप प्रत्यारोप की राजनीति के खेले में वे और उनकी पार्टी बैकफुट पर हैं चूंकि अतीत के साथ साथ वर्तमान भी  स्याह जो है पारदर्शिता के मापदंड पर जिन्हें भुनाने के लिए भाजपाई धुरंधरों की पूरी फ़ौज है, प्रो मोदी लॉबी भी है।  

और अंत में जिस बात ने संशय पैदा किया है हालांकि पता नहीं क्यों मीडिया ने तूल नहीं दिया है उसे ! और उस बात पर ही सवाल है क्या राहुल गांधी को पहले से पता था इस पैगासिस प्रोजेक्ट के बारे में ? उनके ट्वीट्स तो यही इशारा करते हैं तो क्यों ना कहें टूलकिट का एक टूल ही है ये और वह भी कुंद निकला ! उन्होंने १६ जुलाई को ट्वीट तब किया था जब इस प्रोजेक्ट की कहीं कोई चर्चा ही नहीं थी ! और फिर इसी १६ जुलाई वाले ट्वीट को टैग करते हुए #Pegasus चस्पा करते हुए उन्होंने फाइनल पंच दे मारा, " We know what he’s been reading- everything on your phone!" इन तमाम कमजोरियों के बावजूद यदि कांग्रेस एक इंटरनेशनल स्कूप टाइप प्रोजेक्ट की आड़ लेकर वाटरगेट और पीएम चंद्रशेखर के इस्तीफे से कंपेयर करती है तो बात वही है, " to compare apples and /with oranges !" वाटरगेट कांड में पुख्ता सबूत थे और चंद्रशेखर सरकार तो आपके रहमोकरम पर थी !

हाँ , एक बात गौर करने लायक है और भारत सरकार को भी फॉलो करना चाहिए ! कई देशों को लपेटा है इस प्रोजेक्ट ने और महत्वपूर्ण देशों मसलन फ़्रांस, ब्राजील और यहाँ तक कि इजरायल ने भी जाँच शुरू कर दी है। भारत सरकार का बड़प्पन ही नहीं साख भी इसी में है कि वह भी एक स्वतंत्र जाँच शुरू करवा दे ताकि तमाम गॉसिप को विराम मिले। वरना तो लिस्ट में नाम पकिस्तान के इमरान खान का भी है, वे आरोप भी लगा रहे है कि भारत सरकार उनकी जासूसी करवा रही है ; एकाध दिन में क्या पता कतिपय राजनेताओं का पाक प्रेम भी उमड़ आए !

Write a comment ...

Prakash Jain

Show your support

As a passionate exclusive scrollstack writer, if you read and find my work with difference, please support me.

Recent Supporters

Write a comment ...